कैसे मनाऊं मैं खुशियों की दिवाली?
डॉ. कान्ति लाल यादव
महंगाई यहां घटती नहीं।
भ्रष्टाचार की आग बुझती नहीं
हर हाथ में काम मिलता नहीं।
भूख गरीबी मिटती नहीं।
परेशानियां कम होती नहीं।
अंधी गूंगी बहरी दुनिया।
सच को साथ देती नही।
जन-मन के मंदिर में ज्ञान भरती नहीं।
हर दिल के कष्टों को हरती नहीं।
समाज यहां सुधरने का नाम लेता नहीं।
प्रेम-गीत की बंसी कोई बजाता नहीं।
कैसे मनाऊं में खुशियों की दिवाली?
अमीरी- गरीबी की खाई गहरी है।
अपराधों की यहां झड़ी लगी है।
सदमे में लाचार नारी खड़ी है।
दलित-अत्याचार,बलात्कार की घटना रुकती नहीं।
लोभ-लालच-द्वेष-दूरभाव की अंधेरी छाई है। पग-पग पर झूठों की जाल बिछाई है।
धर्म की राजनीति खूब फैलाई है।
सत्ता में सौदागिरी और मलाई है।
जनता बेसुध सी घबराई है।
मैं कैसे मनाऊं खुशियों की दिवाली?
गद्दार पड़ोसीयों ने पीठ दिखाई है।
आतंकीयों ने गीदड़ सी फौज सजाई है।
समता की कलियां आज मुरझाई है।
आज धरा पर मानवता अकुलाई है।
कैसे मनाऊं में खुशियों की दिवाली?
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