‘सामाजिक क्रांति के प्रणेता’ ज्योतिबा फुले को अपने भीतर खोजते हुए उनकी जयंती पर नमन
मंजुल भारद्वाज
समाज के निर्माताओं,नीति निर्धारकों और महानायकों को कैसे याद किया जाए! उनकी फोटो पर हार चढ़ा कर,परिचर्चा आयोजित कर या परिचर्चा में भाषण ठोक कर. सभी चाहने वालों के अपने अपने तरीके हैं और उन्हें अपने तरीके से अपने नायक को याद करने का अधिकार है.
मैं इस रश्म अदायगी से आगे की बात रखना चाहता हूँ. मेरे लिए प्रश्न है जिस प्रेरक विभूति को मैं याद कर रहा हूँ उसके ‘आदर्श और मूल्यों’ को ‘मैंने’ अपने जीवन में कहाँ और कैसे उतारा? उनके आदर्शों को जीवन जीते हुए अपने समय और समाज में कैसे जीया? और जीया तो समाज पर, मेरे उपर क्या प्रभाव दिखा?
क्योंकि विगत वर्षों से संविधान संरक्षण के बावजूद, सरकारी ठकोसलों के बावजूद भारतीय समाज में ‘जातीय संघर्ष’ बढ़ा है और ‘जुमलेबाज़’ के काल में चरम पर है.
ऐसे समय में सामजिक ‘समरसता,समता और शिक्षा’ के मूल्यों का अलख जगाने वाले ‘सामाजिक क्रांति के प्रणेता’ ज्योतिबा फुले को हम कैसे याद करते हैं? मैं ‘सामाजिक क्रांति के प्रणेता’ ज्योतिबा फुले को अपने भीतर खोजते हुए उनकी जयंती पर नमन और मनन करता हूँ उनके सपनों को साकार करने के लिए!
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