..नही तो? घर घर होगी नयी पाइप लाईन!

निवेदिता मुकुल सक्सेना

कुछ बाते हम अपने संस्कार व परिवेश से सीखते रहते हैं जो भविष्य के संघर्षों व उनसे आने वाले सफलतम परिणामो के लिये हमे तैयार करते है। तो कुछ बाहरी वातावरण से सीखने को मिलती हैं।

आज वही ओक्सिजन की त्राहि त्राहि के लिये हम कभी तो प्रशासन तो कभी सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे है ।क्या कभी सोचा हम इस ऑक्सीजन के लिये कितनी हत्या करते आये है । कभी नये मकान बनाने के लिये वृक्षो को काटकर तो कभी उधोग लगाकर क्या कभी हमने प्रक्रती से जो छिना जो हमे पानी ओर सांस(ओक्सिजन) दे रही थी वह भी खुद के भाविष्य का हित ना समझते हुये मानव इन वृक्षो को सतत काटते गये । 

ओह , क्या कभी सोचा उस दर्द को जो मुक-सजीव होते हुये भी वो पेड़- पौधे तुमसे कुछ कह रहे हैं, फिर भी तुम कुछ सुन ना पाये।फिर आ ही गया वो समय  जिसने प्रकृति के दोहन की सजा  जल्दी मिली  बहाना बना कोरोना वाइरस। अब जब हमे सब एक साथ वनस्पति से  मिलने  वाली प्राकृतिक ऑक्सीजन  की जगह नकली ओक्सिजन की मांग को मुह मांगे दाम मे खरीदने को तैयार है। मे भी होम आईसोलेशन मे रहते हुये बचपन की उन यादो मे आयी जो आज की अपेक्षा सौ गुना हरी भरी व सुन्दर थी। 

बहुत कम गांवो मे गयी मेरे नाना जी  उत्तर प्रदेश के पन्तोजा गाँव के जमींदार थे मेरा जाना बमुशीक्ल तिन बार ही जाना हुआ । लेकिन गाँव तक का सफर आज की तरह  यू आसान ना था पहले ट्रेन से दो दिन का सफर, फिर बैलगाड़ी  स्टेशन पर लेने आती बडा मजा आता लुडकते पुडकते खैतो को देखतें बड़े बड़े कटहल के पेड, इमली, आम के बागान कही कबिट और रस भरी ओर सब्जिया देखकर तो लगता यही रह जाए कितना शुद्ध वातावरण। नाना जी की हवेली मे आते ही नीम का पैड बड़े से दरवाजे से अंदर सबसे पहले वही मिलता फिर घर मे ही बडा सा कुआँ ओर दालान जहा सब कामो मे व्यस्त कोई सब्जिया काट रहा कोई लकडी सफेद चक बैठक व्यवस्था पान की पानदान रखा  हुआ रहता गाँव से मिलने वाला स्नेह व खुब लाड़ सबके बीच देखने को मिलता। 

किसी के घर के दरवाजे बन्द नही मिलतें हरे भरे आंगन चारपाई लगीं हुई वर्तमान को देखे तो सोचकर वो समय स्वर्गानुभुती है जीसे हम अब शहरी आकर्षण में खोते जा रहे है। खैर, ये सिर्फ खुशनुमा याद है।वही से शुरु हुई भविष्य की कहानी पापा चूंकि पर्यावरणविद के साथ भोतिक विज्ञान के प्रोफेसर रहे साथ ही पापा  एक फिलोसफर भी रहे। इस कारण वह वर्तमान स्थितियो को भाविष्य की दुरदृष्टिता  को देखते हुये सजग परिणामों व तथ्यो के साथ रखते थे। तब मे सातवीं या आठवी कक्षा मे रही  होंगी तब पापा ने कहा जीस तरह लोग गाँव की जमिन व खैत बेचकर शहरो की और रुख कर रहे। एक दिन सब शहर बन जायेंगे हर घर मे कार व हर एक पास दोपहिया गाडी होगी आने जाने मे कोई परेशानी नही होगी बस हा पैट्रोल जरुर ज्यादा खर्च होगा पर पैसा भी बड़ेगा, एक दिन पृथ्वी का रक्षा कवच जो पृथ्वी को सुर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से बचाए हुये हैं ओजोन परत  इसमे भी पूरानी छतरी मे जीस तरह खीचते ही छेद हो जाते हैं वैसे ही ओजोन मे भी हो जायेंगे। 

पृथ्वी पर कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर बड़ता जायेगा क्युकी जनसंख्या भी तीव्रता से वृद्धि करेगी। शहरीकरण टॉप पर होगा और वनस्पति विलुप्ता के कागार पर मानव सब भुल चका होगा वह वास्तविकता मे है किस पर निर्भर।

