तुम हमे न अब याद आओगे
अब याद आओगे
प्रसून अवस्थी
कि आज
दस्तक सी है इन
आती हवाओ की
तुम हमेंं न
अब याद आओगे
जिन यादों से आबाद था
ये दिल का घरौंदा
उजाड़ कर
यूं छोड़ जाओगे
यूं ही बहल
जाता था ये दिल
रेत पर लिखे तेरे नाम से
चलो अच्छा है अब
हमें अश्क
की लहर दे जाओगे
कि दफन कर देना
इन यादों को
या कहीं गाड़ देना
वरना कहीं भूल से तुम
ही हमें दोहरा जाओगे
बड़ा संगीन जुर्म था ये
एहसासे उल्फत का इस
दुनिया की पैमाने पे
आखिर किस किस से
तुम इसको छुपा पाओगे
चलो माना रह भी
लोगे गर
तुम तन्हा
पर कया अपने अश्कों को
कोई वजह दे पाओगे
ये बहाना तो था अच्छा
हमें भूल जाने का
देखो कहीं खुद को
रख कर
तो न भूल जाओगे
कि सुना है हमने
आज इन आती हवाओ से
तुम हमें न
अब याद आओगे ..
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