हदों से टकराता हुआ
आत्म संघर्ष
मंजुल भारद्वाज
आपके आस पास
सब वैसा ही रहता है
जैसा पहले था
आपके भीतर अंतर्मन में
टूट फूट चलती रहती है
विवेचन, विश्लेष्ण, अवलोकन
चलता रहता है
विध्वंस और निर्माण का
मंथन चलता है
आप अपने विचारों का
सूत कातते रहते हो
दृष्टि को धुनते रहते हो
एक एक धागे को
उन धागों के सिरों को
पकड़ने, जोड़ने के लिए
बाहर सब शांत
अंदर धधकता लावा
होने, करने, देखने, दिखाने के
विरोधाभास और समन्वय को
साधता हुआ
तीव्र आवेग संवेदना की
हदों से टकराता हुआ
जैसे अपनी धुरी पर घूमती
पृथ्वी के वेग से अनभिज्ञ
बाहर शिथिल विश्व
टेढ़ा होते हुए भी सीधा
टंगा हुआ है अपनी अट्टालिकाओं में
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