झोलाछाप की जगह अपंजीकृत, प्राइवेट चिकित्सक कहना उचित -अनिल

डॉ۔ शिव सिंह मौर्य 

अयोध्या। अनिल दूबे आजाद की मुहिम शुरू की गई है। ताकि एक बड़े वर्ग जो वास्तविक सेवा कार्य में लगे रहते हैं उन्हें भी सम्मान मिल सके जो मीडिया के द्वारा फैलाया भ्रम है। सभी देश वासियों से अनुरोध एक नये झोला छाप  करोना योधाओ की पहचान कोविड 19 महामारी के चलते करोना महामारी बीमारी के चलते सासन व प्रशासन के सभी लोगों ने एक जुट होकर समाज की सेवा कीं वही देश की जनता को बचाने में अपनी पूरी  ताकत लगा दी .

हमारे देश की पुलिस व डाकटरो का बड़ा बलिदान रहा आज जब हमारे देश की जनता कीं जिन्दगी खतरे में थी होस्पीटलो में जगह नहीं थी बडे डाक्टर जनता को जबाब दे रहे थे۔ मेरा आप सभी से एक सवाल है जिन्हें आप झोला छाप डाक्टर कहते हो उन्ही झोला छाप डॉक्टरों ने घर घर गांव गांव गली में जाकर समाज के कुछ लोगों को नयी जिन्दगी दी۔ 

कम खर्च उधर में समाज सेवा कर रहे हैं और हमारा समाज व सासन प्रशासन एवं मीडिया कर्मी उसके बदले इन समाज सेवी लोगों को बेजती झोला छाप डॉक्टर के नाम नवाजा जाता है क्योंकि ये गरीब परिवार के लोग है۔ ये बुरे वक्त व गरीबी के कारण पढाई पूरी व डिगरी मोल खरीदने की हिम्मत नहीं रखते अपने आस-पास किसी होस्पीटल या डॉक्टर से सीख कर गाँव गली में दुकान करके बैठ कर समाज सेवी बनने का प्रयास करते हैं۔ पर समाज के हीं कुछ लोग और तथाकथित मीडिया जन द्वारा इन्हें झोला छाप डॉक्टर के नाम से नवाजा जाता है इस लिए मेरी शासन व प्रशासन व समाज के सभी लोगों से खासकर अपने को मीडिया कर्मी बताने वाले लोगों से अनुरोध है कि ये भी हमारे समाज के बींच के सम्मानित व्यक्ति  है इन्हें भी समाज में सम्मान से जीने का सम्मान सहित अधिकार होना चाहिए।

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