दिव्य शिक्षा का असर
शिखर
भारत के एक प्रसंग में आता है कि एक बार कृष्ण, बलराम और सात्यकि यात्रा के दौरान शाम हो जाने के कारण एक भयानक वन में रात्रि विश्राम के लिये ये निश्चय करके रुके कि दो-दो घंटे के लिए बारी-बारी से पहरा देंगे।
उस जंगल में एक बहुत भयानक राक्षस रहता था, जब सात्यकि पहरा दे रहा था जो उस राक्षस ने उसे छेड़ा, भला-बुरा कहा, उनका युद्ध हुआ, वो पराजित होकर जान बचाकर बलराम के पास आ कर छुप गया। बलराम को भी राक्षस ने बहुत उकसाया, उनके साथ भी युद्ध हुआ, बलराम जी ने देखा कि राक्षस की शक्ति तो बढ़ती ही जा रही हैँ तब उन्होंने कृष्ण को जगाया। राक्षस ने उन्हें भी छेड़ा, अपशब्द कहे, उकसाया । तब कृष्ण ने राक्षस को कहा की तुम बहुत भले आदमी हो, तुम्हारे जैसे दोस्त के साथ रात अच्छे से कट जायेगी । तब राक्षस ने हंसकर पूछा, मै तुम्हारा दोस्त कैसे?
कृष्ण बोले-भाई तुम अपना काम छोड़कर मेरा सहयोग करने आये हो, तुम सोच रहे हो मुझे कही आलस्य न आ जाय, इसलिए हंसी-मजाक करने आ गये। राक्षस ने उन्हें बहुत छेड़ने, उकसाने की कोशिश की, लेकिन वो हँसते ही रहे।
परिणाम यह हुआ कि राक्षस की ताकत घटने लगी और देखते ही देखते एक छोटीे मक्खी जैसे हो गया, उन्होंने उसे पकड़कर अपने पीताम्बर में बांध लिया। ने दोनों से कहा कि जानते हो ये राक्षस कौन हैँ ? तब उन्होंने बताया कि इसका नाम हैँ आवेश।
जितना बदले की भावना रखोगे, यह बढ़ता चला जायेगा..!
मनुष्य के अंदर भी यह आवेश (क्रोध) का राक्षस घुस जाता हैँ, मनुष्य उसे जितनी हवा देता हैँ, उतना ही वह दोगुना, तिगुना, चौगुना होता चले जाता हैँ। इस राक्षस की ताकत तभी घटती हैँ, जब इंसान अपने आपको संतुलित रखता हैँ, हर समय मुस्कुराता रहता हैँ, क्रोध रूपी राक्षस की जितनी उपेक्षा करोगे, वह उतना ही घटता जायेगा और जितना बदले की भावना रखोगे, यह बढ़ता चला जायेगा..!!!*
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