परित: आवरणं पर्यावरणम्

निवेदिता मुकुल सक्सेना 

खिलखिलाती अलसुबह मे चहचहाती चिडियाए, कौए, कोयल, तितलियाँ, गिलहरी अपनी अपनी  मस्ती मे मस्त गीत गुनगुनाते हुये जंगल के वृक्षो की डालियों पर फुदक रहे थे । कुछ चिड़िया  पानी मे नहाकर पंख फड़फड़ा कर हल्का हो रही, इनको देख लगता मानो आस पास तरोताजगी का अहसास हो रहा।अपने घोंसलो मे नन्हे-नन्हे बच्चो के मुह मे दाना लाकर चुगाती चिड़ियां। मधुमक्खियाँ भी अपने छ्त्तौ पर शहद संग्रह कर रही। पत्तियो के बीच टिड्डा भी चुप चाप बैठा पत्तीयाँ खा रहा। वृक्षो के तनो से गोंद रिस रहा। वही गिरगिट भी डालियों के मध्य भोजन की तलाश कर रहा साथ ही आस पास निगाह रख रहा की चिडिया ओर तितली क्या  कर रही। चीटियां भी वृक्षो के निचे समूह मे चल रही मुद्दा वही भोजन की खोज जो उन्हे प्रकृति मे ही मिल जाती। 

आज इन सबकी जिन्दगी मे एक तुफान आने वाला था जो सबके आश्रय को भी सिर से हटाने वाला था। कुछ ही देर मे जंगल मे कुछ लोग बड़े बड़े  इलेक्ट्रिक कटर  लेकर कर आये क्रेन के साथ  एक एक कर वृक्षो की कटाई शुरु कर दी ये सब सरकारी लोग ही थे जिन्हे आदेश हुआ की सैकडो वृक्ष आज जंगल मे काटने है। सभी के जीवन मे त्राहि त्राहि मच गयी कहे तो किससे कहे बौल नही सकते सबके घोंसले टूट कर निचे गिर गये पन्क्षीयो के बच्चे कुछ मर गये कुछ दब गये। "ना ही इनके लिये कोई अस्पताल था ना वेंटिलेटर" ना ही कोई आज संरक्षक मौजुद था ना ही कोई पर्यावरण संरक्षण के नाम पर चल रहा कोई संगठन ।कुछ ही समय मे शमशान सी भूमि हो गयी। ट्रकों मे वृक्षो को लादकर ले गये। खुशनुमा जंगल मुक जीवो से चहचहाता अब मैदानी शमशान मे बदल गया। जहा सिर्फ साय साँय कर हवा चल रही थी। 

वही नदी मे मछलियाँ, सीप, घोंघा, कैकड़े कोई शैवाल खा रहा कोई छोटे छोटे कीडे मकोड़े खा रहा कहने को ये सीप बेवजह सी नजर आती हैं लेकिन ये भी जलीय पर्यावरण की सबसे मजबुत कड़ी हैं।लेकिन अब  यहा भी त्राहि त्राहि मचने वाली थी कुछ ट्रक आये और रेत खनन कर नदी के आभूषणो को हर ले गये। सभी जीव मर गये बेघर हो गये खैर क्या फर्क पढता है कंक्रीट के जंगल बनने की हत्याएँ लगातार अब तक जारी हैं। 

अब सिर्फ नदी या जंगल नही डिजिटलीकरण के चलते कई प्रकार की विकिरण भी अब हमारे इर्द-गिर्द है जिसके कारण निश्चिंत: कई असाध्य रोगो का भी हम शिकार बन रहे पर हम अनजान है अब भी या शायद किसी ने गौर करने की कोशिश नही की। आखिर आज कोरोना संक्रमण मे सबसे ज्यादा दिक्कत या रोगग्रस्त हमारे फेफड़े हुये जिससे और भी शारीरिक व्यवधान व ऑक्सीजन की कमी साफ साफ नजर आयी  हम दौड़ रहे सिलेंडर के लिये, थक रहे फिर भी हम कुछ भुल रहे ।जो हमारे आस पास मौजूद हैं हमारे जीवन की मूल्यवान कडी उसे ही जड़ों से उखाड़ फेक रहे। कुलमिलाकर आज "प्रकृति ही वेंटिलेटर "पर आ गयी हैं। 

