मेरे शहर में चुनाव आगया है

अनुभव त्रिपाठी 

सरगर्मी बढ़ने सी लगी है।  गरीब की प्लेट में पुलाव आगया है, लगता है मेरे शहर में चुनाव आगया है

उन्नाव सज सा रहा है हॉर्डिंगो और बैनर से, हर तरफ त्योहारों की बधाई तो किसी ओर नए पद की बधाई का होर्डिंग दिख रहा है।  लग रहा जैसे हर किसी को अपने अपने नाम को जनता के दिमाग में रजिस्टर करवाने की होड़ सी लगी है।  शायद सब ने मिल कर फैसला कर लिया है की अब चुनाव में नेता जी के बगल में फोटो खिचवा के रहेंगे।  जनता को भी सोचना चाहिए की पैसे कैसे खर्च किये जा रहे है और ये पैसे कहा से आ रहे है।  क्या इन पैसो से थोड़े लोगो की मदद की जा सकती थी।  क्या इन्ही पैसो का उपयोग जल भराव की व्यवस्था सुधारने में किया जा सकता था, क्या इन्ही पैसो से सरकारी अस्पताल के बाहर लगी लम्बी कतारों में खाना और पानी पहुंच सकता था।  मगर क्या उससे इन साहब लोगो की पहचान बढ़ती ? जवाब है की नहीं बढ़ती, क्युकी हम भूल चुके है की नेता उसको बनाना या चुनना है जो जनता की सेवा करेगा, हम को तो वोट देते समय ये याद रखने को सीखा दिया गया है की जात देखो, धरम देखो और माननीय का भौकाल देखो।  पचास गाडी का काफिला दिखा कर जैसे आम जनता को डराया जा रहा हो।  हमारा वोट लेकर हमहि को काफिला दिखाना, ये ठीक नहीं साहब।  


अब तो जब शहर के रास्ते से गुजरता हु तो इन होर्डिंग और बैनर को देख कर एक हल्की सी मुस्कान आजाती है चेहरे पे और खुद से सोचता हु की पद मिला उनको, बधाई दी इन्होने, और होर्डिंग पढ़ा मैंने।  जिसको बिलकुल फर्क नहीं पड़ता आपके इस ढपोरसंख से, अरे भाई बधाई देनी है तो जाकर गले मिलो और मिठाई खिलाओ ये होर्डिंग होर्डिंग क्यों खेला जा रहा।  क्या आप लोगो के सम्बन्ध इतने ख़राब हो गए की मुलाकात भी नहीं है।  खैर इनका पैसा इनकी मर्ज़ी, हमें क्या।  हम तो  सिर्फ हंस कर मुस्कुरा कर ये ही आग्रह कर सकते है की थोड़ा समाज के प्रति जागरूक रहे और मानवता को ध्यान में रख कर आप आगे बढे।  हम उन सभी को बधाई देते है मगर होर्डिंग लगवा कर नहीं देंगे ये भी वादा करते है।  जहा भी रहिये स्वस्थ रहिये और मस्त रहिये।

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