आत्म-विजेता ही सफल नायक बन सकता है!

स्वयं के साथ प्रतिस्पर्धा’ करके सर्वोच्च शिखर की ओर आगे बढ़े!

प्रदीपजी

लखनऊ।  आज का युग घोर प्रतिस्पर्धा का युग है। विश्व के हर क्षेत्र में एक-दूसरे से आगे बढ़ने की आपाधापी मची है। उचित-अनुचित को ताक पर रखकर सफलता प्राप्त करने के हर तरीके अपनाये जा रहे हैं। ऐसे विषम समय में हमें यह समझना होगा कि प्रतिस्पर्धाओं का उद्देश्य बालक की आंतरिक गुणों की अभिव्यक्ति क्षमता को विकसित करना होता है। यदि हम अपनी मौलिक चीजों को औरों के सामने अपने ढंग से प्रस्तुत करना चाहते हैं तो इसके लिए इस तरह की प्रतिस्पर्धाओं की आवश्यकता पड़ती है। 

बच्चों को बाल्यावस्था से नये और रोमांचक तरीके से सिखाने की शिक्षा पद्धति विकसित की जानी चाहिए। यह शिक्षा ‘स्वयं के साथ प्रतिस्पर्धा’ के विचार पर आधारित होनी चाहिए। शिक्षा द्वारा प्रत्येक बालक को आत्म-विजेता बनने का मार्गदर्शन देना है। आत्म-विजेता ही सफल विश्व नायक बन सकता है। विश्व का नेतृत्व कर सकता है। प्रकृति के गर्भ में विपुल संपदा भरी पड़ी है, यदि मानवीय पुरूषार्थ उसका सदुपयोग सीख ले तो कोई कारण नहीं कि हर मनुष्य को, हर प्राणी को, सुख-शांति तथा स्वाभिमान के साथ रह सकने योग्य विपुल साधन उपलब्ध न हो जाएँ। प्रत्येक मनुष्य की स्मरण शक्ति असीमित है। 

मनुष्य में सारे ब्रह्याण्ड का ज्ञान अपने मस्तिष्क में रखने की क्षमता होती है। यह एक सत्य है कि स्मरण शक्ति एक अच्छा सेवक है इसे अपना स्वामी कभी मत बनने दो। आंइस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक तथा एक साधारण व्यक्ति के मस्तिष्क की संरचना एक समान होती है। केवल फर्क यह है कि हम अपने मस्तिष्क की असीम क्षमताओं की कितनी मात्रा का निरन्तर प्रयास द्वारा सदुपयोग कर पाते हैं। हर व्यक्ति को अपनी इस विशिष्टता को पहचानकर उसे सारे समाज की सेवा के लिए विकसित करना चाहिए। हमारा विश्वास है कि दूसरों से प्रतिस्पर्धा की पारम्परिक शिक्षा नीति से यह अधिक प्रभावशाली एवं शक्तिशाली शिक्षा नीति है।

इस नये विचार ने शिक्षा की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। इस नीति में हार कर भी व्यक्ति निराशा से नहीं घिरता है तथा जीतने वाले के प्रति उसकी सहयोग भावना बनी रहती है। अगर हम विश्व में हुए आविष्कारों तथा सफलताओं को देखें तो हम पायेंगे कि ये उन व्यक्तियों द्वारा किये गये थे जो ‘स्वयं के साथ प्रतिस्पर्धा’ करके विश्व में आगे आये थे। हेलन कीलर स्वयं गूँगी व बहरी थी पंरतु उसने इस प्रकार के बच्चों के लिए ब्रेललिपि का आविष्कार किया। 

जो व्यक्ति दृढ़ संकल्पित होता है जो लक्ष्य के प्रति सचेत होता है। वह एक न एक दिन अपनी मंजिल तक पहुँच ही जाता है। स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था- असफलताओं की चिंता मत करो। वे बिल्कुल स्वाभाविक हैं, जीवन का सौंदर्य हैं। इनके बिना भी जीवन क्या होता? जीवन में यदि संघर्ष न रहे तो जीवन जीना भी व्यर्थ ही है। 

जन्म से कोई महान  नहीं बनता

महान कोई जन्म से नहीं बनता। बल्कि इसी संसार में कठिन परिस्थितियों में संघर्ष करके वे महान बनते हैं, सफल होते हैं। बस, हम स्वयं की शक्तियों को पहचानें। जिन लोगों ने भी इस पृथ्वी पर नाम कमाया जो लोग विश्व-विख्यात या जनप्रिय बने, वे तमाम लोग सामान्य होते हुए भी असामान्य थे क्योंकि उन्होंने स्वयं की शक्ति को पहचाना। समय की कीमत को जाना। अंग्रेजी में कहावत है - ‘फस्र्ट थिंक्स फस्र्ट’ अर्थात जिसे सबसे पहले करना है, उसे सर्वोपरि वरीयता देकर सबसे पहले करना चाहिए। प्रतिभा सबके पास समान होती है। परंतु सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि कौन समय रहते उसे पहचान लेता है। जो इसे पहचान लेता है, वही एक न एक दिन महापुरूष की तरह असहाय लोगों का सेवक बनता है। 

व्यक्ति को उसकी क्षमताओं का आभास कराती है..

प्रकृति प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमताओं का आभास कराती है। परंतु आज यह दुर्भाग्य है कि इसमें से बहुत से लोग स्वयं के अंदर छिपे हुए शक्ति के भंडार को नहीं पहचान पाते। जिस दिन व्यक्ति अपनी असीम शक्ति को पहचान लेता है, वह उसी दिन असफलता के बंधन से सदैव के लिए मुक्त हो जाता है। हमारी युवा पीढ़ी जो अपने जीवन के सबसे सुन्दर पलों को इस देश सहित विश्व के निर्माण में लगा रहे हैं वे हमारी ताकत, रोशनी, दृष्टि, ऊर्जा, धरोहर तथा उम्मीद हैं। 


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