पॉलीथिन पर प्रतिबंध न केवल मानव स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी जरूरी
केद्र व समस्त राज्य सरकारों को भी बिहार से सीख लेनी ही चाहिए नेशनल यूथ अवार्डी
दिव्या जैन
पॉलीथिन की थेलियाँ न केवल मानव जाति को बल्कि पशु-पक्षी,जल, जमीन,पेड़-पौधे,नदी तालाब,हवा या यूं कहें की समस्त पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंचाए जा रही है तो यह कहना गलत भी नही होगा।
गत 30 से 40 साल में प्रचलन में आई इन पॉलीथिन की थैलियों,प्लास्टिक आइटम व डिस्पोजल ने हमे व हमारे पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाया है। आज इसने न केवल भारत मे बल्कि पूरे विश्व मे अपना साम्राज्य फेला लिया है या यूं कहें कि हमे अपना गुलाम बना लिया है,तो अतिश्योक्ति नही होगी। समय समय पर मेरे जैसे कहि पर्यावरण हितैषियों ने इस विषय पर अभियान चलाए, जनजागरण के कार्य किये व कर रहे है। लोगो की इसके नुकसान पर समझ बनाई, सरकार तक भी अपनी बात प्रभावी ढंग तक पहुंचाई। जनता जागरूक हुई उन्होंने पॉलीथिन के नुकसान को समझा ,जाना, परिणामस्वरूप कुछ राज्य सरकारों ने इस पर प्रतिबन्ध भी लगाया जिसमे राजस्थान भी शामिल है।
क्या प्रतिबन्ध प्रभावी हुए। इच्छा शक्ति प्रमुख होती है और जहाँ इच्छाशक्ति है वहीं प्रतिबन्ध का असर भी दिखाई देता है और इसकी आवश्यकता भी है/थी । हम सब के प्रयासों से जनता जागरूक हुई है वे इसके नुकसान को समझ रही है । ऐसे में अगर राजनीतिक स्तर पर भी कार्यवाही हो जाये, जैसे की कानूनन सख्ती व क्रय व विक्रय करने वाले एवं फेक्ट्रियो पर जुर्माना, कागज व कपड़े के थैले बनाने वालों को प्रोत्साहन, इस विषय मे जेल में बंध कैदियों से थैले व थेलियाँ बनवाना, इस क्षेत्र में रोजगार करने वालो को बढ़ावा देना, टेक्स फ्री आदि तो निश्चित रूप से हमे पॉलीथिन का विकल्प आसानी से उपलब्ध हो सकेगा। साथ ही विद्यालय, कॉलेजों में विद्यार्थियों को जागरूक व प्रेरित किया जाना चाहिए।
इस विषय मे कुछ राज्यो ने प्रयास भले किये हो पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कमार ने कुछ ऐसे साहसिक कदम उठाए हैं, जिनका अनुकरण देश के सभी मुख्यमंत्रियों को करना ही चाहिए और साथ ही दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के पड़ौसी देश भी कर लें तो हमारे व इन सभी देशों की अर्थ-व्यवस्था और स्वास्थ्य व्यवस्था में अपूर्व सुधार हो सकता है।
लगभग पांच-छह साल पहले नीतीश कुमार साहब ने बिहार में शराबबंदी लागू की ओर इसका असर हुआ भी कही परिवारों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लाभ हुआ और अब नीतीश जी ने एक और कमाल का फैसला किया है। उन्होंने बिहार में 14 दिसंबर 2021 से प्लास्टिक-थर्मोकाल के उत्पादन, भंडारण, खरीद, बिक्री और इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। जो इस प्रतिबंध का उल्लंघन करेगा, उस पर पांच लाख रु. जुर्माना होगा या एक साल की सजा या दोनों एक साथ होंगे। यह घोषणा जून के लगभग हुई थी और देखिए, इसका कैसा जबर्दस्त असर भी हुआ है अभी पांच महिने भी नहीं गुजरे हैं कि प्लास्टिक की चीजों का उत्पादन लगभग 70 प्रतिशत घट तक गया है। बिहार के जो लगभग 60- 70 हजार उत्पादक प्लास्टिक की थैलियाँ, कटोरियाँ, प्लेटें, झंडे, पर्दे, पुड़िया वगैरह बनाते थे, उनकी संख्या घटकर अब सिर्फ 20-30 हजार के लगभग रह गई है।
