दुकान के भरोसे जीविका चलाने वालों के परिवार पर संकट

लॉकडाउन का असर

रामकुशल मौर्य 

अम्बेडकरनगर | जिन्दगी और मौत की जंग में कोविड-19 अपना मुंह फैलाए लोगों को अपना ग्रास बना रहा है। वहीं कारोबार पर भी ग्रहण लगाये हुए है। खासकर वे व्यवसाई इससे आहत हैं जिनका परिवार व्यवसाय पर ही निर्भर है। दवा, किराने व सब्जियों की दुकानें तो खुली हैं पर वे दुकानदार जो अपने घरों से दूर किराये के मकान में अन्य व्यवसाय या धन्धा करते हैं उनका और उनके परिवार का जीवकोपार्जन भरण पोषण पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं, उनकी व्यथा कौन सुने।

मीडिया ने जब लॉकडाउन के दौरान शहरों व् ग्रामीणांचल की बाजारों की पड़ताल की तो कुछ ने बताये जिनके प्रतिष्ठान और मकान एक में ही एक दरवाजे या शटर से आवागमन होता है वे तो अपना व्यवसाय करने में जुटे रहे, किन्तु जिनका व्यवसाय किराये के मकान तक ही सीमित है उनका क्या होगा, उन्हें तो महीने भर का भाड़ा देना ही पडे़गा। उन्होंने कहा कि वे सरकार के लॉकडाउन अघोषित फरमान के पालन में अपने परिवार के भरण पोषण के लिए चिंतित हैं। कुछ दुकानदारों ने बताया कि जब जीविका नहीं तो जीवन का कोई मोल नहीं। जीवन और जीविका एक दूसरे के पूरक हैं। जीविका से ही कई परिवारों के घरों की गृहस्थी और चूल्हा जलता है, पर लाचार और बेबस छोटे व्यवसाइसों पर वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण लॉकडाउन की व्यवस्था ने छोटे दुकानदारों की घरेलू व्यवस्था को चौपट कर दिया है। पिछले साल हुए पूर्ण लॉकडाउन में छोटे व्यवसाइयों के जीवन और जीविका सुदृढ़ नहीं हुए थे कि फिर से उनके अरमानों पर पानी फिरता नजर आ रहा है।

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