रूकी रूकी सी जिन्दगी!







 

घर में कैद है यूॅं जिंदगियां

प्रसून अवस्थी

रूकी रूकी सी हैं 

जिंदगियां 

मानो किसी षड्यंत्र

की सुगबुगाहट है।


लूट जाने के डर से

घर में कैद है यूॅं जिंदगियां 

मानो किसी बड़े तूफां के 

आने की आहट है।


जाहिर नहीं थी मंशाएं 

भले किसी भी संकेत से

पर वक्त के तकाजे है कि

सामने कठिन दौर हैं।


कि बंद लिफाफे में हैं 

किस्मतें आने वाले कल की 

आज कौन बताए भविष्य के 

गर्भ में कल कौन है।

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