आत्मनिर्भरता - भारत के पुनरुत्थान का महायज्ञ۔




राजपूत कमलेश डाभी 

पाटण, गुजरात | आत्मनिर्भर- यह शब्द अपने आप में वृहद अर्थ लिए हुए है। यह अर्थ इतना वृहद है कि उसमें एक व्यक्ति के आय से लेकर देश की जीडीपी तक छुपी हुई है। आत्मनिर्भर अर्थात स्वयं पर निर्भर, स्वयं के आसपास ऐसी व्यवस्था का निर्माण कर लेना या एक ऐसी व्यवस्था के निर्माण में सहयोग देना जो आपको स्वावलंबी बनाए। यह केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक योजना मात्र नहीं है, यह सवा सौ करोड़ भारतीयों के सपनों को पंख देने वाला और उस सपनों को धरातल पर स्थापित करने का एक मार्ग है। आत्मनिर्भरता में सुरक्षित भारत का वह प्रतिबिंब दिखता है, जिसमें आने वाले समय में इस विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता हो। यह अभियान भारत की दशा और दिशा को परिवर्तित करने का एक आह्वान है। एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना जिनमें भारत को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए विश्व की तरफ ना देखना पड़े। इसके उलट विश्व को ही तकनीक से लेकर खाद्यान्न जैसी किसी भी प्रकार की जरूरतों के लिए भारत की तरफ देखना पड़े। निश्चित रूप से यह  चुनौतीपूर्ण है परंतु भारतीयों की कर्मठता ने कई चुनौतियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। यह सिर्फ केंद्र सरकार का प्रयास भर नहीं है, यह तो करोड़ों भारतीयों का वह संकल्प है जो उनके सपनों की सिद्धि में सबसे बड़ा सहायक है। असल में यह एक यज्ञ की भांति है जो भारतीयों के संपन्नता, समृद्धि के लिए भारतीयों के द्वारा शुरू की गई है, लेकिन यह विचार कोई आज का नहीं है यह विचार वास्तव में महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा का ही नया स्वरूप है। गांधी जी ने हमेशा स्वावलंबी बनने पर बल दिया और ग्राम स्वावलंबी बनने के लिए उन्होंने कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने की बात की लेकिन इस बात को स्वीकार करने में हमें कोई लज्जा नहीं होनी चाहिए कि गांधीजी के स्वावलंबन के सिद्धांत को हमने गांधीजी के जाते ही छोड़ दिया। आज वर्षों बाद हम भारतवासी पुनः उसी रास्ते पर लौट रहे हैं जो गांधी जी ने हमें दिखाया था। सही मायने में अगर हम देखें तो आत्मनिर्भर भारत का तात्पर्य यही है कि दुनिया के साथ जुड़े रहते हुए आर्थिक विकास के साथ अपने लोगों के जीवन की गुणवत्ता सुधारना और भारत के भविष्य का पुनर्निर्माण करना। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का आह्वान इसलिए तात्पर्य पूर्ण है क्योंकि उसमें यह स्वप्न अंतर्निहित है कि देश अपने किसी भी जरूरत के लिए परमुखापेक्षी ना रहे। आत्मनिर्भरता की राह में अगर सबसे बड़ा कोई रोड़ा है तो वह है पूंजीवाद। इसके कारण सारी पूंजी बड़े बड़े पूंजीपतियों के हाथ में रहती है, जिससे ग्रामीण स्तर पर लघु उद्योग करने वाले व्यवसाई अपने उद्योग को निरंतरता और विस्तार नहीं दे पाते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत इच्छा शक्ति के कारण एक ओर जहां उन्होंने मेहनतकश लोग और उनकी योग्यताओं को पहचाना वहीं दूसरी और लघु उद्योग से लेकर बड़े स्टार्टअप तक के लिए करोड़ों के बजट का प्रावधान भी किया। आज कोई व्यक्ति अगर अपना छोटा सा दुकान शुरू करना चाहता है और उसके पास पूंजी की कमी है तो सरकार उसे कर्ज देने के लिए तैयार है। यह कहीं ना कहीं उस छोटे दुकानदार के आत्मबल को मजबूत करने वाला कदम है। क्या आपको याद है 1965 में पाकिस्तान से चल रहे युद्ध का वह दौर जब अमेरिका ने भारत को गेहूं देने से मना कर दिया था। उस समय हम खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं थे। हम अपने देशवासियों का पेट भरने के लिए दुनिया के अन्य देशों से अनाज खरीदा करते थे। लेकिन उस समय हमारे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे जो कद में तो छोटे थे किंतु वे संकल्पों में बहुत बड़े थे। उस वक्त उन्होंने ’जय जवान जय किसान’ का