"फूट डालो राज करो" की गंदी नीति देश की राजनीति से समाप्त हो
अब वक्त आ चुका है हम जनता अपनी सोच को बदले और देश के विकास में भागीदार बने..
तभी देश का सर्वांगीण विकास हो पाएगा...
सुनीता कुमारी, पूर्णिया, बिहार।
हमारा देश चार सौ सालो तक रहा।पहले एक के बाद एक विदेशी लुटेरों ने भारत को परेशान किया ,फिर वे भारत की राजनीति कमजोरी का फायदा उठाकर देश का शासक भी बन बैठे।
चार सौ साल की गुलामी ने भारत की अन्दरूनी सारी व्यवस्था को चौपट करके रख दिया है। चाहे आर्थिक स्थिति हो या समाजिक स्थिति हो सब पर अंग्रेजो ने प्रहार किया। अग्रेजो ने हमारी सदियों पुरानी सामाजिक व्यवस्था, सांस्कृतिक व्यवस्था, शिक्षा व्यवसाय सबको चौपट करके रख दिया। अंग्रेज तो चले गए परंतु जाते-जाते इस देश का जितना बुरा कर सकते थे, उतना करके चले गए ।जिससे भारत अभी भी उबर नहीं पाया है।
सदियों से हमारे देश में संयुक्त परिवार की परंपरा थी। घर के मुखिया जो फैसला लेते थे वही सबको मान्य होता था।घर का कोई बड़ा एक मुखिया होता था। वही घर के आर्थिक और सामाजिक सभी फैसले लेते थे। इनके फैसले में घर के सभी सदस्यों की रजामंदी होती थी। संयुक्त परिवार के कारण किसी भी फैसले पर अमल करने में आसानी होती थी।
इस संयुक्त परिवार में जहां कुछ दोष थे वही बहुत सारे गुण भी थे। इसी संयुक्त परिवार की परंपरा ने मुगलों के शासनकाल में लुटेरों और मुगल शासको से भारतीय परिवारों की रक्षा की। प्राचीन काल से लेकर, जब तक मुगल रहे, तब तक भारत में संयुक्त परिवार परम्परा भी कायम रही। परंतु अंग्रेजो की नीति" फूट डालो और राज करो" की नीति ने पहला वार, परिवार पर ही किया।
बड़े बड़े राजघरानों के परिवारों में अंग्रेजों ने फूट डालकर धीरे-धीरे उस राजघराने को कमजोर किया। फिर धीरे धीरे कब्जा करते करते पूरे भारत पर कब्जा कर लिया। किसी राजघराने के दत्तक पुत्र को मान्यता नहीं दी। किसी राजा को अयोग्य ठहरा कर मान्यता नहीं दी। किसी की आर्थिक स्थिति का हवाला देकर मान्यता नहीं दी। यह सब अंग्रेजो ने फूट डालकर किया। अंग्रेज तो चले गए परंतु फूट डालो और राज करो की नीति भारतीय लोगो एवं भारतीय नेताओ को सिखाते गए।
इसी नीति ने भारतवासी को पूरी तरह से बदल दिया। आज हमारे देश के राजनीति पार्टी के नेता भी बड़े मजे से इसी नीति को अपना कर राजनीति कर रहे हैं।
आम जनता को पता भी नहीं चलता कि राजनीतिक पार्टियो दो जातियों के बीच दो क्षेत्रो के बीच दो समुदाय के बीच, फूट डालो राज और करो" की गंदी नीति के द्वारा नेतागण राजनीति कर रहे है?
