क्या है हनुमंत जीव आश्रय?

..कब शुरू हुआ ..और क्या है 'हनुमंत जीव आश्रय'? 

प्रकाश शुक्ला

उन्नाव। किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार,किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार...जीना इसी का नाम है इन खूबसूरत पंक्तियों को अगर उन्नाव मे किसी ने जीवन्त किया है तो वह हनुमंत जीव आश्रय के संस्थापक अखिलेश अवस्थी "दादा" ने जो एक जीव प्रेमी है और जिनके ह्रदय मे जीवो के लिये अनन्त प्रेम का सागर भरा हुआ है। हमारी 'राष्ट्र की बात' उन्नाव की टीम ने उनके उन्नाव स्थित हनुमंत जीव आश्रय मे जाकर वहाँ पर हो रहे कार्यो को देखा तथा संस्थापक से खास मुलाकात की।

जीव आश्रय की हनुमंत यात्रा 

जीव प्रेमी हनुमंत जीव आश्रय के संस्थापक अखिलेश अवस्थी "दादा" के ह्रदय मे जीवो के प्रति प्रेम का अथाह सागर हमेशा से ही उमड़ता रहा पर वह सागर लोगो के सहयोग से आश्रय का  जामा पहन पाया वर्ष 2016 मे,आश्रय  मे  हर जीव के लिये बराबर जगह है,आश्रय मे दुर्घटनाग्रस्त, बिमार जीवो  का ईलाज व पालन पोषण किया जाता है।

क्या रहा प्रेरणास्रोत?

वैसे अखिलेश अवस्थी "दादा" को शुरू से ही जीवो से लगाव रहा,वह रास्ते चलते बिमार जीवो व दुर्घटनाग्रस्त जीवो को बिस्कुट और ब्रेड दिया करते थे पर बाद मे ह्दय द्रवित हो जाया करता था *इतना तो काफी नही।* फिर धीरे धीरे उन्होंने उनके इलाज व खाने पीने का जिम्मा उठाआ और उनके इस कार्य को देख कर उनके साथ लोगो का काफिला जुङ गया और उसके बाद जीव आश्रय की नीव रखी गयी।

कैसे कार्य करता है हनुमंत जीव आश्रय?

आश्रय को फोन के माध्यम से कही से भी अगर दुर्घटना होने की सूचना प्राप्त होते है तो जीवाश्रय की एम्बुलेंस व कर्मचारी उसे जीवाश्रय लाकर उसका इलाज डाक्टरों की मदद से शुरू कर देते है तथा उसकी गम्भीरता की स्थिति के अनुसार,आश्रय मे बने विभिन्न वातानुकूलित/एयर कूल/साधारण कमरो मे रखा जाता है और उसके भोजन की व्यवस्था भी की जाती है।आश्रय मे 14 कर्मचारी,3 एम्बुलेन्स व 2 अनन्त यात्रा रथ तथा 150 से अधिक जीव है।

क्या है अखिलेश अवस्थी "दादा" का युवाओं के लिये सन्देश?

युवाओं को प्रैक्टिकल व विज्ञान प्रेमी होना चाहिये पर अपने आस पास के रहने वाले अन्य जीवो का भी ख्याल रखना चाहिए तथा युवाओं को महीने मे एक बार जीवाश्रय आकर जीवो की सेवा देखनी चाहिए और सन्तुष्ट होने पर सेवा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिये।

कैसे होता है इतने बड़े आश्रय के खर्चो का निर्वाहन?

आश्रय का हर महीने का खर्च लगभग चार लाख रूपये आता है तथा विभिन्न लोगो के द्वारा मिलने वाले अनुदानों से ही सारा खर्च वहन होता है। किसी भी प्रकार के सरकारी य गैर सरकारी संस्थान से मदद नही मिली हुई है। दादा की सुन्दर काण्ड मण्डली भी है जो सुन्दर काण्ड करके भी पैसो की व्यवस्था करती है।

जीव प्रेमियों के लिये अखिलेश अवस्थी 'दादा' की कविता।

यदि बदलनी तुम्हे ये दशा है, तब तो प्रति दान देने पड़ेंगे,

दे के सम्मान सबको स्वंम, तुमको अपमान लेने पड़ेंगे।

भागती भीड़ को मत निहारो,खुद को देखो कहां तुम खड़े हो। 

यह न जाना तो क्या तुमने जाना,बेवजह मत कहो तुम बड़े हो।

सच में पा जाओगे तुम बड़ाई,

किंतु बलिदान देने पड़ेंगे।

देके सम्मान सबको स्वयं,हमको अपमान लेने पड़ेंगे।

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