एक-एक वोट देश का भविष्य और विकास तय करती

वोट की राजनीति और जनता की उदासीन, नकारात्मक सोचवाली मानसिकता

सुनीता कुमारी 

पूर्णियाँ, बिहार। लोकतंत्रात्मक  शासन व्यवस्था में शासक की पहली इकाई जनता होती है। 

जनता के वोट के अनुसार ही केंद्र और राज्य में सरकारें बनती है। यह सरकार आम जनता की सहमति से बनती है।

केंद्र में स्थिर सरकार हो कार्य करने वाली हो, विकास करने वाली हो तो इसके के लिए जनता साधुवाद की हकदार होती है। यदि सरकार निकम्मी एवं विकास के प्रति उदासीन राजनीति वाली होती है, मात्र सत्ता में बने रहने की राजनीति करती हो तो, इसके लिए भी जनता ही जिम्मेदार होती हैं।

क्योंकि  लोकतंत्र की शासन व्यवस्था में शासक तंत्र का प्रत्येक व्यक्ति आम जनता की सहमति से सत्ता की कुर्सी पर विराजमान होता है। हम आम जनता के वोट के माध्यम से शासन में हिस्सेदार होते है।

हमारे ही जनप्रतिनिधि के द्वारा जिसे हमने  वोट देकर सरकार बनाने की अनुमति दी है। वो हमारे भाग्यविधाता बन जाते है और वो भाग्यविधाता हमारे ही वोट से बनते है। उस एक जनप्रतिनिधि में हजारों लोगो की सहमति होती है।

तो फिर? 

देश में बेरोजगारी अशिक्षा  गरीबी  महंगाई भ्रष्टाचार,  घूसखोरी, नशाखोरी जैसी सारी समस्याओ की जिम्मेदार सरकार कैसे?? जिम्मेदार तो हम आम जनता ही हुए न ?? तो फिर हम इसके लिए हम सरकार को क्यों दोष देते हैं ? गलती  तो हम आम जनता की ही हैं??

हमारे ही वोट का परिणाम होता है कोई नेता चुनाव जीतने के बाद अपने क्षेत्र का विकास करता है या नही करता है?

यदि हम आम जनता चुनाव में प्रत्याशी को वोट चुनावी पार्टी के आधार पर वोट देते है, व्यक्ति विशेष को महत्व नही देते है तो क्षेत्र के विकास पर प्रश्नचिन्ह लग  ही जाता है। क्योंकि जरूरी नही की किसी भी पार्टी का प्रत्येक प्रत्याशी कर्मठ हो?

हम आम जनता अपनी रूढ़ीवादि विचारधारा में  इस तरह उलझे रहते है कि राजनीतिक पार्टियों की सच्चाई हमारे सामने होती है, नेताओ की सच्चाई हमारे सामने होती है मगर, हम हम आम जनता नेता व राजनीतिक पार्टी के प्रति अंधे बने रहते है। बार बार उन्हे वोट देकर भ्रष्टाचार, पारिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, धार्मिक अंधविश्वास की राजनीति करने का मौका देते रहते है क्यों??

हम आम जनता लोकतंत्र के प्रति देश के विकास के प्रति इतने लापरवाह व उदासीन कैसे हो सकते है??

ये जानते हुए भी कि एक-एक वोट देश का भविष्य और विकास तय करती है..

हम आम जनता की ही गलती है कि हमारे देश की राजनीति में परिवारवाद की राजनीति मजे से फलफूल रही है जैसे वे लोग लोकतंत्र के राजा हो? ये जनता को बेवकूफ बनाने में इतने माहिर होते है कि जनता हकीकत जानते हुए भी भ्रमजाल से निकल ही नही पाती है।

हम जनता चुनाव के समय क्षेत्र विशेष के प्रत्याशी का व्यक्तित्व, उसकी देश के प्रति सेवाभाव एवं विकास करने की ललक को देखकर वोट देगे तो निश्चय ही देश की राजनीति में बदलाव होगा।

किन्तु,?? 