अंग्रेजो की नीति अजादी के बाद भी देश में फल फूल रही है। नेतागण लोगो में फूट डालकर अपनी राजनीति रोटी सेक रहे हैं और आमजनता को खिलारहे है कच्ची रोटी और हम से वोट अपने मनमाने ढंग से ले रहे हैं। तरह तरह के वाद में जनता आपको को डुबाकर और जनता आपको लगता है कि हमने अपनी मर्जी से वोट दिया है। पर हमारे सामने विकल्प ही नही होता कि हम सही नेता की पसंदगी कर सके, उसको उतार सके और उसको जीता सके एवं हम जनता इस चीज को देखी नहीं पा रहे हैं जो महत्वपूर्ण है।
संयुक्त परिवार टुटता गया एवं लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त होते गए। अपनी जरूरतो को पूरा करने के अलावा समय ही नही है कि, हम देश की राजनीति पार्टियाँ, सत्ताधारी पार्टी के लोग कर क्या रहे है? इस बात को देखने समझने और विरोध करने के लिए जनता के पास समय ही नही है।
लोकतंत्र में आम जनता ही सर्वेसर्वा होती है, पर यह वाक्य भारत की राजनीति में पूरा सच नही है। यदि सच होता तो हमारा देश आज अन्य विकसीत राष्ट्र की तरह विकसीत होता?
ये सच है कि आम जनता के ही बलबूते पर शासन तंत्र का कोई व्यक्ति सांसद या विधायक बनता है। परंतु हमारे द्वारा दिए गए वोट में मर्जी राजनीतिदल के नेताओ की होती है। ये नेतागण जनता के सामने इस तरह का पार्टीवादी, क्षेत्रवादी, जातिवादी लोभवाद स्वार्थ वाद का जाल बिछाती है कि, हम आम जनता आसानी से इनके जाल में फस जाते है।
हमे लगता है कि हमने अपनी मर्जी से वोट दिए मगर, ऐसा नही है। वोट हमने नेताओ की मर्ज़ी से किया है क्योकि , इन्होंन हमारे सामने रास्ता ही नही छोड़ा है।हमारे सामने भ्रम का जाल ऐसा बिछा कर रखा है कि ,हम दूर तक सोच ही नही पाते है।राजनीति पार्टीयाँ अपने समीकरण के हिसाब से जाल बिछाती है और हम आराम से फस जाते है।
हमारे गलत-सलत फैसलों का लाभ ये नेतागण उठाते है।हमें लगता है कि हमारी लोकतंत्र में हिस्सेदारी है, मगर मात्र वोट देने भर की हिस्सेदारी है।उसके बाद ये नेतागण राजा और हम लाचार बेब्स प्रजा बने रहते है यह कहा जाएं तो भी सही रहेगा जनता मालिक होते हुए भी नौकर बनकर रह गए हैं। गलती तो हम आम जनता की ही है ।मौका हमे हर पाँच साल में मिलता है।
हम चाहे तो देश की राजनीति में बदलाव ला सकते है, यह क्षेत्र में स्वच्छता अभियान चलाया सकते हैं आपके हमारे अच्छे दिन ला सकते हैं पर न जाने कितने पाँच साल हम गवाँते रहते है। हम अपनी निष्क्रियता की वजह से नेगेटिव मानसिकता की वजह से और तरह तरह के वाद में डुबे रहने से शहर हो या गांव हो विधायक हो या सांसद हो पाँच साल तक अकर्मण्य होकर सत्ता का सुख भोंगते रहते हैं सड़कों पर बड़े बड़े गड्ढे, ठप बिजली व्यवस्था, नाला जाम , अस्वच्छता सरकारी विद्यालय एवं सरकारी अस्पतालों का खस्ताहाल, अतिक्रमण इन सब बातों से नेतागण अनजान रहते है। यही गंदी राजनीति ने देश में हर विभाग हर क्षेत्र को अपनी गंदी सोच गंदी राजनीति जैसा बना दिया कोई नेतागण कुछ करते भी है तो जनता और नेता के बीच के लोग भष्टाचार का खेल खेलने लगते है।
आज सही से काम करने की अपेक्षा सही से जेब गरम करने लगते है। इन सब के लिए आखिर हम आम जनता ही जिम्मेदार हैं ।जैसा नेता हम चुनते है हमे वैसा ही विकास मिलता है। परेशानी हम आम जनता को होती है। अब वक्त आ चुका है हम जनता अपनी सोच को बदले और देश के विकास में भागीदार बने। तभी देश का सर्वांगीण विकास हो पाएगा। जब तक चुनाव में हम सही नेता को नही चुनेंगे तब तक देश का विकास असंभव है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें