स्वीट ट्रूथ -अति दोहन का अंत

निवेदिता मुकुल सक्सेना..

कहते हैं, किसी भी चीज की अति हानिकारक ही होती हैं चाहे खाना हो या किसी भी चीज का इस्तेमाल। अगर शरीर में शक्कर या नमक ज्यादा हो जाए तो वह भी गम्भीर बीमारियों को चुनौती देते हैं । वर्तमान में भी कुछ ऐसा ही चल रहा हैं। इन्हीं को ध्यान रखते हुये हम आज जेनेटिक इंजीनियरिंग की बदोलत बने कोरोना वायरस संक्रमण की परेशानियां व इस मध्य बड़ते इंटरनेट उपयोग, फॉसिल फ्यूल के खत्म होने के प्रभाव से आने वाले समय मे परिणामो पर बात करते है।

 विज्ञान से विनाश की ओर... 

...एक कड़वा सच व मीठा जहर 

हाल ही मे एक मूवी  देखी "स्वीट ट्रुथ",मुझे साइंस फिक्शन मूवी पसंद हैं "विज्ञान प्रकृति" से ही जन्मा हैं और उसका ही प्रतिरूप हैं बस यही कारण हैं की मानव भी विज्ञान से प्रकृति को चरम पर ले ही आता हैं। और सिद्ध कर देता हैं की जहा से हम आये वही हमारा अन्तिम पड़ाव होगा बस बीच का सफर ही हमारे प्राकृतिक संसाधनो के अतिदोहन का नतिजा किसी ना किसी रुप में शारीरिक पीढा का कारण बन जाता हैं। ऐसा ही कुछ इस फिल्म मे दिखा, लगा की कोरोना संक्रमण के मध्य आयी समस्याओ का नतिजा दिख रहा। क्योंकि विज्ञान के भी दो पहलू है वही जहा नीत नये अन्वेषण से लाभकारी चमत्कार होते हैं वही स्लो पोईजन के रुप मे वैश्विक हानि भी। ये चिंतन आज अतिआवश्यक हैं की जब से कोरोना संक्रमण शुरु हुआ तब से विश्व के 98% लोगों को  "नेट सर्फिँग "को ही अपनी जिन्दगी का हिस्सा बनाना पढ रहा चाहे "वर्क फ्रॉम होम हो या ऑन लाइन स्टडी "ये सभी सेटेलाइट की वजह से आ रही रेडिएशन के कारण सम्भव है पर आज मानव इसके मकडजाल मे पुरी तरह फंस चुका हैं, जो पुर्व में कोई नही चाह रहा था। 

तब हम ये कहते थे,  बच्चो को मोबाइल से दुर रखना व नेट कम चलाओ लेकिन मनुष्य की विडंबना देखिए  वर्तमान उसके बिना सम्भव नही दिख रहा। दिन का अधिकतम समय इंटरनेट व्यवस्था से जुडा है। ये मानकर चलना होगा की ये संक्रमणकाल कब तक चलेगा इसका कुछ पता नही । आज हम स्वयं के लिये भी कुछ नही कह सकते क्यूंकि पल पल संक्रमण अपनी स्थितियाँ बदल रहा हैं। 

अति का "नेट सर्फिँग" से जुडे रहना शरीर के लिये हानिकारक हैं वही चाहे "हार्ट हो या ब्रैन"।  विकिरणे हमारे नर्वस सिस्टम के लिए हानिकारक हैं। मोबाइल टॉवर के तीन सौ मीटर एरिया मे सबसे ज्यादा हानिकारक विकिरणे उत्सर्जित होती है । चिन्तन का विषय है सौ मीटर मे एक डेंजर जोन बन जाता हैं जो खासकर बच्चो, महिलाओं, गर्भवती महिलाओं व बुजुर्गो पर असर डालती हैं। 

इन विकिरणों की हानि से केन्सर, ब्रैन ट्यूमुर, सिर दर्द, बी-पी "लो व हाई",  वंश बन्ध्यता (प्रजनन क्षमता ना होना), आदि कई शारीरिक व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं। वही बच्चो व किशोरवय का ज्यादा नेट से जुडे रहना भी हानिकारक हैं। ये भी सम्भव है की कई माता पिता मोबाइल के सही व गलत उपयोग से पुर्व मे सतर्क कर देते हैं जिससे बच्चे को सबसे "फास्ट न्यू टेक्नोलॉजी" की जानकारी रहती हैं। लेकिन ये बात सबके साथ सम्भव नही हैं। 

