महंगाई से घायल आम जन के घावों पर मरहम रखने वाला कोई नहीं



पलक त्रिवेदी 

भारत की बहुत सी आर्थिक समयस्याओ में महंगाई की समस्या एक मुख्य है। वर्तमान समय में महंगाई की समस्या अत्यन्त विकराल रूप धारण कर चुकी है। एक दर से बढ़ने वाली महंगाई तो आम जनता किसी ना किसी तरह से सह लेती है, लेकिन कुछ समय से खघात्रो  और कई उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्यो में भारी वृद्धि ने उप कर दिया है। आज विश्व के देशों के सामने दो समस्या है प्रमुख - मुद्रा स्फीति तथा  महंगाई। जनता अपनी सरकार से मांग करती हैं कि उसे काम दामो पर दैनिक उपभोग की  वस्तु एं  उपलब्ध करवाई  जाए  ।  विशेषकर विकासशील देश अपनी आर्थिक कठिनाईयों के कारण ऐसा करने में असफल हो रहे है। लोग आय वृद्धि की भी मांग करते हैं।देश के पास धन नहीं ।  ' फलसरूप मुद्रा का फैलाव बढ़ता है, सिक्के की कीमत घटती है, महंगाई और बढ़ती है। सब सरकार आके चली जाती और अपना उल्लू सीधा कर लेती है । बढ़ती हुई महंगाई भारत की एक बहुत गभीर समस्या है। सरकार जब भी महंगाई  को कम करने की बात करती है तो मंगाई बढ़ जाती है । जीवन के लिए जरूरतमंद कीमतों में बढोतरी के कारण आज आलम यह है,की साधारण व्यक्ति जी तोड़ मेहनत के बावजूद अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड नहीं कर पाता है बढ़ती महगाई का असर सबसे अधिक उस गरीब व्यक्ति पर पड़ता है, जिसकी प्रति दिन की आय सो रूपए भी नहीं होती है। परिस्थिति तब और भी अधिक विकट होती जाती है, जब उसका पूरा परिवार केवल विकट हो जाती है,जब उसका पूरा परिवार केवल उसी व्यक्ति पर आश्रित होता है। मंहगाई का शौर चीख पुकार में बदलने को है, पता नहीं किस दिन जनता महंगाई के भूत से लडने के लिए अराजकता का रास्ता अपना ले,लेकिन इन सबसे बेफिकर केंद्र की राज सता विफल बैठकों के आयोजन भर कर रही है ।

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