मुद्राराक्षस कौन?

सुभाषचंद्र गुप्ता उर्फ मुद्राराक्षस?

राम  दुलार कुशवाहा

हमें पढ़ाया गया था कि विशाख दत्त ने 'मुद्राराक्षस' नामक एक नाटक लिखा था जिसमें सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की उत्पत्ति मुरा नामक एक दासी से हुई थी. हमें यह भी बताया गया था कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जन्म से शूद्र था. किन्तु हमें यह नहीं बताया गया था कि जब एक दासी को दासता के अतिरिक्त कुछ भी करना क्षम्य नहीं था तो वह 'मुरा' नामक दासी प्राकृत भाषा कैसे पढ़, लिख और बोल सकती थी; वह कैसे संस्कृत भाषा समझ सकती थी?

एक शूद्र जिसको पढ़ने, लिखने का अधिकार नहीं था तो चन्द्रगुप्त मौर्य कैसे प्राकृत भाषा को पढ़, लिख और बोल लेता था और संस्कृत भाषा को समझ सकता था?

 मूल प्रश्न यह भी है कि शूद्र जिस जाति का हो उसे उस जाति के लिए निर्धारित काम को छोड़कर दूसरा काम करना निषिद्ध था तो चन्द्रगुप्त मौर्य शूद्र होकर भी राजा कैसे बन गया; सम्राट कैसे बन गया? क्या उस समय ब्रह्मा की भुजा से उत्पन्न क्षत्रिय पृथ्वी से समाप्त हो गए थे; यदि क्षत्रिय धरा से ईशा पूर्व 323 में गायब हो गए थे बाद में क्षत्रिय कहां से आ गए? 

हमने देखा है कि साइंस का अध्यापक साइंस पढ़ाता है; भूगोल का अध्यापक भूगोल पढ़ाता है; अंग्रेज़ी का अध्यापक अंग्रेज़ी पढ़ाता है आदि. तब संस्कृत भाषा का ब्राह्मण आचार्य चाणक्य, चन्द्रगुप्त मौर्य को प्राकृत भाषा कैसे पढ़ा ले गया? ब्राह्मण किसी शूद्र को शिक्षा नहीं दे सकता था; शूद्र राजा नहीं बन सकता तो ब्राह्मणों, क्षत्रियों, भूमिहारों और वैश्यों के जीवित रहते हुए एक शूद्र राजा कैसे बन गया; सम्राट कैसे बन गया?

स्पष्ट है कि विशाख दत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस एक काल्पनिक कथा है जिसे ऐतिहासिक नाटक होने का झूठा प्रचार किया गया है.

भाषा के अनुसार पकित या पाकित भासा (संस्कृत नाम प्राकृत भाषा) में पियदस्सी राजा असोक के समय तक क्+र = क्र, प् + र =प्र का प्रचलन नहीं था तो च+न्+द्+र+गु+प्+त= चन्द्रगुप्त शब्द कैसे अस्तित्व में कैसे आ गया? 

कोई माता अपने पुत्र का नाम अपनी मातृ - भाषा से इतर संस्कृत भाषा में नाम क्यों रखेगी?

माता मुरा ने अपने पुत्र के नामकरण में उसका उपनाम  'मोरिय' के स्थान पर 'मौर्य' क्यों कर दिया; जबकि 'मौर्य' संस्कृत भाषा का शब्द है और 'मोरिय' पकित, पाकित या प्राकृत भाषा का.

आज मुद्राराक्षस की उपादेयता और भी बढ़ गई है. ऐसे विलक्षण व्यक्ति यदा कदा ही पैदा होते हैं.

ऐसा ही दुर्व्यवहार समृतिशेष सुभाष चन्द्र गुप्ता के साथ भी किया गया जिसमें उन्हें मुद्राराक्षस नाम दे दिया गया. मुद्रा और शुद्र मिलते जुलते शब्द हैं. राक्षस (रक्षा करने वाला) तो शूद्रों के जन्मजात गुण हैं.

शूद्रों के चित्रकार थे मुद्राराक्षस! एक चित्रकार था - बादलों का चित्रकार ! वह ताजिंदगी बादलों का चित्र बनाता रहा - काले, भूरे, मटमैले बादलों का. बादलों के चित्र कभी पूरे नहीं हुए. जिंदगी पूरी हो गई.

मुद्राराक्षस शूद्रों के चित्रकार थे. वे ताजिंदगी शूद्रों के चित्र बनाते रहे - बदहाल, फटेहाल, तंगोतबाह शूद्रों का. शूद्रों के चित्र कभी पूरे नहीं हुए. जिंदगी पूरी हो गई. 

मुद्राराक्षस के लिए शूद्र वैसे ही थे, जैसे तुलसीदास उर्फ़ रामबोला द्विवेदी के लिए राम. तुलसी ने रामकथा को न जाने कितने रूपों में, कितनी विधाओं में, कितने तरीकों से लिखा है? कभी कवित्त में, कभी सवैया में, कभी बरवै में और कभी दोहा - चौपाई में - अनेक रूपों में. 

