मैं विचार हूँ !








मंजुल भारद्वाज

मैं विचार हूँ 

खरपतवार नहीं 

हर जगह नहीं उगता 

मुझे उगाना पड़ता है 

व्यवहार की कसौटी पर 

साधना पड़ता है!

विचार होना 

मनुष्यता का होना है 

विवेक के आलोक में 

इंसानियत का साधना होता है !

देह का पेट होता है

जीने के लिए 

पेट भरना अनिवार्य है 

पर पेट भरना जीवन नहीं 

जीवन होना मतलब 

विचार का होना है !

विचार सरल होता है 

व्यवहार भौतिक सुख की  

चरम प्राप्ति में उलझा हुआ

भौतिक संसाधनों को 

नियंत्रित करती है सत्ता 

सत्ता के सूत्र होते हैं 

साम,दाम,दंड,भेद 

यही द्वंद्व है 

विचार और व्यवहार का !

ज़िंदगी में हर समय 

व्यवहार के बादल छाये रहते हैं 

जो विचार सूर्य को ढक लेते हैं 

व्यवहार के काले घने बादलों को हटा 

विचार सूर्य से रूबरू कराती है कला

कला मनुष्य को 

इंसानी संवेदना से प्रज्वलित कर 

न्याय,समता और स्वतंत्रता के 

आसमान में स्वछंद उड़ान देती है 

इस उड़ान की ज़मीन है विचार ! 


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