तकनीकी प्रकृति मानव जाति के सामने आने वाली चुनौतियों को हल करने की कुंजी है

-पर्याप्त व पौष्टिक भोजन प्राप्त करने हेतु वैज्ञानिक कृषि अनुसंधान एवं विकास को नए तरीके से देखने व अनुकूल बनाने की ज़रूरत..

-कृषि उत्पादकता बढ़ाने हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान में अधिक निवेश की ज़रूरत.. 


किशन भावनानी

वैश्विक स्तर पर आज बहुत तेजी के साथ हर क्षेत्र में विकास हो रहा है और नए-नए आयामों को हासिल किया जा रहा है, जिसकी उम्मीद भी मानवीय जीवन में नहीं थी की गई थी। धरती के गर्भ से लेकर आसमान में चांद तक पहुंचने जैसा अनोखा कार्य मानव बुद्धि के बल पर प्राप्त कर लिया गया है।

...साथियों इसमें सबसे महत्वपूर्ण रोल अनुसंधान का रहा है किसी भी क्षेत्र में उन्नति प्राप्त करने के लिए उस क्षेत्र में उस विषय को लेकर अनुसंधान करना सबसे अधिक ज़रूरी है, जिसका रूपांतरण वर्तमान वैज्ञानिक युग में वैज्ञानिक अनुसंधान ने ले लिया है। अर्थात वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर ही हम किसी भी समस्या का समाधान या आयाम प्राप्त करने के लिए उसकी ज़ड़ में घुस जाते हैं और पूरे डाटा का संग्रहण कर, उसका विश्लेषणकर परीक्षण कर नए आयामों को हासिल करते हैं...। 

साथियों बात अगर हम कृषि क्षेत्र की करें तो यह मानव जीवन के जीवन यापन करने का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसके बिना मानव जीवन इस पृथ्वी पर शायद ही जीवित रह पाएगा, इसलिए इस क्षेत्र को वैश्विक रूप से सभी देशों द्वारा आपसी गठजोड़ स्थापित कर, अति विकसित करना है और आपस में कृषिक्षेत्र से संबंधित प्रौद्योगिकी को शेयर कर बढ़ती जनसंख्या के अनुरूप प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर इस क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देकर तकनीकी प्रगति करना है, क्योंकि तकनीकी प्रकृति मानव जाति के सामने आने वाली चुनौतियों को हल करने की कुंजी है।

...साथियों बात अगर हम भारत में वैज्ञानिक कृषि अनुसंधान एवं विकास की करें तो भारत में वैज्ञानिक कृषि अनुसंधान ने देश को खाद्यान्न आयातक से निर्यातक देश के रूप में बदलने में प्रमुख भूमिका अदा की है। 

भारत में कृषि अनुसंधान व सुधारोंमें कृषि जींस बैंक की स्थापना, किसानों के खेतों के पास इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना, डिजिटल कृषि मिशन 2021-25 इत्यादि शामिल हैं।...साथियों बात अगर हम भारत के कृषि क्षेत्र को अनुसंधानों पर आयोजित वैश्विक संगोष्ठीयों, सम्मेलनों, वेबीनारों, बैठकों की करें तो भारत हर उपरोक्त कार्यक्रमों में शामिल होकर वैश्विक सुझाव प्राप्त करना और अपना मार्गदर्शन देना जारी रखे हुए हैं...। 

साथियों बात अगर हम दिनांक 18 सितंबर 2021 इतालवी प्रेसिडेंसी द्वारा आयोजित जी-20 देशों के केंद्रीय कृषि मंत्रियों की वर्चुअल बैठक की करें तो, इसमें भारत की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्री सहित चार सदस्यों का प्रतिनिधि मंडल शामिल हुआ पीआईबी के अनुसार इसमें एक सत्र, स्थिरता के पीछे एक प्रेरक शक्ति के रूप में अनुसंधान, इस पर हुआ जिसमें केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा, कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों में जीनोमिक्स, डिजिटल कृषि, जलवायु स्मार्ट प्रौद्योगिकियों व पद्धतियों, कुशल जल उपयोग उपकरण, उच्‍च उपज वाली एवं जैव अनुकूल किस्मों के विकास, सुव्‍यवस्‍थित उत्पादन, गुणवत्‍ता तथा सुरक्षा मानकों को लेकर कृषि अनुसंधान में ठोस प्रयास जारी रहेंगे। चरम जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए पर्यावरणीय स्थिरता के साथ-साथ पर्याप्त व पौष्टिक भोजन प्राप्त करने हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान में अधिक निवेश सहित कृषि अनुसंधान एवं विकास को नए तरीके से देखने व अनुकूल बनाने की जरूरत है। इस दिशा में काम करते हुए हमने विभिन्न फसलों की 17 किस्मों को विकसित और जारी किया हैं जो जैविक व अजैविक तनावों के प्रति प्रतिरोधी हैं।

