विश्व साक्षरता दिवस *




शिक्षा जीवन की रोशनी है। उसके उजाले में ही जीवन पथ पर चलने का हौसला, उम्मीद एवं जीवन जीने की किरण मिलती है।शिक्षा के बिना मानव पशु के समान है। शिक्षा के बिना जीवन में अंधकार ही अंधकार है। साक्षरता से व्यक्ति अपने अधिकारों को समझ सकता है। अपने कर्तव्यों का पालन कर सकता है। अपना स्वयं का और राष्ट्र के महत्व को समझ सकता है। इस प्रकार वह देश ही नहीं बल्कि दुनिया का शिक्षित समझदार नागरिक बनने की प्रथम सीढ़ी के रूप में आधार बन सकता है।17 नवंबर 1965 में ईरान की राजधानी तेहरान में विश्व के अनेक देशों के शिक्षा मंत्रियों का एक सम्मेलन हुआ जिसमें यह प्रस्ताव रखा गया कि 8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस के रुप में मनाया जाए।
सन् 1966 में प्रथम विश्व साक्षरता दिवस मनाया गया तथा 2009-10 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा साक्षरता दशक घोषित किया गया।
शिक्षा से ज्ञान, समझ पैदा होती है और ज्ञान से सोच-समझ और मजबूत सोच-समझ से कुशल व्यवहार से व्यापार तथा रोजगार प्राप्त किया जा सकता है तथा रोजगार से जीवन चलता है। सुखी जीवन के लिए पौष्टिक भोजन, वस्त्र मकान, शुद्ध पानी ,उत्तम स्वास्थ्य की आवश्यकता होती है।रोजगार के लिए साधनों की आवश्यकता होती है जिसके लिए दुनिया के सभी लोगों की श्रम-साधना की जरूरत है और इस श्रम साधना हेतु साधनों की। हमारे देश की बढ़ती जनसंख्या के जनबल रूपी धन को धनबल में लगाने के लिए सर्वप्रथम सर्वश्रेष्ठ महत्वपूर्ण कार्य है तो वह शिक्षा एवं शिक्षित और आदर्श नागरिक की।आज के इस तकनीकी युग में साक्षर होना और उसका दूसरा जन्म होना है।व्यक्ति साक्षर होकर ही रोजगार प्राप्त कर सकता है और रोजगार से ही अपना देश और विश्व का विकास करना संभव है आज के इस दौर में, विश्व महामारी में दुनिया के प्रत्येक नागरिक को आत्मनिर्भर बनने हेतु तथा राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने हेतु उत्तम शिक्षा,स्वास्थ्य एवं रोजगार से ही संभव है। तभी हमारा विकास सही मायने में संभव हो सकेगा। आज इस विश्व महामारी कोरोना ने बच्चों की फिजिकल कक्षाओं को, वर्चुअल क्लास के रुप में ले ली है।जिसकी वजह से देश- दुनिया को अत्यधिक कठिनाइयों का सामना जरूर करना पड़ रहा है। किंतु शिक्षा  घर-घर और द्वार-द्वार से शिक्षित-जन विद्या -दान के माध्यम से विश्व महायज्ञ में अपनी आहुति से संपन्न कर मानव मात्र का कल्याण हेतु इस महायज्ञ में अपनी आहुति देकर इसे सफल बना सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 4 अरब लोग मात्र साक्षर हैं वही 1 अरब लोग पढ़ना- लिखना भी नहीं जानते हैं। भारत में साक्षरता के आंकड़ों  को देखें तो केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने 2018 में शैक्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक साक्षर लोगों की संख्या 79 प्रतिशत है जो ग्रामीण एवं शहरी जनसंख्या को मिलाकर है। ग्रामीण साक्षरता के रूप में 64.7%  है जिसमें 74.3 प्रतिशत पुरुष और 56.8% महिलाएं साक्षर है। शहरी क्षेत्र में 79.5% साक्षरता है जिसमें 83.7% पुरुष है एवं 74% महिला साक्षर हैं। इन आंकड़ों पर गौर करें तो महिलाओं के साक्षरता का आंकड़े पुरुष साक्षरता से पीछे हैं इसका मुख्य कारण देश में लिंग असमानता एवं रूढ़िवादी सोच का कारण है। आज नई शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में देने की बात कही गई है जिससे कुछ हद तक सुधार संभव है। महान कवि, साहित्यकार कन्हैया लाल सेठिया ने भी कहा है कि -"मायड़ भाषा बोलता, जणने  आवे लाज। अस्या कपुता सूं दु:खी सगळो देश समाज।"
निजी एवं सरकारी स्कूल निरीक्षक बच्चों को गोद लेकर उनके भोजन,मनोरंजन एवं स्वास्थ्य तथा छात्रवृत्ति के माध्यम से भी निरीक्षक बच्चों को साक्षर करने में सहयोग प्रदान कर सकते हैं।
-डॉ.कान्ति लाल यादव
(सहआचार्य माधव विश्वविद्यालय पिंडवाड़ा सिरोही (राज.))

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