लोकतंत्र में जनता क्यों नही बोलती केवल जनप्रतिनिधि बोलते है ,चुनाव से पहले भी चुनाव के बाद भी??
लेखिका- सुनीता कुमारी बिहार
किसी भी देश की शासन प्रणाली या तो लोकतंत्र होती है या राजतंत्र होती है ।राजतंत्र में शासन का केंद्र बिंदु राजा होता हैं ।वह जनता की समस्याओं के अनुसार शासन करता है ।राजदरबार में जनता की परेशानियों को तकलीफ को सुना जाता है,समाधान किया जाता है।राजतंत्र में राजा के द्वारा शासन सत्ता संभालने के बाद राजा के द्वारा राज दरबार में जनता की तकलीफ परेशानियों को सुना जाता है एवं दूर किया जाता है।
भारत में आदिकाल से लेकर अंगेजो के आगमन तक भारत राजतंत्र था। राजा वेश बदलकर गांव में जनता की परेशानियों को जानने के लिए जाया करते थे। भारत की राजनीति में प्राचीन काल से बहुत सारे राजाओं के ऐश्वर्य की समृद्धि की सुसंस्कृत शासन की निशानी मौजूद है। यहां तक की भारत की प्राचीन सभ्यता चाहे वह सिंधु सभ्यता हो या हड़प्पा सभ्यता विकसीत थी।हमेशा से भारत समृद्धि का उदाहरण रहा है ।चंद्रगुप्त द्वितीय के शासन काल को स्वर्ण युग कहा जाता है। क्योंकि ,इनके शासनकाल में राजनीति से लेकर शिक्षा समाज विकास धनसंपदा सब परिपूर्ण था। मुगल राजा शाहजहां के शासन को भी स्वर्ण युग कहा जाता है। दक्षिण भारत में चोल वंश के शासन काल को स्वर्ण युग कहा जाता है।
भारत में प्राचीन काल से लेकर अंग्रेजों के आने तक राजतंत्र था एवं भारत सोने की चिड़िया कहीं जाती थी। भारत धनसंपदा से परिपूर्ण था। इस कारण भारत को पूरे विश्व में पहचान मिली हुई थी। यही वजह थी कि विदेशी हमलावर भारत का धन लूटने बार बार आया करते थे। फिर भी भारत धन-धान्य से परिपूर्ण रहा।
भारत में राजतंत्र का इतिहास कुल मिलाकर ठीक-ठाक रहा है। भारत की आम जनता समृद्ध रही थी। परंतु आजादी के बाद ,अंगेजी शोषण के उपरांत लोकतंत्र की शासन व्यवस्था में जिस गति से भारत का विकास होना चाहिए था। वह गति अत्यधिक धीमी है। केंद्र में सत्ता चाहे किसी भी राजनीतिक पार्टी की क्यों ना हो देश में विकास की रफ्तार धीमी ही रहती हैं। महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा जैसी समस्याएं अभी भी बनी हुई है जो कि बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए था। भारत को विकसित राष्ट्र होना चाहिए था क्योंकि,
" जो भारत राजतंत्र के समय में समृद्धि के शिखर पर था उसे लोकतंत्र में विश्व के अग्रणी देश में होना चाहिए था। परंतु हमारा दुर्भाग्य है कि भारत लोकतंत्र देश होने के बावजूद भी विकासशील देश ही बना हुआ है।"
इसमें कहीं ना कहीं हम आम जनता की बहुत बड़ी गलती है।
भारत की राजनीति में खामी को विकृति को देखने के बाद भी सभ्य समाज चुप है ।राजतंत्र में जनता बोलती थी एवं राजा से अनुरोध कर अपने अनुरूप अपने अपने क्षेत्र की जरूरत के अनुसार विकास करवाती थी।
परंतु ऐसा लगता है लोकतंत्र में जनता बोलने का हक खो चुकी है। बोलने का हक जनप्रतिनिधि को दे चुकी है। जो जनप्रतिनिधि जनता के हिसाब से नहीं बल्कि अपनी व्यक्तिगत मंतव्य के हिसाब से बोलते हैं अपने व्यक्तिगत मंतव्य के हिसाब से कार्य करते हैं ।ऐसा लगता है जैसे लोकतंत्र में जनता गूंगी और बहरी हो गई है या बोलने का हक किसी और को दे चुकी हैं।
जो भारतीय समाज राजतंत्र के समय निडर होकर अपनी तकलीफ अपनी परेशानियां राजा से कहा करती थी निदान पाया करती थी ,वही सभ्य समाज लोकतंत्र में मूक-बधिर बनी हुई है। लोकतंत्र में सरकार का गठन होने के बाद जनप्रतिनिधि बोलते हैं और आम जनता सुनती हैं जनता की समस्याओं का समाधान हो ना हो शासन तंत्र से जुड़े सभी लोगों की समस्याओं के समाधान हो रहे हैं
