प्रवासियों के सामने पेट पालने की खड़ी हो गई है परेशानी
सुजाता मौर्य
अम्बेडकरनगर. कोरोना कर्फ्यू के कारण प्रवासियों के सामने पेट पालने की परेशानी खड़ी हो गयी है। महानगरों में रोजगार बन्द होने से बड़ी संख्या में कामगार वहां से पलायन कर अपने घरों को लौट चुके हैं जिस के बाद लोगों ने इस महामारी के दौर में खुद को जिन्दा रखने के लिए अपने रोजगार बदल दिये हैं। हुनरमन्द हाथों ने भी फल और सब्जी बेचना शुरू कर दिया है।
महानगर समेत ग्रामीण अंचल में रहने वाले मजदूर तबका लोग मजदूरी करके अपना व अपने परिवार का पालन पोषण करते हुए दो जून की रोटी का जुगाड़ किसी प्रकार कर लेते थे लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते काम बंद हो जाने के कारण जहां बड़ी संख्या में एक बार फिर प्रवासियों की वापसी हो चुकी है तो मजदूरी करने वालों के सामने खाने का संकट खड़ा हो गया है, जिसके कारण अधिकतर लोगों ने अपने परिवार का पेट पालने के लिए रोजगार बदल लिये हैं।
रोज खाने कमाने वाले लोग इस संकट की घड़ी में कोई भी काम करने को तैयार हैं और कइयों ने नया काम शुरू भी कर दिया है। भियांव निवासी शब्बू सिद्दीकी मुंबई में रहकर एक प्राइवेट कम्पनी में जीन्स डिजाइनिंग का काम करते थे लेकिन कोरोना संक्रमण को देखते हुए काम बंद हो जाने के कारण अपने वतन वापस आगये और यहां फल की दुकान करने लगे।
हुनरमंद होते हुए भी मजबूरी में फल का कारोबार कर रहे सब्बू ने बताया कि पेट पालने के लिए कोई भी काम छोटा नहीं लगता। इसी तरह सैदपुर के डेबल निषाद का कहना है कि परिवार का पेट पालना इस वक्त मुश्किल हो रहा है। इस लिए ठेला पर सब्जी की फेरी लगा कर किसी तरह दो जून की रोटी का इन्तेजाम हो रहा है ये तो बानगी मात्र है मगर यह सच्चाई है कि कोरोना कफ्र्यू में पेट की खातिर कोई ठेला खींच रहा है तो कोई चाय या सब्जी बेच रहा है। इनमें कई ऐसे हैं जिनके हाथ हुनरमंद है लेकिन मजबूरी में वो कोई भी काम करने की तैयार हैं।
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