हमारे आस पास का वातावरण जीव जन्तुओ व वनस्पति से घिरा हुआ हैं ये सिद्ध है की पर्यावरण मे खाद्यजाल व खाद्यश्रंखला से मिलकर हमारा पर्यावरण  संतुलित होता है। इनमे से एक भी विरक्त होने से पर्यावरण असंतुलित होता है। बहरहाल, आज तो स्थिति बहुत विकट होती जा रही है जहां मनुष्य मे जितना ज्ञान का प्रवाह तेजी से बढ रहा वही प्रकृति का विनाश उससे कही ज्यादा तीव्रता बढ रहा।क्या मांगती हैं, वनस्पतियाँ हमसे सिर्फ थोडी सी परवाह स्वरूप पानी और थोड़ी सी सावधानी बदले में हमे तो ऑक्सीजन से परिपूर्ण कर देती हैं जो हमारी सांसो का अमुल्य वरदान हैं। हाल ही फिर कुछ नये बने बंगले दिखे,फ़िलहाल उन्हे बनाने मे तो वृक्षो की हत्या हुई ही होगी पर सुन्दर बंगले होने के बावजूद भी वह सुन्दर नही दिखे क्योंकि उसमे प्रकृति के आभूषण से सुसज्जित नही किया था ।मालिक ने स्पष्ट कहा की "पेड पौधो से कचरा" होता है, और देख भाल ज्यादा। मुझे भी विचार आया -सही हैं प्रकृति भी एक दिन यही सोचे तो मनुष्य का क्या होगा। कई योजनाएँ, कानून पर्यावरण के लिये बने पर जितने कानून है उससे ज्यादा उनका उल्लघन धडल्ले से हो रहा।  यहा तक वन्य-जीव व जंतुओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठन -"पेटा" भी जन्तुओ की रक्षा हेतू कार्यरत है। जब एकसाथ कई वृक्षो की हत्या होती हैं तो उन पर रहने वाले सेकड़ों जीव जन्तु  मूकबली चढ़ जाते  है।क्या ये संगठन ये कानून सिर्फ सेलिब्रिटी की चकाचोंध मे घिरे रहने के लिये या सिर्फ निबंध व चित्रकारी प्रतियोगिता तक सीमित हैं या रहेगे। 

आज हम देख रहे विज्ञान चरम पर पहुच चुका हैं ।पर ये गलतफहमी हैं "विज्ञान पतन" की और जा रहा क्योंकि "वेदो से विज्ञान है और पर्यावरण ही विज्ञान है" उसकी हर शाखा  उचाई पर पहुचने का प्रयास तो कर रही हैं, लेकिन अपनी जडो को काटकर। भौतिक,रसायन,जीव विज्ञान व गणित सभी पर्यावरण के हिस्से हैं बस जरुरत है दुरदृष्टिता के साथ ईश्वर के दिए इस बहुमुल्य विरासत को समझने की।  ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीनहाउस प्रभाव, ओजोन परत का क्षरण, फॉग कोई अलग अलग समस्याएं पृथ्वी को प्रभावित करने वाले हानिकारक नाम नही वरन ये सब पर्यावरण की क्षति से उत्पन्न हुई व्याधियाँ हैं। क्योंकि  ये सभी सजीवो के जीवन को विकृत कर रही है। 

आज जरुरत है पीने के पानी को बचाने की, तलाब नदी व बावड़ीयो को साफ व संरक्षित कर उनका पुनरुत्थान करने की।

पहाड़ीयो पर जल संरक्षण संरचनाएं (ट्रेंचेस) बनवाये जाए जिससे जमीन मे ज्यादा पानी संरक्षित हो सके।

पर्यावरण की मे अहम भूमिका निभाते हमारे जीव जन्तु चाहे जंगल मे हो या घरेलू या सडक पर। "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(A) के मुताबिक हर जीवित प्राणी के प्रति  सहानूभूति रखना भारत के हर नागरिक  का कर्तव्य है। 

भारतीय दंड संहिता की धारा 428 व 429 के अनुसार किसी पशु को मारना या अपंग करना आदि अपराध स्वरूप पाँच वर्ष सजा व पच्चीस हजार जुर्माना है।

आवश्यक्ता है वृक्षो पर निवास करते पक्षियों के घोसलो की रक्षा करने की। 

अंतर्राष्ट्रीय संगठन "पेटा" जीव जन्तुओ के संरक्षण के कार्यो को धरातल स्तर पर क्रियान्वित कर फलीभूत करे जिससे इस पर्यावरण की इस मजबुत कडी का संरक्षण हो सके।

चिपको आंदोलन जैसे कई आंदोलनों की आवश्यकता है इस प्रकृति और पर्यावरण को बचाने के लिए।

आज की जागरुकता कल के लिए समझदारी सिद्ध होगी अतः स्वयं जागे ओर दुसरो को भी जगाएं।

हमने देखा है जिस तरह एक अपराधी को अंतत: आत्मसमर्पण करना ही पड़ता है वैसे ही हम सभी का अन्तिम आत्मसमर्पण होगा पर्यावरण के समक्ष अगर कुछ अवशेष बचे तब। फिलहाल पर्यावरण पराकाष्ठा की  चुनौती स्वीकार करते हुये अब तक भी हमे बचाए है। "जिम्मेदारी हमारी"

भारत मे जितने पर्यावरण के लिये कानून व संगठन बने है वह जमीनी स्तर पर अपने कार्यो को फलीभूत करे।

सरकार हर जिले ,सम्भाग के निकट अभ्यारण्य का निर्माण अवश्य करवाये जिससे उस क्षेत्र की जैव विविधता मे जो क्षति हुई उसे संरक्षित किया जा सके।


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