देश की राजनीति में 43% अपराधी छवि वाले लोग राज कर रहे हैं मगर आम जनता कुछ भी नहीं कहती ना हीं करती है ।आम जनता बोलने या कुछ कर पाने का हक लोकतंत्र में खो चुकी है ।महंगाई दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है यह देखकर भी सभ्य समाज चुप है। बढ़ती बेरोजगारी एवं महंगाई की वजह से बढ़ती गरीबी को देखकर भी सभ्य समाज चुप है ।शिक्षा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है शिक्षा का व्यवसायीकरण होने की वजह से आम जनता की पहुंच से बाहर होता जा रहा है यह सब देखते हुए भी सभ्य समाज चुप है ।
जो जनता राजतंत्र में खूब बोलती थी इतना बोलती थी कि ,श्री राम के वनवास से वापस आने के बाद जनता की आलोचना को सुनकर राजा राम ने सीता को दोबारा वनवास दे दिया था।उस वक्त भी राजतंत्र होते हुए भी लोकतंत्र की तूती बोलती थी ।राजा जनता की बातों को ध्यान में रखकर शासन करते थे ।वही लोकतंत्र में आम जनता गूंगी और बहरी बनी हुई है । जनता के द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि बोल रहे हैं ।ऐसा लगता है कि आम जनता ने बोलने का हक किसी और को दे दिया है अपना भविष्य अपने राज्य अपने देश का भविष्य किसी और के हाथ में सौंप दिया है ।जैसे लोग सत्ता पर आसीन होते हैं वैसी राजनीति भारत में होती है, वैसा विकास भारत में होता है जो एक स्वस्थ लोकतंत्र की तरह प्रतीत नहीं हो रहा है ।
हमारे देश की राज व्यवस्था में शासन व्यवस्था में बहुत सारी खामियां हैं एवं कमी है फिर भी यह सभ्य समाज चुप है। कमियों को दूर करने के लिए कोई आवाज नहीं उठाती है ।क्यों हमारे देश के लोग लोकतंत्र में आम लोग नहीं बोलते जनप्रतिनिधि बोलते हैं।
जातिवाद भ्रष्टाचार धार्मिक उन्माद गरीबी बेरोजगारी जनसंख्या वृद्धि बढ़ती महंगाई शिक्षा का व्यवसायीकरण आदि बहुत सारी समस्याएं भारत को जकड़े हुए हैं मगर यह आम जनता चुपचाप बिना सोचे समझे तुच्छ स्वार्थ के लिए हजार दो हजार के रुपयों के लिए के लिए किसी को ही वोट देकर सत्ता पर आसीन कर देती है ।जाति और धर्म के नाम पर ऐसे व्यक्ति को वोट दे देती है जो देश के लिए समाज के लिए कुछ करना ही नहीं चाहते ,मात्र राजनीति करना और राजनीति में बने रहना ही उनका उद्देश्य होता है ।फिर भी जनता चुपचाप सुनती रहती है देखती रहती है ।कुछ भी नहीं बोलती है।
बोलते हैं तो चुनाव से पहले नेता एवं चुनाव जीतने के बाद भी नेता।
हमारे देश के सभ्य समाज में वैसे सभ्य लोग भी है जिनकी कथनी उनकी करनी से मेल नही खाती।ऐसे बड़े बड़े लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को पूरा करने के लिए समय एवं सत्ता के अनुसार अपनी भाषा और सोच बदल लेते है।ऐसे लोगो का हुजूम हमारे समाज में मौजूद है ।ऐसे लोग ही देश के विकास में बाधक बने हुए है।
वक्त के साथ परिवर्तन जरूरी है।यह परिवर्तन सबसे पहले आम लोगो की सोच में होनी जरूरी है।सबसे पहला धर्म उस धरती के लिए होता है जहाँ हम खड़े होते है।इनका मान, सम्मान, तरक्की जिम्मेदारी देश के प्रत्येक व्यक्ति का है।हर भावना से पहले प्रत्येक व्यक्ति में देशभक्ति की भावना होनी जरूरी है।वैसे लोगो का बहिष्कार होनाशजरूरी है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप देश को नुकसान पहुंचा रहे है।
दूसरा परिवर्तन देश की राजनीतिक में होनी जरूरी है।
भारत की राजनीति में अब शिक्षा और स्वच्छता का समावेश जरूरी है।लोगो के बीच ऐसे अभियान की शुरुआत होनी चाहिए जिससे देश की राजनीति से दागी एवं अकर्मण्य नेताओ का बहिष्कार किया जा सके चाहे वह किसी भी पार्टी का क्यों न हो।देश के विकास के लिए सभ्य समाज को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।
देश के विकास में भागीदार बनना होगा।
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