लेख दुसरा भाग 

भारत की बढ़ती जनसंख्या व राजनीति

डराता आकड़ा -जनसंख्या

क्रमशः लेख भाग दुसरा

लेखिका सुनीता कुमारी पूर्णियाँ बिहार।

भारत में जनसंख्या वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट का नाम भी दिया जाता रहा है। जिस तरह से भारत में जनसंख्या वृद्धि हुई है , जनसंख्या विस्फोट का नाम देना भी स्वभाविक ही लगता है ।बीसवीं सदी की शुरुआत में भारत की जनसंख्या 23 करोड़ 84 लाख थी,एवं आजादी के समय यह 33 करोड़ थी। वर्तमान में यह संख्या 1 अरब 33 करोड़ है ।1901 से 2021 तक की समयावधिमें,1911 से 1921 के दशक को छोड़कर प्रत्येक दशक में ,भारत में जनसंख्या वृद्धि देखी गई है। सबसे ज्यादा जनसंख्या वृद्धि 1960 से 1980 के दशक में हुई है।वर्तमान में भारत की  जनसंख्या 136 पॉइंट 64 करोड़ है जनसंख्या वृद्धि के आंकड़ों पर नजर रखने वाली इकाई वर्ल्डोमीटर के अनुसार यह आंकड़ा 2021 में 140 करोड़ हो चुका है ।वहीं अमेरिका की एक रिपोर्ट के अनुसार 2010 से 2019 के बीच कुल वार्षिक वृद्धि दर 1 पॉइंट 2 से बढ़कर 1 पॉइंट 36 हो गया है। चीन की जनसंख्या 141 करोड़ है और यह दुनिया का पहला जनसंख्या वाला देश है भारत भी लगभग चीन  की बराबरी में आ खड़ा हुआ है। 


समस्या चाहे जितनी भी बड़ी क्यों ना हो यदि उसका समाधान गलत तरीके से किया जाए तो उसका परिणाम भी गलत ही निकलता है और यही बात भारत की जनसंख्या के संबंध में रुकावट बनी है। जनसंख्या विस्फोट चाहे जिस भी कारण से रहा हो, किंतु इसे रोकने का तरीका गलत रहा है 1970 के दशक में हर चौक चौराहे पर पान दुकान एवं नेताओं के बीच भाषण का मुख्य मुद्दा जनसंख्या वृद्धि ही थी, जिसे इंदिरा गांधी की सरकार ने युद्ध स्तर पर रोकना चाहा ।कई सारे प्रयासों में एक प्रयास नसबंदी था जो, आलोचना का विषय  बन गया। 1975 में आपातकाल के दौरान नागरिकों से अधिकार छीन लिए गए थे ,एवं जबरदस्ती नसबंदी अभियान चलाया गया था। विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक 1 साल में ही 62 लाख पुरुषों का नसबंदी कराया गया था ,जिसमें 2000 हजार पुरुषों की जान चली गई थी। इस विनाशकारी अभियान के बाद सभी नेताओं ने और आम लोगों ने जनसंख्या मुद्दे पर बात करना बंद कर दिया ।यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चली गई । कुछ सांसद इस दिशा में आगे बढ़ते रहें परंतु कामयाब नहीं हुए ।जनसंख्या नियंत्रण के लिए नसबंदी अभियान जनसंख्या नियंत्रण कानून के आगे आ खड़ा हुआ। 


पुनः2020 के स्वतंत्रता संग्राम के भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने जनसंख्या विस्फोट शब्द का उच्चारण किया एवं 1970 के मुख्य मुद्दा को वापस दोहराया और कहा "समाज वह लघु वर्ग है जो अपने परिवार। को छोटा रखता है, सम्मान का हकदार है वह जो कर रहा है वह देश भक्ति का कार्य है ।"

प्रधानमंत्री के इस भाषण के तुरंत बाद बीजेपी की असम सरकार ने महिला सशक्तिकरण एवं जनसंख्या नियंत्रण कानून को लागू करना चाहा ।उसके बाद कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी जनसंख्या कानून की पहल की जो कि, एक सराहनीय प्रयास है। परंतु दिक्कत यह है कि जहां कुछ नेता इसके पक्ष में है, वही बहुत सारे नेता इसके विपक्ष में भी हैं।उत्तर प्रदेश से पूर्व  राजस्थान, मध्य प्रदेश ,महाराष्ट्र ,गुजरात ,उड़ीसा एवं हरियाणा ,में भी यह बिल लाया जा चुका है, पर यह कारगर नहीं हो पा रहा है ।होगा भी कैसे नेताओं की  उदासीनता इस कानून के आड़े आ रही है।उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी जी ने जनसंख्या नियंत्रण कानून की पहल की, तो उनकी इस पहल में सभी नेताओं को साथ देना चाहिए, किंतु ऐसा नहीं है स्वयं नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार को जनसंख्या नियंत्रण के किसी कानून की आवश्यकता नहीं है। बिहार की बहू बेटियां बढ़ रही हैं और 2048 तक स्वतः ही बिहार की जनसंख्या नियंत्रित हो जाएगी। उनकी यह बात सुनकर बड़ा अजीब लग रहा है  कि ,जहां योगी जी इतना अच्छा पहल कर रहे हैं, तो नीतीश जी को उनका साथ देना चाहिए ।लेकिन ऐसा नहीं है सभी नेता अपने-अपने व्यक्तिगत मंतव्य को जनसंख्या नियंत्रण कानून के आगे ला खड़ा कर देते हैं ।जिस कारण इस पर एक राय नहीं बन पाती है। और यह कानून अधर में लटका हुआ रहता है। बढ़ती हुई जनसंख्या से किसी नेतागण को विशेष चिंता नहीं है ,अगर होता तो निश्चय ही भारत में इतनी जनसंख्या बढ़ोतरी नहीं हुई होती। जबकि सभी जानते हैं की जनसंख्या वृद्धि पर रोक तब लगेगा जब शिक्षा के साथ-साथ ठोस जनसंख्या कानून भी लागू होगा।  जो लोग इस कानून के पक्ष में काम कर रहे हैं ,जो नेता इस कानून के पक्षधर हैं उनके पक्ष में सभी नेताओं को आना होगा अपने व्यक्तिगत स्वार्थ और मंतव्य को छोड़कर एक मत होना होगा तभी इस जनसंख्या वृद्धि कात निराकरण हो सकेगा।


*आगे क्रमशः भाग तिसरे मे वर्तमान परिपेक्ष में जनसंख्या*

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