कास लौट आता दिन!








ममता कुशवाहा

बचपन

बहुत याद आ रहा गुजरा हुआ ज़माना 

कितना खूबसूरत  था दिन  वो  पुराना 


वो माटी का जाँता वो माटी का घरिया

अमियाँ के बगिया में  बीती दोपहरिया

कोयल की कूँ-कूँ चहचहाती चिड़ियाँ

झनझनाती झुरमुट बचपन की सखियाँ

रोज  गुड्डे  गुड़ियों  का  ब्याह  रचाना

कितना  खूबसूरत था  दिन वो पुराना


माटी के घर का वो धरन बड़ेरी

जिसमें रहती गौरैया  की  जोड़ी

नदी में जलक्रिडा करती हुई छोरी

पनघट पर पानी भरती हुई गोरी

कास लौट आता दिन वो सुहाना

कितना खूबसूरत था  दिन वो पुराना


बालों  में  अपने  कंघी  न   कराना

कभी-कभी माँ के  हाथों पीट जाना

बापू के डाटने पर पेड़ पर चढ़ जाना

कितना भी  बुलायें नीचे  नही आना

पूरे  दिन  दादा -दादी  को  सताना

कितना खूबसूरत था दिन वो पुराना


नीम  डाली  को  कैसे  कोई  भूले

जिसपे  पड़ते  थे सावन  के  झूले

सहेलियों संग विद्यालय का जाना

अनार अठन्नी में है आता गुरुजी 

का पढ़ाना

दिल ढ़ूढ़ रहा है फिर से वही तराना

कितना खूबसूरत था दिन वो पुराना

बहुत याद आ रहा गुजरा हुआ ज़माना

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