हजार व्यापारियों ने अब कागज, गत्ते और पत्तों के दोने, प्लेट, कटोरियाँ वगैरह बनाना ,बेचना शुरु कर दिया है। अगले कुछ महिनों में हो सकता है कि बिहार प्लास्टिक मुक्त ही हो जाए। लोग प्लास्टिक की थैलियों की जगह कागज और कपड़ों की थैलियां , पूड़े ,पैकिट इस्तेमाल करना शुरु कर दें जैसे कि अब से 40-50 साल पहले करते थे। प्लास्टिक की बोतलों, किताबों और कप-प्लेटों की जगह अब मिट्टी और कागज से बने बर्तनों का इस्तेमाल होने लगेगा। इस नए अभियान के कारण हमारे इनसे सम्बंधित व्यवसाय से जुड़े लाखों लोगो व कुम्हार, बढ़ई और दर्जी भाई बहनों के लघु-उद्योग फिर से पनप उठेंगे। लोगों का रोजगार बढ़ेगा। फेक्टरियां जरुर बंद होंगी लेकिन वे अपने लिए नयी चीजें बनाने की तकनीक खोज लेंगी,और यह सब सम्भव है।
पॉलीथिन बेन से सबसे बड़ा फायदा भारत की जनता को यह होगा कि वह श्वास, केंसर, लीवर, किडनी और हृदय रोग जैसी घातक बिमारियों के शिकार होने से बचेगी। प्लास्टिक की करोड़ों थैलियां नदियों, समुद्र में इकट्ठी होकर जीव-जंतुओं को तो मारती व नुकसान पहुंचाती ही हैं, उनके जलने से भी हमारा वायुमंडल जहरीला हो जाता है। राज्य सरकारें बिहार के रास्ते को अपना रास्ता जरुर बनाए। जो बना रहे है, प्रयास शुरू कर दिए है वे प्रशंसनीय है। हो सकता है प्रारम्भ में कुछ जन व्यक्तिगत हित के कारण इसका विरोध हो लेकिन धीरे धीरे सब सकारात्मक हो जाएगा वे भी पर्यावरण व मानव हितेषी अभियान से जुड़ जाएंगे। पर हां उससे भी पहले यह ज्यादा जरुरी यह है कि भारत के जन-साधारण प्लास्टिक की चीजों का इस्तेमाल खुद ही बंद कर दें तो उनके विरुद्ध कानून बने या न बने, भारत प्लास्टिक मुक्त हो ही सकता है।
यह होगा, होगा ही अतः कानून बाद में पहले हम स्वयं अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरुक होकर कागज,कपड़े या स्वयं के बर्तन मे सामान लाने को अभ्यास में लाना शुरू कर दें। शर्म नही गर्व के साथ करें, करना तो पड़ेगा। तो फिर आज से ही अभी से ही यह शुरुवात क्यो नही। जो कर रहे है वे अन्य को भी प्रेरित करें ,कारवाँ बढ़ता चला जायेगा । आज हम, कल वह और एक दिन पूरा देश। में नन्ही गिलहरी तो गत 13 वर्षों से प्रयास कर ही रही हूं और करती रहूंगी जब तक भारत पोलिथिन मुक्त नही हो जाता। मुझे विस्वास है एक दिन जरूर होगा। क्योकि मेरा प्रयास व विस्वास कभी खाली अर्थात व्यर्थ नही जाने वाला। मेने हारना नही जितना सीखा है।
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