बिना शिक्षा की कैसी राजनीति?
सुनीता कुमारी
पूर्णिया बिहार। आज हम सब आए दिन किसी न किसी के मुखारविंद से सुनते रहते हैं कि व्यक्ति को समय के साथ चलना चाहिए।
आज जो व्यक्ति समय के साथ नहीं चलता है वह हमेशा संसार की प्रतियोगिता में पीछे रह जाता है। उसे कई सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है एवं उसकी तरक्की आगे की ओर बढ़ने की अपेक्षा पीछे की ओर वापस लौटती है।
..जब भारत का एक एक व्यक्ति शिक्षित होगा देश स्वतः ही विकसित होगा..
समय के साथ ताल से ताल मिलाकर चलना ही तरक्की है। यह बात व्यक्ति, समाज, राष्ट्र, संस्कृति, चिकित्सा, शिक्षा, संस्थान, विभाग आदि हर जगह लागू होती है। भारत की राजनीति में भी लागू होती है। भारत की राजनीति कई सौ वर्षों से ढुलमुल स्थिति में है, एवं आजादी के बाद भी भारत की राजनीतिक मजबूत स्थिति में नहीं आ पाई है। अब भी भारत की राजनीति में समस्याएं जड़ जमाए हुई है। जिस कारण, भारत का विकास बाधित हो रहा है ।
आज भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई जैसी समस्या आजादी के वर्षो बाद भी पीछा नही छोड़ रही है?
आजादी के बाद जिस गति से भारत के प्रत्येक क्षेत्र में विकास होना चाहिए था, वह नहीं हो पा रहा है। बहुत सारी समस्याएं जनता के सामने विकराल रूप में खड़ी हैं। इसके लिए कहीं ना कहीं हम आम जनता तो जिम्मेदार है ही, साथ ही हमारी राजनीति व्यवस्था भी जिम्मेदार है।
हमारे देश में चपरासी से लेकर कमिश्नर तक प्राथमिक शिक्षक से लेकर शिक्षा पदाधिकारी तक हर विभाग में नीचे से ऊपर तक शैक्षणिक योग्यता निर्धारित है। परंतु देश के बड़े-बड़े राजनीति पदों पर शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नही है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद विधायक, मुखिया सरपंच किसी की भी शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नही है। अशिक्षित व्यक्ति भी चुनाव लड़कर मंत्री बन सकता है। कई उदाहरण हमारे देश की राजनीति में मौजूद है।
जिस प्रत्याशी को शिक्षित जनता चुनाव में जीत दिलाकर उनके हाथों में देश के शासन की बागडोर देती है उन्ही नेताओं की कोई शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं की गई है। प्रधानमंत्री से लेकर विधायक तक की कोई शैक्षणिक योग्यता चुनाव में निर्धारित नही की गई है। जिन्हें राजनीति में आना है व धनवान बनना है। उन्हे सिर्फ क्रन्तिकारी भाषण देना आना चाहिए? लोगों को बरगलाना और रिझाना आना चाहिए?
यही नेताओ की सबसे बड़ी योग्यता है? मात्र भाषण देना?
इसमें सबसे बड़ा दोष हमारे देश की शासन व्यवस्था की है। हमारे जीवन का मुख्य तत्व "शिक्षा" को ही राजनीति में शामिल नही किया गया है। बिना शिक्षा के विकास संभव नही है। ये जानते हुए भी भारत की राजनीति से" शिक्षा" को कोसो दूर रखा गया है।
बदलते समय के साथ अब जरूरी हो गया है कि आज शिक्षित व्यक्ति को ही देश की राजनीति में आने दिया जाए..