हम जनता के पास वक्त कहाँ है..

हम जनता स्पेशल और व्यस्त लोग है?? चुनावी रैली में जाकर भाषण सुनने का वक्त है? बिना जाँच पड़ताल किए वोट देने का वक्त है?

किन्तु चुनाव जीतने के बाद सांसद या बिधायक अपने क्षेत्र और विकास के प्रति उदासीन व अकर्मण्य है तो, ऐसे नेताओ को खरी खरी दो बातें सुनाने की हिम्मत किसी भी जनता में नही है क्यों??

हद तो तब होती है जब ऐसे नेता को हम दुबारा वोट देकर सरकार में बने रहने का मौका द देते है।

ऐसे नेता चुनाव जीतने के बाद लोकतंत्र का राजा बन जाता है ?? ये काम करे न करे आम जनता  मूक बधीर बन जाती है इनसे डरने लगती है कि कही किसी मुसीबत में ना फसा दे।

लोकतंत्र के इन राजाओ से जनता डरने लगती है एवं लोकतंत्र के ये राजा मन करता तो विकास के कार्य करते है वर्ना, काम करने के डर से  विभिन्न योजनाओ का रूपया वापस केन्द्र भेज देते है।

कई सारे लोकतंत्र के राजा का शासनकाल मात्र समय पास करने भर रहा है। उन्होने अपने राज्य में विकास का कोई कार्य नही किया, विभिन्न योजनाओं का रूपया केन्द्र को वापस कर दिया। उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार और घोटाला चरम पर रहा है, सरकारी नौकरी की वैंकेसी न के बराबर आई। उनके शासनकाल में युवा खस्ताहाल और बेरोजगार रहे, सड़को पर बड़े बड़े गडडे व बिजली, व्यापार सब ठप रहा है।

शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चों को दूसरे राज्य की ओर कूच करना पड़ता है, रोजगार के लिए भी युवाओं को दर दर भटकना पड़ता है।

आज उनके पुत्र आराम से आज राजनीति कर रहे है। जनता को ये आश्वासन दे रहे है कि वे पिता के मार्ग पर नही चलेगे। राज्य का विकास करेगे जब कि इनके पास न शैक्षणिक डिग्री न समाज सेवा का कोई रिकार्ड??

फिर भी लोकतंत्र की अंधी जनता इनके आवभगत में लगी है।भला देश का विकास कैसे होगा। राज्य का विकास कैसे होगा??

हम आम जनता ही देश के विकास के रास्ते में रोड़ा बने हुए है??

ऐसा नही कि हमारे देश में पढ़े लिखे, देश सेवा की भावना रखनेवाले जनप्रतिनिधि की कमी है। ऐसे ही अच्छे नेताओ के बल पर देश में विकास हो रहा है, शिक्षा का प्रतिशत बढ़ रहा है ।गरीबी कम हो रही है किन्तु, हम जनता इन नेताओ को भाव कहाँ देते है , क्योंकि ये हमारी जाति के नही होते, हमारे क्षेत्र के होते है मगर दूसरे समुदाय के होते है आदि आदि?? 

जनता के बेकार बेकार तर्क से देश का विकास प्रभावित हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति का अपने गृहदेवता, ग्रामदेवता, स्थान देवता एवं देश के प्रति फर्ज और कर्ज दोनो होता है, जिसे चुकाना देश के प्रत्येक व्यक्ति का धर्म होता है हर धर्म में इस बात को स्वीकारा है किन्तु, हम आम जनता बिना सोचे समझे वोट देकर फर्ज और कर्ज दोनों से पल्ला झाड़ लेते है।

जबतक हम आम लोगो  की मानसिकता नही बदलेगी तबतक देश का विकास बाधित होता रहेगा, विभिन्न प्रकार की समस्या देश में बनी रहेगी।

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