वैसे भी विज्ञान ये कहता है, जीस चीज का उपयोग हम ज्यादा करेँगे वह तेजी से बड़ेगा और जिसका उपयोग कम करेँगे वह कम विकसित होगा। तब एक कहानी हमने भी बनाई थी जो लगता हैं आज सही भी बैठ रही।  ये काहानी कयी वर्षों से अपने विद्यार्थियों को भी सुनाती आ रही मकसद उनको प्रकृति के देख रेख व संरक्षण की और जागरुक करना । इस  कहानी को एक छोटे रुप मे यहा रखने का प्रयास कर रही हु क्युकी ये कहानी तब बन उस समय उम्र भी कम थी और ज्ञान की कमी भी। जो इस प्रकार हैं- "परिद्रश्य कुछ इस तरह का है वायुमंडल से ओजोन परत खत्म हो गयी और पराबैगनी किरणों सीधे पृथ्वी पर आ रही इस कारण लोग इस किरण के सम्पर्क मे आकर स्किन व ब्रैन कैंसर जैसी बिमारियों को घेर रहे इस कारण अब हर कोई घर से आसानी से बाहर नही निकल सकता एक मेटेलिक कोट पहनकर ही बाहर जाना होगा। 

मानव भी पहले जैसी संरचना वाला कहा रहा वह भी परिवर्तित हो गया उसका चेहरा छोटा आंखे बडी क्युकी वह सिर्फ  डिजिटल दुनिया मे रहता हैं हर कार्य के लिये तो सिर्फ आँख ही उसके ज्यादा काम आ रही, मस्तिष्क बहुत बडा,उचाई भी बहुत कम क्युकी हर काम के लिये वह मशीनों पर निर्भर हैं तो हाइट बहुत कम हाथ पैर भी बहुत छोटे क्युकी अब चलना नही होता था। 

खाने के लिये सुबह केलशियम, विटामिन्स,मिनरल्स, प्रोटीन,व अन्य टैबलेट को लेना होता अब घबराइए नही हर घर मे पानी बनाने की मशीन मौजुद है और हर घर मे ओक्सिजन की पाइप लाईन अब आसानी से हर घर मे ओक्सिजन मौजुद होगी हा बस जब जब मनुष्य घर से बाहर निकलेगा तब छोटा सिलेंडर पीठ पर लटका लेगा । हर घर मे सजावट स्वरूप पौधो के कुछ बोनसाई (वृक्ष का छोटा रुप) जीसे लोग अपनी नयी से परिचय कुछ इस प्रकार करायेंगे प्राचीन  समय मे हर जगह इस तरह के बडे वृक्ष हुआ करते थे बच्चो। तब बच्चे कंप्यूटर जेसी आधुनिक डिवाइस पर घर से ही शिक्षा प्राप्त करेँगे तब माता -पिता बतायेंगे पहले के समय के बच्चो शिक्षा प्राप्त करने को स्कूल में जाना पडता था अफसोस जब जब मे भी बच्चो को क्लास रूम मे पड़ाने जाती थी, तो ये कहानी किशोरवय को क्लास मे अवश्य सुनाई पर आज लगता हैं जैसे सच दस्तक दे रहा या दुख भरी कहानी सच होने के कागार पर हैं शायद। 

वैसे भी पानी खरीदने की नोबत तो आ ही चुकि हैं। बात डराने की नही बल्कि उस वास्तविकता से अवगत कराने की है की अभी भी बहुत कुछ हमारे हाथ मे है वरना वह दिन दुर नही जब बिजली व नल की पाइपलाइन की तरह ओक्सिजन की नयी पाइपलाइन घर घर डालनी होगी और एक नया व्यवसाय ओक्सिजन उधोग निर्मित होंगे जो घर घर ओक्सिजन पाइपलाइन फिक्स करेँगे मीटर के साथ।खैर बात पैसे की नही तब तक आर्थिक सम्पन्नता भी कागार पर होगी लेकिन हमे चाहिये क्या??

"जिम्मेदारी हमारी " लगाये हर जगह ऑक्सीजन की फैक्ट्री हर घर मे हो प्राकर्तिक ऑक्सीजन चाहे शहर हो या गाँव जूट जाए अधिक से अधिक ओक्सिजन निर्मित करने वाले पौधो के वृक्षारोपण में ये है जीने के लिए सांसो की आखरी जिम्मेदारी हमारी। हर अवसर पर उपहार मे पौधे अवश्य दे व अपनी नई पीढ़ी को इसका महत्व भी समझाए। -प्रस्तुति चंद्रकांत सी पूजारी

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