हमारे यहाँ करोना छुट्टी पर है?

भाई साहब, हमारे यहाँ करोना छुट्टी पर है, क्यो की हमारे यहाँ चुनाव है।

प्रकाश शुक्ला 

आज कल हर जगह करोना को फैलाने वोटों के भिखारी निकल पड़े हैं, कुटिल राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी निकल पड़े हैं। करोना गाइडलाइन का पालन करने का जो चलन है। उसे तोड़ने बहुत से अनाङी निकल पङे है। आज मुझे हिटलर की वह बिना पंख वाले मुर्गे की कहानी याद आ गई जिसमें उसने लोकतंत्र के तुलना उस मुर्गे से की थी जिसके उसने एक एक करके सारे पंख उखाड़ दिए थे उसके बाद भी छोटे छोटे दाने डालने पर वह मुर्गा हिटलर के पीछे पीछे चलता हुआ उसके कदमों में जा गिरा है। 

जगह करोना को फैलाने वोटों के भिखारी निकल पड़े 

इस कहानी का तात्पर्य था कि लोकतंत्र में जनता उस मुर्गे के समान है जिसके सारे पंख नोच दिए जाये फिर थोड़ी थोड़ी सी सुविधाएं देते जाये तो लोकतंत्र के राजा वह सुविधाएं देकर उसके भगवान बन जाते है।आज लोग अस्पतालों में इलाज न मिल पाने के कारण अपनी जान को खो दे रहे हैं और बेड के लिए आपस में लड़ रहे हैं। अगर यह लड़ाई लोग पहले आरक्षण को लेकर, जात पात को लेकर,मंदिर और मस्जिद को लेकर, चर्च और गुरुद्वारों को लेकर,ना लड़कर अपनी बेसिक सुविधाओं के लिए सरकार से लड़ते तो शायद आज परिस्थितियां कुछ और होती। आज करोना कि भयानक स्थिति देखते हुए सरकार द्वारा उचित कदम ना उठाए जाने पर मेरा ह्रदय बड़ा द्रवित है की चाहे सत्तापक्ष हो चाहे विपक्ष हो लोगों को कोई फर्क ही नहीं पढ़ता है।

आज लोगों की जान की कोई कीमत ही नहीं है। त्रीस्तरीय चुनावका समय चल रहा है रोज समाचार प्राप्त हो रहा है कोई जलेबी बांट रहा है कोई समोसा बांट रहा है कोई आटे की बोरी बांट रहा है कोई साड़ी बांट रहा है सच में लोकतंत्र में सेवा का भाव रखने वाला कोई प्रधान पद प्रत्याशी, बीडीसी प्रत्याशी, जिला पंचायत प्रत्याशी जिस क्षेत्र से खड़ा हो रहा है वहां पर वह पैसा लोगों को लुभाने मे न लगाकर अगर उस क्षेत्र का सेनिटाइजेशन करा देता, फ्री मास्क वटवा देता और लोगों को जागरुक करता तो शायद वह प्रत्याशी जनता की नजरो मे अपने आप जीत जाता।

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