अधरों के गीत

मनकही

अधरों ने गीत लिखे, कागज़ की देह पर

-विनय विक्रम सिंह 

आखर के पात जगे, कोमल हर कूल पर।

जगे-जगे भ्रमर जगे, मँडराए फूल पर।

सावन के कोष झरे, अँखुवाई भूल पर।

सिन्दूरी अंग खिले, जीवन की रेह पर।।

अधरों ...

घूँघट को खोल छुअन, सपनों को मोल कर।

मेहँदी सी लाल रची, कनफुसकी बोल कर।

अंतस की कुमुद कली, पंखुड़ियाँ खोल कर।

छूते ही सिहर उठी, झिर-झिरते मेह पर।।

अधरों ...

शब्द-शब्द मौन झरा, खटमिठ्ठे अंग कर।

स्याही उसाँस भरे, पन्नों को रंग कर।

पहर ठिठक हुलस रहा, सजने के ढंग कर।

टुटके-टुनहाई से, पृष्ठ रचे नेह पर।।

अधरों ...

सुगबुग कम्पन करते, पलकों की कोर पर।

खटलुस पन्ने खुलते, लज्जा की भोर पर।

खिले-खिले बौर खिले, प्रीत पगी डोर पर।

अमराई कूक रही, साँसों के गेह पर।।

अधरों ...



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