गुरु शिखर पहुँचना

ईशान भेरू की एक रोमांचक यात्रा.. पथरीली राहों का स्वर्ग

खुशवन्त कुमार माली

तन-मन और अन्तःकरण की शुद्धता देती है यात्राएँ। मित्रों जैसा की पूर्व में भी मेरी समूह में मित्रों संग अनेक यात्राएं हुई है जिसे आपने पढ़ा भी है और स्थान- स्थान के अनुपम सौन्दर्य को आपने अपने प्रेम से नवाज़ा है। "आबू" या अर्बूदाञ्चल में 33 कोटि देवी- देवताओं का निवास माना जाता है। कोटिश: वनस्पतियों के अथाह भंडार व वन्यजीवजन्तुओं से समृद्ध है अरावली पर्वत श्रेणी और उसके ऊँचे शिखर। 

हमारी इस यात्रा के सूत्रधार कौन थे? इस पर कोई एक उत्तर अपर्याप्त ही रहेगा। अलग-अलग समूह की मित्रमंडली के बंधुजन जो पहाड़ों में जीवन का सुख तलासते है। उनसे छिद्रे- छिद्रे लोग जो तैयार थे। वे सब निकल पड़े उस अविनाशी, अलौकिक शक्ति की तलाश में, मुझे अमृत जी से जब पता चला की सतीश जी जा रहे है। मैनें बिना सोचे विचारे यात्रा का मानस पक्का कर लिया। लम्बी- लम्बी यात्राएं अधिक आनन्द देती है अच्छे और सच्चे मित्रों के संग। 

आयु का क्या है? बढ़ती है, घटती है, तो कभी सदा के लिए अपार विश्राम पा लेती है। सतीश जी, अमृत जी ऐसी ही शख्सियत है जो भाग्य से प्राप्त होती है। हमारी यात्रा सिरोही के रामझरोखा से प्रारम्भ हुई। संख्या में 25 युवा, व्यस्क, प्रौढ़ सभी कुछ-कुछ परिचित- कुछ अपरिचित जब आयुर्वेदिक अस्पताल के बाहर मिले सब रंग साज हो गए। फोटोसेशन और हँसीमजाक से सरोबार झिलमिल मन जब गाडियों में सवार हुए सब आबो हवा गुलज़ार हो गयी। भीमसिंहजी, मुकेश जी के जीवन ज्ञान प्रसंग आनन्द के साथ अनुभव सिखा रहे थे। 

राजेशजी ने कम आयु में अनुभव की धरती पर जो ज्ञान सिखा है वो अशोकजी, अभिषेक, दिलीप, संदीप व राहुल आदि से साझा करते हुए, यात्रा में जोश, उत्साह व आनन्द का सरोबार कर रहे थे। गाडियाँ आगे बढ़ती रही है हम कब आबू की वादियों में पहुँच गए कुछ पता भी न चला। घूमावदार रास्ते, गहरी खाईयाँ, दो रोज पहले की बराशत से कटी टहनियों से अटी सडकें, सन-सन कर आती ठण्डी हवाएं, आम से लदे आम के पेड, कलौंजी की मिठास जो आबू के मेवे के नाम से ख्यात है ने समा बाँधा।

यात्रा लॉकडाउन में हो रही थी सो नियमों की पालना भी आवश्यक थी। कुछ-कुछ जान पहचान व धार्मिक यात्रा के प्रसंग से आबू में प्रवेश मिल ही गया। फिर क्या था खुशी का ठिकाना न था। सभी सातवें आसमान पर थे। होना भी लाजमी हैं। आबू में तैत्तिस कोटि देवी- देवता निवास करते तो है ही,आबू परिक्रमा के बिना सभी तीर्थों के फल को पुराणों में अधूरा बताया गया हैं। 

पुराणों में आबू को "आबूराज" कहकर परम पराक्रमी और तपस्वी ऋषी- मुनियों की तपोस्थली बताया गया है।

आबू परिक्रमा को परम फलदायी, मोक्षदायी बताया गया है।

यहाँ केदारनाथ, बद्रिनाथ, आम्बेश्वर, जपकेश्वर, अचलगढ़, आदि ज्ञात व अनेकश: अज्ञात व अतिदुर्गम है मंदिर है। जिसमें से है ईशान भेरू भी एक है। आबू कई दुर्लभ वनस्पतियों व जीव- जन्तुओं के लिए भी प्रसिद्ध हैं। 

गुरु शिखर पहुँचते ही जैसे ही गाडियाँ रूकी। सभी लपक कर दूसरे ही पल बाहर आ गए। कुछ जिम्मेदार सतीश जी, हकमाराम, दौलत सिंह जैसे लोग भी थे साथ जिन्होंने सामान उतारना लाजमी समझा। बाकि फोटो खींचने- खींचवाने और मेरे जैसे कलौंजी चखने में व्यस्त हो गए। कुछ ही देर में सभी एक जगह इकट्ठे हो गए। दोपहर का समय था और पेट भूखा हो चुका था। प्रकाश जी प्रजापत घर से पोहे व सिंके हुए खिंचियाँ लेकर आएं थे। प्रकाशजी से परोसी पोहे की प्लेटे आगे बढ़ती रही। राजेश भाई, दिलीप, अभिषेक, कृष्णा, भीम सिंहजी, संदीप आदि- आदि सभी ने खुब चावं से खाएं। खिंचियों की संख्या कम होने से काफी संघर्ष हुआ जैसा आज कल देश और दुनियां में रोजगार व भोजन के लिए हो रहा है। अल्पाहार के बाद पानी की बोतले भर यात्रा ने गति ली। गुरुशिखर में एयर फोर्श स्टेशन के पास से नीचे पथरीली राहों के रास्ते उतरज का जो सफर प्रारम्भ हुआ वो प्रकृति में फैले अपार सौन्दर्य में विलोप हो गया. ... 

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