यूपी में जैसे - जैसे चुनाव पास आने लगे हैं सरकार को जाट याद आने लग हैं : ठा. संजीव कुमार सिंह



नाराज़ किसानों को रिझानें के लिए मीडिया का हर चैनल अब बोल रहा "जाटराजा" : ठा. संजीव कुमार सिंह

एम एल वर्मा 

आगरा। राष्ट्रीय नेता, इंडियन नेशनल कांग्रेस एआईसीसी पर्यवेक्षक प्रभारी, बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, सदस्य इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स सचिव, कांग्रेस किसान एवं औद्योगिक प्रकोष्ठ, कानूनी सलाहकार सदस्य, चुनाव प्रचार समिति बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल और आसाम एवं लोकसभा चुनाव 2024 में प्रधानमंत्री पद के दावेदार ठा. संजीव कुमार सिंह ने कहा कि नाराज़ किसानों को रिझानें के लिए मीडिया का हर चैनल जाटराजा जाटराजा बोल रहा हैं। मीडिया ने हद ही कर दी हैं, क्या मीडिया को ऊपर से स्पेशल निर्देश मिले है कि राजा महेंद्र प्रताप को बार बार 'जाट राजा' बोला जाए ? गोदी चैनलों ने आज दिन भर यही एजेंडा चलाया। इसके पहले क्या लोगों को पता ही नहीं था कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह जाट थे। पहले घर्म फिर जातियां , फिर उप जातियां हम बंट गए हैं शायद हम कभी भी भारतीय नहीं हो सकतें हमारे नेता हमें कभी भारतीय होने नहीं देंगे। गोदी मीडिया चैनल कभी नहीं सुधरेंगें। ऊपर से ख़ास तरह के निर्देश दिये हैं कि चुनाव होने तक किसानों के आँदोलन को जाट बनाम जाट बनाया जाय। जब सरदार पटेल एक जातिय भर नेता बना दिये गये हैं, तो राजा महेन्द्र प्रताप सिंह कौन हैं। जितना नुकसान मीडिया ने पिछले सात साल में किया है और करता जा रहा है, इसकी भरपाई शायद ही हो पाए। जाट याद आने लगे जैसे - जैसे पास चुनाव पास आने लगे। क्योंकि किसान आंदोलन में ज़्यादातर नेता जाट हैं। जाट राजा जाट राजा इस बार बेड़ा पार करा जा बिल्कुल इस शब्द की वोट के लिए रट लगा रखी है। किसान आंदोलन के नुकसान की भरपाई के लिए डेमेज कंट्रोल में लगा हैं। हरियाणा का डैमेज कंट्रोल करने का निर्देश हैं। यह सब ड्रामा केवल किसानों को लुभाने के लिए किया जा रहा है। किसान आंदोलन की तीव्रता को कम किया जा रहा है। पांच साल क्या किया, जाट राजा पांच साल में एक बार भी याद क्यो नहीं आए ? उनके नाम से पांच साल में कितनी योजनाएं दी वो भी बता दीजिए। जातिवादी सरकार सिवाय जातिवाद के और कर ही क्या सकती है। चुनावी राजनीति का खेल है, गोदी मीडिया वाले उनके पाले में जो खड़े हुए हैं उन्हीं की भाषा में बोलेंगे, उन्हीं के गीत गाएंगे। वो अपने नैरेटिव सैट कर रहे हैं, अब्बा जान, अब जाट राजा। ये कोरी चुनावी राजनीति है। अपने नैरेटिव सैट करने के लिए, पर वो तो कर्तव्यविमूढ़ हैं, केवल उनकी आलोचना करके इतिश्री कर लेते हैं। साहब जी अपने भाषण से ही मीडिया की लाइन तय कर देते हैं, वैसे निर्देश भी पहुंचाए जाते हैं। बार बार बोलना ब्रेन वाश की प्रक्रिया है। फिर उसके बाहर लोग सोच ही नहीं पाते। उनकी सोच को मनचाही दिशा दी जाती है।  पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाट मुसलमान रार बनी रहे। आजादी चाहने वाला कोई चैनल ये भी बता दे कि राजा महेंद्र प्रताप ने आजाद हिंद सरकार का गठन भी किया था। पलक झपकते ही सारे आजाद कर दिये जायेंगें। इसी में फायदा है, बोलने वाले का और बुलवाने वाले का भी, यूनिवर्सिटी चालू हो जाए तो समझें। यह तो अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी को नीचा दिखाने और वोट कमाने हेतु कलाकारी है। बहुत से दुरस्त स्थान है उतरप्रदेश में जहां विश्वविद्यालय की सख्त जरूरत है। इसकी जड़ में किसान आंदोलन है मगर ये पब्लिक है सब जानती है। मानसिक दिवालियापन की रट लगाकर मिडिया अप्रत्यक्षत रूप से सरकार की हर गलत बात का सहयोग कर रहा है। जाट राजा रट -रट कर लोगों में खिन्नता पैदा कर रही है। क्योंकि जाटों ने सरकार की नाक में दम कर रखा है इसीलिए नाराज़ जाटों को रिझाना जो है, चुनाव आने वाले हैं न, जाट ज्यादा तर किसान हैं। इस तरह गोदी मीडिया ने हर हर महादेव अल्लाहु अकबर का तोड़ निकाला है।


