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अंधड़ की गुहार
मंजुल भारद्वाज
उड़ती रेत में
रंगों का लिपटकर
एक साथ आना
धुंधली उम्मीदों का
जवां होना है
सूखे बरसों से
ख़ाली घड़ों की
प्यास बुझाना है
विरह में जलते
अरमानों के लिए
दरख्तों की सामूहिक
अरदास होती है
बादल से एक
अंधड़ की गुहार है
बूंद बूंद बरसने की!
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