सम्राट अशोक के समय बना था विश्व का पहला पर्यावरण संरक्षण अधिनियम

विश्व पर्यावरण दिवस
shakya vaibha maurya

पृथ्वी के भूमध्य रेखीय प्रदेशो की भीषण गर्मी से लेकर ध्रुवों के चरम शीत वातावरण में रहने वाले  मानव,जीव, जंतु , पक्षी, कीड़े, मकौड़े , सहित अगणित प्राणधारी एवं  उनके निवास स्थान, पेड़, पौधें, नदी, तालाब, झरना, पर्वत, पहाड़, पठार, मैदान, घास भूमि, शीत मरुस्थल एवं गर्म और शुष्क रेगिस्तान का आपसी समन्वय और प्राकृतिक सम्बन्धों का विस्तृत जाल पर्यावरण है।

पर्यावरण का अंग्रेज़ी रूपांतरण इन्वायरमेंट, फ्रेंच शब्द इन्वैरोंनर से बना जिसका अर्थ है घिरा हुआ 

मानव सभ्यता के आदिकाल से मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आखेट, कृषि,खनन, उद्योग, नगरीकरण, निर्वनीकरण, सड़क, रेलवे, नाभिकीय परीक्षण, शीलतक उपकरण, उर्वरक, रसायनों आदि का प्रयोग किया। इन क्रिया कलापो से जहाँ मानव विज्ञान के प्रयोग से विकास पथ पर बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ पर्यावरण, वातावरण, प्रकृति का चरम विनाश भी जारी है।

आज 21 वीं सदी में जब ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा  संपूर्ण विश्व में चर्चा का विषय बना हुआ है तब जरूरी है कि दुनिया के विशालतम लोकतंत्र भारत में प्राचीन काल से किये गए वे प्रयास, उपाय, सुझाव, नियम, कानून,विचार एवं विश्वास को जानना जिन्होंने सदैव  पर्यावरण संरक्षण का संदेश अपनी संस्कृति में समाहित किया है।

सिंधु घाटी सभ्यता में हाथी, चीता, गैंडा, भैंसा, बैल,हिरण, कबूतर आदि पशु पक्षियों का मुहरों या ताम्र पत्तियों पर अंकन  किया जाना, जल शुद्धता के प्रति लगाव , पीपल के बृक्ष से जुड़ाव विश्व की प्रथम नगरीय सभ्यता के लोगो का जीवों के प्रति सम्मान को दर्शाता है।

वैदिक काल  में धरती को  माँ का दर्जा देना, पीपल, बरगद, पाकर, गूलर, तुलसी, आम पलाश,अशोक आदि पेड़ो के साथ अनेक प्रकार के जीवों साँप, बन्दर, गाय, शेर ,बैल एवं  नदी,तालाब, झील, पर्वत,वायु,अग्नि,जल आदि को विभिन्न देवी देवताओं से जोड़कर देखना एक प्रकार से वन्यजीवों एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक एवं सजग  दृष्टिकोण को दर्शाता है ।

बौद्ध धर्म की  साधारण जीवनशैली जो सतत-पोषणीय विकास को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक है। इसमे  संसाधनों के अतिदोहन को वर्जित किया गया एवं सभी प्राकृतिक जीवों की परस्पर निर्भरता में विश्वास किया गया  हैं।

पंचशील सिद्धान्तों का पहला सूत्र कहता है कि " पाणाति पात विरत" अर्थात अकारण प्राणी हिंसा न करना अहिंसा को सर्वोपरि महत्व देना एवं  जैन अनुयायियों के लिये प्रकृति व इसके सभी जीव जंतुओं का  संरक्षण और इनके प्रति समान व्यवहार करना इस धर्म की मूल शिक्षा है। सिक्ख धर्म के पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के अनुसार, सभी जीव-जंतु, वृक्ष, नदी, पर्वत, समुद्र आदि को ईश्वर का रूप माना गया है।

मौर्यकाल में चंद्रगुप्त मौर्य के द्वारा कुप्याध्यक्ष (वन विभाग प्रमुख) के साथ वनपाल, वन चरक की नियक्ति एवं उपधा परीक्षा के असफल लोगो को वन संरक्षण का जिम्मा देना पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता का अनुपम उदाहरण है। 

चाणक्य का अर्थशास्त्र विश्व का प्रथम ऐतिहासिक ग्रन्थ है जिसमें पर्यावरण संरक्षण के लिए  राजा एवं  प्रजा के कर्तव्यों का वर्णन है । अर्थशास्त्र के एक सूत्र के अनुसार " रक्षे पूर्व कृतानराज नवांश्चाभि प्रवर्तयेत" अर्थात राजा को पहले पूर्व  के वनों का संरक्षण करना चाहिए इसके बाद नए वनों को रोपित कराना चाहिए।

अर्थशास्त्र के अनुसार मौर्यकाल में 5 प्रकार के 'अभयवन' होते थे जिनमें किसी भी जीव का शिकार, पेड़ पौधों को नुकसान पहुँचाना वर्जित था। ये अभयवन ही आज के अभ्यारण्य है। 

