विकास का पोस्टर

बूढ़ी भारत माँ!

मंजुल भारद्वाज 

मोशा के विकास का 

सर्वहारा पोस्टर 

जुमलों से लुटी 

उम्मीद की सूखी 

नदी के किनारे 

सपनों की जलती 

चिता को देख

पथराई आँखें 

विकारी संघ के

शिकंजे में फंसी

अपनी संतानों की 

बर्बादी के मरघट में 

ज़िंदा रहने के लिए

उम्र के इस पड़ाव पर  

बेबसी को श्रम की 

सार्थकता से हराती हुई 

मिर्ची,प्याज,आलू 

चुकन्दर बेचती 

बूढ़ी भारत माँ!

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