इसी प्रकार आईसीएआर लोगों की पोषण संबंधी आवश्यकता को पूरा करने के लिए जैव फोर्टिफाइड किस्मों का विकास कर रहा है। टिकाऊ कृषि पर राष्ट्रीय मिशन शुरू किया गया है जो कृषि में एकीकृत कृषि प्रणाली दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है। लोगों के लाभ के लिए प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग, कृषि मूल्य श्रृंखलाओं के विकास व व्यापार को बढ़ावा देने के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाने के लिए अनुसंधान एवं विकास तथा कार्यक्रम संबंधी हस्तक्षेपों में, सर्वोत्तम पद्धतियों के आदान-प्रदान में सहयोग के प्रयास भारत जारी रखेगा। 

भारत में कृषि अनुसंधान ने देश को खाद्यान्न आयातक से, निर्यातक के रूप में बदलने में प्रमुख भूमिका निभाई हैं। समेकित अनुसंधान प्रयास बेहतर मृदा उत्पादकता,भंडारण के लिए जल प्रबंधन, विस्तार व दक्षता हेतु तकनीकों और पद्धतियों के पैकेज को विकसित कर सकते हैं। तकनीकी प्रगति मानव जाति के सामने आने वाली चुनौतियों को हल करने की कुंजी है। आज सालाना 308 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन के साथ भारत न केवल खाद्य सुरक्षा के दायरे में हैं, बल्कि अन्य देशों को भी पूर्ति कर रहा हैं। 

भारत ने वैज्ञानिकों के कुशल अनुसंधान के कारण कृषि उपज के क्षेत्र में क्रांति का अनुभव किया है। तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन से 10 साल में तिलहन उत्पादन दोगुना हुआ, वहीं हाल के दिनों में भारत ने बीज प्रणाली में नई किस्मों की शुरूआत के कारण दलहन उत्पादन में काफी प्रगति की है। इस संबंध में आदरणीय पीएम के आह्वान का विशेष असर हुआ है। आगे कहा कि वर्ष 2030-31 तक भारत की आबादी 150 करोड़ से ज्यादा होने की संभावना है, जिसके पोषण के लिए अनाज की मांग तब लगभग 350 मिलियन टन तक होने का अनुमान है।

इसी तरह खाद्य तेलों,दूध व दूध से बने उत्पादों, मांस, अंडे, मछली, सब्जियों फलों और चीनी की मांग काफी बढ़ जाएगी। इसके मुकाबले प्राकृतिक संसाधन सीमित है और जलवायु परिवर्तन की चुनौती भी है। बढ़ी मांग को पूरा करने की रणनीति उत्पादकता बढ़ाने व किसानों की आय वृद्धि के इर्द-गिर्द घूमती है। कृषि 21वीं सदी की तीन सबसे बड़ी चुनौतियों खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना,जलवायु परिवर्तन की अनुकूलता और जलवायु परिवर्तन को कम करने में से एक है। पानी, ऊर्जा व भूमि जैसे महत्वपूर्ण संसाधन तेजी से कम हो रहे हैं। 

कृषि में स्थिरता की आवश्यकता है जिसमें उत्पादन व आय में एक साथ वृद्धि, फसल, पशुधन, मत्स्य पालन और कृषि वानिकी प्रणालियों को संतुलित करते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलता, संसाधन उपयोग दक्षता में वृद्धि, पर्यावरण की रक्षा तथा पारिस्थिति तंत्र सेवाएं बनाए रखना शामिल हैं। 

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे के पर्याप्त व पौष्टिक भोजन प्राप्त करने हेतु वैज्ञानिक कृषि अनुसंधान एवं विकास को नए तरीके से देखने पर अनुकूल बनाने की जरूरत है तथा कृषि उत्पादकता बढ़ाने हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान में अधिक निवेश की जरूरत है।

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