सम्राट अशोक के द्वारा विश्व में पहली बार पक्षियों एवं जानवरों के अस्पताल का निर्माण कराना पर्यावरण एवं वन्यजीवों के संरक्षण का अद्वितीय उदहारण है।

सम्राट अशोक के शिलालेख एवं स्तम्भलेख संदेश देते है। कि " जीवेत जीवे न पुसित विये" अर्थात किसी जीवित जीव को दूसरे जीव का भोजन न बनाया जाये।

"हिद न किचि जीवे अरभितु" अर्थात यहाँ किसी जीव को मारकर होम (हवन) न किया जाये।

दक्षिण भारत के साथ पूर्व मध्यकाल, सल्तनत काल में भी पर्यावरण एवं जीव संरक्षण के  उदाहरण देखे जा सकते है । मुग़ल काल में तुजुक ए बाबरी एवं तुजुक ए जहाँगीरी में दोनों बादशाहों के प्रकृति प्रेम एवं संरक्षण के साथ उद्यान लगवाने का विशेष उल्लेख मिलता है।

राजस्थान के संत जम्भोजी ने अपने विश्नोई संप्रदाय को सदैव जीव जंतु, पर्यावरण संरक्षण, प्रकृति प्रेम का संदेश दिया जो सन्देश इस समुदाय में आज भी नजर आता है।

18वीं सदी में जोधपुर की अमृतादेवी ने खेजड़ी बृक्षो को काटने से बचाने हेतु अपनी तीन पुत्रियों के साथ मिलकर पेड़ो को बचाने हेतु उनसे लिपटकर अपनी जान देकर पर्यावरण संरक्षण के लिए एक ऐसा सन्देश दिया जो सारे मानव समाज के लिए अद्वितीय, अनुपम एवं अविस्मरणीय है।

ब्रिटिश शासन की विनाशलीला के बाद स्वतन्त्र भारत ने पर्यावरण संरक्षण हेतु वन एवं वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, वन संरक्षण अधिनियम 1980, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986,  जनजातियों एवं अन्य पारंपरिक वन निवासियो के लिए (वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम 2006 , के द्वारा अनेक  कानून बनाये एवं  2010 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का  गठन किया

भारत सरकार ने अभ्यारण्य, जैव मण्डल रिजर्व, राष्ट्रीय उद्यानों के निर्माण के द्वारा लगातार वैज्ञानिक तकनीकी के द्वारा  वन्यजीव एवं पर्यावरण संरक्षण के कदम उठाएं है।

*भारतीय संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्व एवं मौलिक कर्तव्यों के तहत क्रमशः अनुच्छेद 48(A) एवं 51(A) में सरकारों एवं नागरिकों के लिए पर्यावरण की सुरक्षा, सुधार, वन्यजीवों की रक्षा, उनका संवर्धन एवं उनके प्रति दया भाव रखने का सन्देश है।*

भारत में उत्तराखण्ड की 2013 की तबाही , मुम्बई, आसाम, केरल में आने वाली बाढ़  के साथ विश्व के प्रत्येक कोने में आने वाली प्राकृतिक आपदाएं , जिनमे मानव का भी योगदान होता है, कम की जा सकती है। आज विश्व को क्योटो प्रोटोकॉल, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, एजेंडा 21  पेरिस समझौता के लक्ष्यों को पूर्ण करने हेतु एक साथ मिलकर जमीनी स्तर पर कार्य करना होगा । पर्यावरण संरक्षण हेतु सरकारों को अंतर्राष्ट्रीय समझौते एवं जनता को सरकार के भरोसे न रहकर वस्तुओं के पुनरुपयोग को बढ़ाकर, जल, बिजली, जैविक ईंधनों के सीमित उपयोग, रिसाइकिलिंग योग्य उत्पादों को बढ़ाकर, देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित 'पवित्रवन' बनाने की परंपरा बढ़ाकर, वर्तमान के सोशल मीडिया की फोटोग्राफी से बचकर  गाँव,  मोहल्ले,शहर से महानगरों तक किसी एक पेड़ को वास्तविक संरक्षण देकर  पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान कर सकते है। 

संपूर्ण विश्व में जैव विविधता की विनाश की दृष्टि से 36 मान्यता प्राप्त हॉटस्पॉट क्षेत्रो में चार क्षेत्र - पश्चिमी घाट, पूर्वी हिमालय, इंडो म्यांमार क्षेत्र एवं सुंडालैंड भारतीय भूभाग से जुड़े है।

विश्व पर्यावरण दिवस 2021 की थीम  इकोसिस्‍टम रेस्‍टोरेशन यानी कि पारिस्थितिकी तंत्र बहाली को साकार करने हेतु इंदिरा कॉल से इंदिरा पॉइंट तक एवं गुहारमोती से किबिथु  तक फैले प्रत्येक भारतवासी को अपनी जरूरतों को पूरा करने के साथ सतत विकास की अवधारणा को बढ़ाकर, अपने इतिहास, संस्कृति एवं संस्कारो  से प्रेरणा लेकर, पर्यावरण संरक्षण में अपना अतुलनीय योगदान देकर प्रकृति के प्रति अपने संवैधानिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करके सम्पूर्ण विश्व को राह दिखा सकते है।

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