क्या भारत विश्वगुरु बनने को तैयार है?

(लेख अंतिम भाग)



...अपने अतीत के गौरव को फिर से प्राप्त करने की दिशा में अभी बहुत से आवश्यक कार्ये करने होंगे क्योंकि फिर से विश्व गुरु पद को प्राप्त करना आसान नही है। इसे नए सिरे से हासिल करना होगा। हमारे लोगों को आधुनिक समय के अनुरूप नई सोच के साथ अपनी जड़ों से जुड़ना होगा। और दुनिया मे खुद को साबित करना होगा।

इसके लिए हमको विश्वगुरु बनने से पहले विश्वछात्र बनना पड़ेगा। और प्राचीन भारत रूपी गुरु से सीखना पड़ेगा। क्योंकि कोई भी वृक्ष अपनी जड़ों से अलग होकर फलफूल नही सकता और खुद की कमियों को दूर करने के लिये अपने अतीत रूपी गुरु से सीखना होगा जो हमे विश्वगुरु बनने के मार्ग को प्रशस्त करेगा। प्रसन्नता की बात ये है कि कुछ सालों से देश की जनता अपनी संस्कृति और सभ्यता के बारे मे जान ही नही रहे बल्कि उसपर गर्व करते हुए अपना भी रही है। देश तोड़ने वाली ताकतों को मुंहतोड़ जवाब भी दे रही। हमारी सरकार भी हमारी संस्कृति और सनातनी सोच जैसे योग और वसुधैव कुटुम्बकम को दुनिया मे पहुँचाकर दुनिया मे शांति, स्वास्थ्य, प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया है। इसके अलावा भी बहुत कुछ करना बाकी है एक सशक्त और अखंड राष्ट्र बनाने के लिए तभी तो भारत विश्वगुरु बन पाएगा। वर्तमान में सारी दुनिया में दो तरह की प्रभुता है समाजवाद और पूंजीवाद लेकिन भारत को पूंजीवाद और समाजवाद का ऐसा संतुलन तलाश कर सकता है जिसे दुनिया अपना सके।और ज्यादा खुशहाल हो सके।

आज विश्व में कई देश तानाशाह सरकारों के अधीन पीडि़त हैं। भारत उन्हें आगे बढ़ने की राह दिखा सकता है।क्योंकि उसके पास दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्रों में से एक है, परंतु हमारी जनता की सहभागिता मतदान तक ही सीमित है। और राजनीतिक पार्टियों लोकतांत्रिक न होकर परिवारों तक सीमित हो गयी है।जिससे देश मे अराजकता फैल रही है वोटबैंक ओर सत्ता की लालच के चलते देश मे मुफ्तखोरी, नेतायों और चुनाव टिकटो की खरीद फरोख्त की बीमारी फैलती जा रही है। भ्रष्टचार बढ़ रहा है और करदातायो का धन बर्बाद हो रहा है। धीरे धीरे देश धर्म जाति मैं बंट रहा है।जिसपर लगाम लगाना बहुत आवश्यक है दूसरी तरफ देश की जनता जागरूक, शिक्षित और देशभक्त होना चाहिए और अपने वोट की कीमत समझना चाहिये तभी देश और पार्टियों के अंदर भी सच्चे लोकतंत्र की स्थापना हो सकेगी ओर ये संदेश पूरी दुनिया को हम दे सकेंगे।

भारत शुरू से बहुत जटिल समस्या से जूझता आ रहा है वो है देशद्रोहिता, लालच, सत्ता का मोह और धर्म जाति हिंसा। जिसने न केवल देश को कई सौ सालों तक गुलाम बनाया बल्कि आज भी देश की अखंडता के लिये एक बहुत बड़ी खतरा है। आज भी देश के अंदर देशद्रोही बड़ी मात्रा मे है जो आम जनता को धर्म जाति के नाम पर भड़का रहे है और अंदर से देश को खोखला कर देश तोड़ने का कार्ये कर रहे और इनकी सहायता देश के दुश्मन कर रहे है। इसके लिए सरकार को ऐसे लोगो से निपटने के लिये देश की कानूनी व्यवस्था को मजबूत करना चाहिये और सभी के लिये कानून एक होना चाहिये। जब हम अंदर से मजबूत होंगे तभी हम दुनिया के सामने एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर सकेंगे। 

विश्वगुरु बनने के लिए आधुनिक परिपेक्ष में हमारी आंतरिक और बाहरी समस्याओं के निवारण सख्ती से करने होेंगे। ऐसा नही है कि भारत के पास अद्वितीय शक्तियां नहीं हैं। दरअसल इसके पास सार्वभौमिक दर्शन, स्वाभाविक सहिष्णु धर्म, बड़ा भू-भाग, युवा आबादी, लोकतंत्र, प्राचीन सभ्यता और संस्कृति, भाषा और विविधता का ऐसा दुर्लभ संयोजन है जिसकी बराबरी कोई और देश नहीं कर सकता। लेकिन महत्त्वपूर्ण यह है कि इन ताकतों को व्यर्थ गंवाने के बजाय उनका जमीनी स्तर पर सही इस्तेमाल हो। यह केवल लेखक की सोच का परिणाम नही है बल्कि देश की हज़ारो जनता,कई संगठनों के अधिकारियों के विचारों का संकलन है जो हमने उनसे कई हफ़्तों की मेहनत करके टेलीफोन, सोशल मीडिया और बातचीत के माध्यम से जाना है।

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