करिश्मा कुदरत का

कितनी बदल गयी वो बात

डॉ० कुशवाहा

कितनी बदल गयी वो बात

कुदरत ने जो रंग है पारे

उसकी जंग से दुनिया हारे

देखो क्या क्या रंग उघारे

गर्मी मे वर्षा की वारें

जेठ दुपहरी लू थी चलती

अब होती बरसात

कितनी बदल गयी वो बात

घिरती थी घनघोर घटाएं

दुति दामिन की भी थी अदाएं

इंद्र धनुष नभमंडल चमके

देख छितिज हर्षित हो दमके

वह वर्षा ऋतु छटा सुहानी 

सावन अब न दिखात 

कितनी बदल गयी वो बात 

जाड़े की वे जड़ीली रातें

बर्फ भी करती क्षितिज से बातें

हाड़ कपाती हेमंत हवायें

कोहरा पाला सब थी बलायें

जाड़ा गाढ़ा तब था बाढ़ा

अब पूस कोऊ न सिसियात

कितनी बदल गयी वो बात

जो बिरंच ने लेख हैं लेखा

कोई न बांच पाया हम देखा

बिन अक्षर वह भाषा लिखता

शास्त्र सार कहीं नहीं बिकता

मालूम हो तो पता बता दो

जा पूछूँ हर घात

कितनी बदल गयी वो बात।।

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