नियति...
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता"
एक दिन सुबह यमराज भ्रमण को निकले.टहलते टहलते उन्हें रास्ते पर आता हंस दिखायी दिया. यमराज हंस को देखकर हँसे और आगे चल पड़े. हंस को यमराज की हँसी कुछ समझ नहीं आयी और हंस ने ये बात अपने मित्र गरुड़ को बताई. गरुड़ ने अनुमान लगाया कि हंस के दिन पूरे हो गए हैं और उसकी मृत्यु निकट है. हंस घबरा गया और गरुड़ से मदद की गुहार लगाने लगा. गरुड़ ने भी मित्र की सहायता करने का निर्णय लिया. गरुड़ ने हंस को बचने का उपाय बताया कि वह हंस को अपनी पीठ पर बैठाकर किसी ऊँचे पहाड़ की गुफा में छोड़ आएगा. हंस को गरुड़ का विचार पसंद आया. गरुड़ ने हंस को पीठ पर बैठा लिया और उड़ने लगा. काफ़ी दूर तक ऊँचा उड़ने के बाद दोनों ऊँचे पहाड़ की गुफा तक पहुँच गए. हंस गरुड़ से बोला कि "मैं गुफा के अंदर चला जाता हूँ. तुम बाहर से गुफा का दरवाज़ा किसी भारी पत्थर से बंद कर देना जिससे कोई भी बाहरी विपदा मेरे पास ना आ सके ". गरुड़ ने ऐसा ही किया और वापिस अपने निवास स्थान पर आ गया. यमराज ने अपनी यात्रा शुरू करने के लिए गरुड़ को बुलवाया. गरुड़ ने आकर यमराज को प्रणाम किया. यमराज गरुड़ को देखकर हँसने लगे. गरुड़ को यमराज की हँसी कुछ अप्रत्याशित लगी. गरुड़ ने यमराज से प्रश्न किया "महाराज कल आप मेरे मित्र हंस को देखकर हँसे थे और आज आप मुझे देखकर हँस दिए. क्या मैं वजय जान सकता हूँ"?
यमराज ने जवाब दिया "हे गरुड़... कल मैं हंस को देखकर हँसा क्योंकि मैं सोच रहा था कि इसकी मृत्यु निकट है लेकिन अगर ये खुद भी उड़ कर जाएगा तो भी चौबीस घंटे में उस पहाड़ तक नहीं पहुँच पाएगा.और तुमको देखकर मुझे हँसी इसलिए आयी कि तुमने स्वयं ही हंस को उसकी मृत्यु के स्थान पर पहुंचा दिया. उस गुफा में खूंखार जानवर रहते हैं. और उन्होंने हंस को मार दिया है. गुफा का दरवाज़ा पत्थर से बंद होने की वजय से हंस अपनी जान भी नहीं बचा पाया. और उस हंस की आत्मा को लाने ही हम अभी निकल रहे हैं". यमराज का जवाब सुनकर गरुड़ को आत्मग्लानि हुई. यमराज ने गरुड़ को समझाया "तुम अपनी जगह ठीक थे लेकिन नियति को कोई नहीं बदल सकता.
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