चंद टुकड़ों की खातिर ईमान बदल लिया!

गैर को  हमराज़  बना इंसान बदल लिया
सुरेंद्र सैनी

चंद टुकड़ों की खातिर ईमान बदल लिया

मन्नत  कुबूल ना हुई भगवान बदल लिया

जब कभी बढ़ने  लगे नासूर तन-बदन के

बुरी आदत ना बदली निदान बदल लिया

कोई क्या बताता इस मर्ज-ए-उलझन का

गैर को  हमराज़  बना इंसान बदल लिया

हालात ने सूखा दिए  फूल  इस चमन के

उसे यकींन ना हुआ बागबान बदल लिया

यही तो इस दुनियां का  दस्तूर है "उड़ता"

शान पर  बात आए तो मान' बदल लिया 

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