1947 में देश के आजाद होने के उपरांत भारत में लोकतंत्र स्थापना के लिए 1952 में पहली बार लोकसभा का चुनाव हुआ । इस चुनाव में संविधान के अनुच्छेद 84 (B)और संविधान के अनुच्छेद 173( B) के अनुसार भारत का कोई भी व्यक्ति चुनाव में प्रत्याशी बन सकता है । चुनाव लड़ने के लिए व्यक्ति की उम्र 25 वर्ष से अधिक होनी चाहिए। (विधान सभा और लोक सभा के लिए उम्र की सीमा 25 से लेकर 35 वर्ष है।) व्यक्ति भारत का नागरिक हो। मानसिक रूप से स्वस्थ हो एवं वोटरलिस्ट में नाम हो, वह चुनाव लड़ सकता है। इस अनुच्छेद में शिक्षा का कोई जिक्र नही है।
इस व्यवस्था को देखकर यही लगता है कि यदि आपका पढ़ने में मन नही लगता है, कृषि या रोजगार में भी मन नही लगता है, नौकरी करना आपके शान के खिलाफ है तो आपके लिए सबसे बेहतर विकल्प भारत में राजनीति है। इसके लिए आपको अच्छा भाषण देना आना चाहिए। उपर्युक्त सारी बातो से यही साबित होता है कि 1947 से लेकर अबतक बहुत सारे नेता गैर शैक्षणिक योग्यता के आधार पर मजे से राजनीति कर रहे है। जिसका परिणाम पूरा भारत भुगत रहा है देश की जनता भुगत रही है। अब इस दिशा में बदलाव होना आवश्यक हो गया है।
आज हमारे देश में बेरोजगारी एक भीषण समस्या है। प्रत्येक राज्य के युवा इस परेशानी से परेशान है। अच्छी खासी डिग्री होने के बाद भी उन्हे नौकरी नही मिल रही है। प्रतियोगिता परीक्षाओं में परीक्षार्थी की भीड़ का दृश्य सोचने के लिए बाधित करता है कि जो युवा देश की रीढ़ हैं, वही युवा नौकरी के लिए दर दर भटक रही है। नौकरी के लिए इंटरव्यूज देने के लिए, पढ़े लिखे युवा दर दर भटक रहे है।
जो युवा रोजगार करना चाहते है उनके पास पूँजी नही है। जो युवा कृषि व अन्य कार्य करना चाहते है उनके पास संसाधन नही है। वही दूसरी ओर परिवारवाद, क्षेत्रवाद एवं जातिवाद की राजनीति कर नेताओ की अगली पीढ़ी भी मजे से राजनीति में बनी हुई है। इन नेताओ के बच्चों को डिग्री की अवश्यकता ही नही है? पिता का नाम ही इनकी वास्तविक डिग्री है। बिडम्बना तो यह है कि भारत की पढ़ी लिखी जनता नेताओं के डिग्रीविहीन बच्चों को वोट देकर देश की राजनीति में जगह दे देती है।
पढ़ी लिखी अंधभक्त जनता अपने लिए काना नेता चुनती है फिर बाद में उसी काना नेता के गलत फैसलों के कारण शोषण, बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई जैसी समस्याओं में फसकर तड़पती है? शिक्षा हमारे जीवन का वह लक्ष्मण बूटी है जो हमें सभी समस्याओं से निजात दिलाती है तो फिर "शिक्षा" को राजनीति से दूर क्यों रखा गया है।
नेताओ के शैक्षणिक योग्यता को क्यों नही निर्धारित किया गया है? भारत की राजनीति में चुनाव लड़ने की शैक्षणिक योग्यता का कोई स्थान नहीं है ।चुनाव लड़ने की योग्यता एक मजदूर की योग्यता के बराबर है। विडंबना है कि देश को संभालने वाले हर मंत्रालय में एवं अन्य सरकारी कार्यालय में नेतागण का साथ उच्च शिक्षा प्राप्त कर कड़ी प्रतियोगिता के द्वारा चुने गये अधिकारी देते है। मतलब यह कि, शासक अनपढ़ सेवक पढ़ा लिखा नेतागण अशिक्षित और उनका साथ ऐसे बड़े बड़े अधिकारी डीएम, एसडीएम, आईएएस, आईपीएस, जो कड़ी मेहनत करके संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करके अधिकारी बनते हैं। यह उन उस कम पढ़े लिखे नेता अंडर में काम करते हैं।
जिस समय देश आजाद हुआ था। उस समय भारत की शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक सभी तरह से देश की हालत ठीक नही थी। अंग्रेजो के शोषण ने भारत का बुरा हाल कर दिया था। भारत में मात्र 18% ही साक्षरता थी ।पूरे देश में मात्र 13000 हजार प्राथमिक विद्यालय, 7000 और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय थे। भारत में उस वक्त कोई ठोस शिक्षा व्यवस्था नही थी। उस वक्त शिक्षित लोगों का अभाव था। हमारी शिक्षा व्यवस्था इतनी कमजोर थी कि चारों ओर अशिक्षा ही अशिक्षा थी।परंतु आजादी के बाद शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर विकास होता गया और अब हमारे देश में 77 पॉइंट 7% शिक्षा है।
अब समय आ गया है कि भारत की राजनीति में भी चुनाव लड़ने की शैक्षनिक योग्यता का निर्धारण होना चाहिए। तभी हमारे देश का विकास संभव है क्योंकि, "जिस देश के लोग शिक्षित हैं, वही देश विकसित है।" शिक्षा ही एकमात्र ऐसा आधार है जो किसी भी समस्या का समाधान कर सकता है ।समस्या चाहे जितनी भी जटिल क्यों ना हो।
भारत की राजनीति में नेतागण का कम पढ़ा लिखा होना सभी समस्या का कारण है..
भाषण के द्वारा नेतागण अच्छे-अच्छे पढ़े लिखों को चित कर देते हैं। जनता को ऐसा मोहित करते हैं कि जनता ऐसे नेताओं के एक-एक शब्द पर भरोसा करती है। लेकिन यह स्थिति भारत की के लिए अच्छा नहीं है। भारत को अगर देश में विकास चाहिए तो, देश के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सोच बदलनी होगी। शिक्षा का दीप हर क्षेत्र में जलाना होगा।
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