ऐसे मे "अनकंट्रोल" नेट का उपयोग बाल-मन को दिशा हिन  वीडियो या फिल्मो की और अपना समय व्यतीत कर पथभ्रमित कर रहा। आज यु ट्यूब पर कई प्रकार की पथभ्रमित कर देने वाली सामग्री आसानी से उपलब्ध हो रही है जिससे बाल मन व किशोर मन पहले से ज्यादा भटक रहे। 

कई अपराध की गर्त मे जा रहे वही कई किशोर अवसाद का शिकार बन रहे क्यूंकि अभी शिक्षण प्रणाली व मात्रात्मक परिणाम  मे बदलाव भविष्य के प्रति एक डर पैदा कर रही। 

आज परिवार मे जहाँ ंमध्यस्थता बडी वही अलगाव भी ज्यादा देखने मे आ रहे। बस एक दूनियाँ इन्टरनेट की जो आगे चलकर अति के उपयोग से ठप्प होने की चेतावनी देती हैं। 

वही ध्यान देने की बात हैं की, आज ग्लोबल वार्मिंग से जुडी जनसंख्या वृद्धि के साथ मुख्य बात ये हैं की जीवाष्म ईंधन (पैट्रोल डीजल) का अधिक से अधिक उपयोग ।सोचने का विषय है की ये सब जमीन से मिल रहे अनवीनिकृत स्त्रोत जीवाष्म से बनता हैं। जो कभी ना कभी जमीन में से समाप्त होगा कारण भी स्पष्ट हैं कि ये जीव जन्तुओ के मृत अवशेष से ही बनता हैं। जो कई वर्षो तक जमीन मे दबे रहने की प्रक्रिया स्वरूप गैस व ताप के दबाव के साथ कोयले व ऑयल के रुप मे प्राप्त होता हैं। 

स्वाभाविक हैं जब वनस्पतियाँ ही तेजी से पृथ्वी पर कम हो रही ऐसे मे जीवाश्मिकरण का होना सम्भव नही। कुलमिलाकर" पैट्रोल डीजल "आगे चलकर विश्व की सभी गाड़ियों को अपनी अपनी जगह खडा कर देंगे धरती पर इनका वजुद अब सम्भव नहीं दिख रहा ये सभी संसाधन कई वर्षो बाद ही पृथ्वी मे बन पाते हैं।

फिलहाल, एक दुसरा पहलू है जिस तरह कई जानकारियों से प्राप्त हुआ की "कोरोना विषाणु "लेब मे बने "बायो वार"का नतिजा है जिसके कई मेम्बर्स अब निकल कर आ रहे वह भी जेनेटिक इंजीनियरिंग का ही हानिकारक  प्रतिरूप है। संभवतः जैसे कोरोना के अन्य प्रभाव "ब्लैक फन्गस "आया वैसे ही आने की सम्भावना बढ जाती हैं।आज "डिज़ाइनर बेबी" के बाद "हाईब्रीड बेबी"भी आने की तैयारी ही है। यही स्वीट ट्रुथ मूवी मे भी दुर दर्शिता के साथ प्रदर्शित किया गया। जहा बच्चे पालने के लिये भी शहर से ज्यादा सुरक्षित जंगल माने गये हालाकि वो एक डर था लेकिन आने वाले समय का प्रकृति व विज्ञान का सच भी हैं। विज्ञान से विनाश की ओर एक "कड़वा सच व मीठा जहर "।

"जिम्मेदारी हमारी"

विज्ञान की उपज इंटरनेट को हितकारी बनाये नेट के फायदे है तो नुकसान भी।

बच्चो के लिये नेट उपयोग करने के टाईम टेबल के साथ उनके लिये व्यायाम व योगा या खैल कुद घर में ही बहुत जरूरी हैं।

परिवहन हेतू पर्यावरण संरक्षण वाली गाड़ियों को महत्व दे जो स्वयं के लिये व सबके लिये हितकारी हो।

जीतना सम्भव हो सके बीमारियों से बचने के लिये मशीनों की अपेक्षा हाथ से काम ज्यादा करें जिससे इम्यून सिस्टम स्ट्रांग बने।

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