श्री सिंह ने कहा कि आदर्श चुराने की इनकी आदत पुरानी है क्योंकि यह खुद अच्छे से जानते है कि इनके संगठन के पास ऐसा कोई नेता कभी नहीं हुआ जिसके नाम पर जनता इन्हें वोट दे सके। एक क्रांतिकारी, संघर्षशील समाजवादी व्यक्ति की उसकी जाति से पहचान कराना उसके साथ घोर अन्याय है। इस दुर्व्यवहार में कुछ अच्छे चैनल भी शामिल हैं जो और भी अफ़सोसनाक है। अब उत्तर प्रदेश में किसानो की नाराज़गी के चलते भाजपा को अचानक राजा महेंद्र प्रताप सिंह याद आ गए । राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे और यह बात बार बताने की ज़रूरत नहीं है कि एक पार्टी का स्वतंत्रता संग्राम से दूर दूर तक कोई सम्बंध नहीं था। इसलिए राजा साहब से उनका सम्बंध होना मुमकिन नहीं है। राजा साहब लेनिन से बहुत प्रभावित थे और उनका सारी ज़िंदगी सेक्युलर विचारधारा में विश्वास रहा। 1957 में मथुरा से राजा साहब ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लोकसभा का चुनाव लड़ा। पूरे देश के एक पार्टी की विचारधारा के लोग राजा साहब को हराने के लिए मथुरा में जमा हुए और मथुरा में घर घर जाकर एक पार्टी के लोगों ने राजा साहब के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार किया। राजा महेंद्र प्रताप सिंह उसके बाद भी मथुरा से जीत गए थे।भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी अटल बिहारी बाजपेई बुरी तरह से हारें और चौथे स्थान पर आए थे। अटल जी को बुरी तरह चुनाव हराने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी को आज एक पार्टी के लोग अपना आदर्श बना रहे हैं। एक पार्टी 100 साल में कोई एक ऐसा नेता पैदा नहीं कर पाया जिसके नाम पर भाजपा चुनाव में वोट माँग सके। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कलकत्ता के सड़कों पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ क्या बर्ताव किया था। यह बंगाल का बच्चा बच्चा जानता है, फिर भी बंगाल के चुनाव में भाजपा नेताजी के और टेगोर का नाम लेकर वोट माँगती है। पंजाब चुनाव आते ही भाजपा भगत सिंह की शरण में चली जाती है जबकि यह सर्वविदित है कि भगत सिंह को उस समय के संघ के नेता उन्मादी बोलते थे और भगत सिंह के जेल जाने के बाद संघ के किसी नेता,किसी वकील की उनसे मिलने या उनकी पैरवी की कोई मिसाल नहीं मिलती हैं। उस ज़माने की किसी पत्रिका या अख़बार में भी एक पार्टी से जुड़े किसी नेता ने भगत सिंह के समर्थन में कुछ लिखा हो इसकी भी कोई जानकारी आज तक नहीं मिल पायी। गुजरात चुनाव में भाजपा सरदार पटेल के सहारे चुनाव में उतरती है। सरदार पटेल कांग्रेस के सर्वमान्य नेता और देश के पहले गृह मंत्री थे। गांधी जी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने एक पार्टी को प्रतिबंधित कर दिया था। एक पार्टी के बारे में सरदार पटेल के विचार सर्वविदित हैं। इसके पहले क्या लोगों को पता ही नहीं था कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह जाट थे। एक पार्टी ने पहले घर्म फिर जातियां, फिर उप जातियां में हम बंट गए हैं। ये हमे कभी भारतीय होने नहीं देंगे।गोदी मीडिया पिछले सात साल से यही कर रहा हैं। जैसे - जैसे पास चुनाव पास आने लगे हैं सरकार को जाट याद आने लग हैं। वोट के लिए रट लगा चुनावी राजनीति का खेल है। ये कोरी चुनावी राजनीति है। इसकी जड़ में किसान आंदोलन है मगर बेतहासा महँगाई की मार झेल रही पब्लिक है सब जानती है और चुपचाप इनका खेल समझ रही हैं मौके पर इनका पक्का इलाज़ करेगीं।

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