मुद्राराक्षस ने भी शूद्रों की कथा को न जाने कितने रूपों में, कितनी विधाओं में, कितने तरीकों से लिखा है? कभी नाटकों में, कभी उपन्यासों में, कभी संस्मरणों में, कभी कहानियों में - अनेक रूपों में. कई - कई कोणों से शूद्रों के कई - कई चित्र बनाए हैं मुद्राराक्षस ने.

आप मुद्राराक्षस का उपन्यास " नारकीय " पढ़ लीजिए. लेखकीय यात्रा के अनुभव का दस्तावेज है "नारकीय''. यशपाल के घर सभी लेखकों को चाय मिलती है, शूद्र लेखक मुद्राराक्षस को नहीं. मुद्राराक्षस के "कालातीत'' में भी असाधारण और सबसे अलग संस्मरण दर्ज हैं. कैसे कोई द्विज इतिहास में दाखिल होता है और कैसे किसी शूद्र को इतिहास में दाखिल होने से रोक देता है?

आप मुद्राराक्षस की ''नई सदी की पहचान - दलित कहानियाँ " पढ़ लीजिए. शूद्र - जीवन केंद्र में है. भूमिका में मुद्राराक्षस ने शूद्रों का जो संक्षिप्त इतिहास लिखा है वह मनोमस्तिष्क को झकझोर देनेवाला है.

आप मुद्राराक्षस के अनेक निबंध पढ़ लीजिए, मिसाल के तौर पर शास्त्र - कुपाठ और स्त्री, अशोक के राष्ट्रीय चिन्हों पर सवाल, बौद्धों की अयोध्या का प्रश्न, ज्ञान - विज्ञान और सवर्ण, भारत और पेरियार, बुद्ध के पुनर्पाठ का समय आदि. ये सभी निबंध सबूत हैं कि मुद्राराक्षस शूद्राचार्य थे.

मुद्राराक्षस की एक पुस्तक है - "धर्म - ग्रंथों का पुनर्पाठ". वेदों से लेकर शंकराचार्य तक के ग्रंथों का तेज - तर्रार विवेचन - विश्लेषण, तर्काश्रित मुहावरे और तथ्यों के प्रति बेबाक दृष्टिकोण!

समझौतापरस्ती नहीं था उनके स्वभाव में. गिरिजाकुमार माथुर से भिड़ गए; दिनकर की उर्वशी की खाल उतार ली; भगवतीचरण शर्मा को जनसंघी कहा; प्रेमचंद को दलितविरोधी का तमगा दिया; लोहिया को फासिस्ट और अमृतलाल नागर को बेकार का उपन्यासकार बताया. चौतरफा जंग लड़ रहे थे मुद्राराक्षस. 

सामाजिक क्षेत्र में जो काम महात्मा फुले ने किया; राजनीतिक क्षेत्र में जो काम डॉक्टर साहेब आंबेडकर ने किया; वही काम साहित्य के क्षेत्र में मुद्राराक्षस ने किया. 

साहित्य और इतिहास में अभिरुचि विद्यार्थी जीवन में इन पंक्तियों के लेखक को नहीं हो सकी; रुझान विज्ञान की ओर था; न्यूटन और एलबर्ट न्यूटन की ओर था. सरकारी सेवा के दौरान लखनऊ में ट्रांसफर होकर आया. संयोग से दो बार मुद्राराक्षस से मुलाक़ात भी हुई. किन्तु आकर्षक व्यक्तित्व होने के बाद भी राक्षस, मुद्राराक्षस जैसे शब्दों से बचपन से ही चिढ़ थी. अतः मुलाक़ात के कोई लाभ से वंचित ही रहा. मेरे सहकर्मी उन्हें तरजीह नहीं देते थे; हाफ़ माइंड कहते थे; पागल कहते थे. लखनऊ से इलाहाबाद जब स्थानांतरण होकर आया तो लोक भारती प्रकाशन से जुड़ गया. यहां पर जब मुद्राराक्षस के बारे में वास्तविक स्थिति से रूबरू हुआ तो बहुत पश्चाताप हुआ. समय आगे बढ़ चुका था.आज विलक्षण प्रतिभा के धनी सुभाष चन्द्र गुप्ता उर्फ़ मुद्राराक्षस के निर्वाण दिवस पर शत शत नमन शूद्राचार्य को!

यदि हिरन अपना इतिहास स्वयं नहीं लिखेंगे तो इतिहास में गीदड़ों, भेड़ियों, लकड़बग्घों आदि की शौर्य गाथाएं ही लिखी मिलेंगी. जंगल के इतिहास में शेर, हाथी, भालू, बन्दर, हिरन आदि के इतिहास गायब मिलेंगे. हरे भरे जंगल, चारागाह, गोचर भूमि, झरने, कल-कल बहती नदियां, जल प्रपातों के शोर, पंछियों के कलरव, शेर की हुंकार, हाथी की चिग्घाड़ पशुओं; मोर, कोयल और पपिहे आदि गायब मिलेंगे.  

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