नारा दिया और कहा कि खाद्यान्न के क्षेत्र में अब हमें आत्मनिर्भर होना है। उन्होंने कहा था "हम गमलों में गुलाब की जगह गेहूं उगाएंगे और आवश्यकता पड़ी तो इस देश के नागरिक एक वक्त नहीं खाएंगे लेकिन कटोरा लेकर गेहूं मांगने नहीं जाएंगे।” शास्त्री जी के इस आह्वानग को देश ने स्वीकार किया और उसका परिणाम यह है कि आज भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है। आज हम दुनिया से अन्न मांगते नहीं उन्हें देते हैं। खाद्यान्न के साथ-साथ तकनीक के क्षेत्र में भी हमारे वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत से क्रायोजेनिक इंजन बनाया जिसके मदद से हम अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बने। हम ही वह देश हैं जिसने सबसे कम खर्च में अपना यान मंगल ग्रह तक भेज दिया। आज दुनिया के कई देश हमारी मदद से अंतरिक्ष में अपना यान भेजते हैं। अमेरिका ने जब समझौते के बावजूद भी हमें सुपर कंप्यूटर देने से मना कर दिया था तब हमारे नौजवान वैज्ञानिकों ने चुनौती स्वीकार करते हुए सुपर कंप्यूटर तक बना डाला। जितने खर्च में हम अमेरिका से उसे खरीदते उतने ही खर्च में हमने खुद का सुपर कंप्यूटर विकसित कर लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में दुनिया में बड़ी ताकत बनकर उभरा और आज अमेरिका हमारे यहां से सॉफ्टवेयर इंजीनियर लेकर जाते हैं। हाल ही का अगर हम उदाहरण ले तो कोरोना के इस मुश्किल दौर में भी हमने अपने किसी भी जरूरत के लिए दुनिया के सामने हाथ नहीं फैलाया जबकि अमेरिका और ब्राजील जैसे देशों ने भारत से हाईड्रोक्लोरिकसिक्विन लिया। भारत ने कहा कि हम अपने लिए भी रखेंगे और सब को भी देंगे। यह आत्मनिर्भरता का एक बड़ा उदाहरण है। आत्मनिर्भर किस क्षेत्र में और कैसे होनी चाहिए इसका उदाहरण भारत ने पेश किया। आर्थिक संपन्नता से कोई आत्मनिर्भर नहीं होता। अमेरिका जैसे आर्थिक रूप से विकसित और संपन्न राष्ट्र को भी चीन से मास्क और कोरोना किट लेना पड़ा। ताकतवर और समृद्ध होना एक अलग बात है और आत्मनिर्भरता के बल पर अपने राष्ट्र के स्वाभिमान को जिंदा रखना एक अलग बात। कोरोना ने बड़े-बड़े विकसित देशों की हवा निकाल दी। बम, तोप, बंदूकों से आप कितनी भी मजबूत हो जाएं परंतु आप महान राष्ट्र तभी कहलाएंगे जब मुश्किल समय में दूसरों के काम आ पाएंगे और भारत ने यह करके दिखाया है। कोरोना काल में हमने कोरोना किट से लेकर, मास्क, सैनिटाइजर और वैक्सीन तक खुद ही बनाया। यह वर्तमान समय में हमारी आत्मनिर्भरता की पहली सीढ़ी है। आत्मनिर्भरता का मतलब व्यापार और रोजगार नहीं स्वाभिमान और आत्मरक्षा है। लेकिन इस सब से अलग कुछ ऐसी चीजें हैं जिसमे हमें सुधार की आवश्यकता है। पहले तो हमें इस मिथक को तोड़ना पड़ेगा कि जब तक हम विश्व बाजार में नहीं रहेंगे तब तक कुछ नहीं कर सकेंगे। हमारे बाजार की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे अंतिम आदमी की जरूरतें भी पूरी हो पाए। हर व्यक्ति की क्रय शक्ति ऐसी हो जिससे वह चीजों को अपने हिसाब से प्राप्त कर सके। ऐसे ढांचे वाला आत्मनिर्भर समाज खड़ा हो जिसके मन में यह विश्वास जग पाए कि यह हमारे लोगों के श्रम से तैयार हुआ उत्पादन है, हमारे देश में बना उत्पादन है और इसलिए यही श्रेष्ठ है। जिस दिन यह विश्वास जग गया उस दिन भारत स्वतः आत्मनिर्भर बन खड़ा होगा। हम वह लोग हैं जो व्यापारिक मूल्य से ज्यादा सांस्कृतिक और मानवता के मूल्य को स्थान देते हैं। हम "शुद्ध लाभ" नहीं "शुभ लाभ" में विश्वास करने वाले लोग हैं। इसीलिए जब हम आत्मनिर्भर होंगे तभी हम सुरक्षित और स्वाभिमानी होंगे, अपने जीवन को बेहतर बनाएंगे और दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने का यत्न करेंगे। ऐसा करने की क्षमता भारत के पास है, ऐसा कर सकने वाले दृढ़ निश्चय से भरपूर युवा तरुणाई भारत के पास है, शायद इसलिए प्रधानमंत्री जी ने करोड़ों भारतीयों को आत्मनिर्भर होने का एहसास दिलाया है।

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