फिर कब आओगे ?

दिपाली गोयल

वह जब भी यहाँ आता है,

ढेर सारी मिठाई लाता है

और लाता है अपने संग,

बहुत सी खुशियां और ढेरों उमंग

माँ पागलों सी इधर उधर दौड़ती है,

कभी उसका माथा चूमती है, तो,

कभी उसके सिर पर हाथ फेरती है

और बाबू जी अपने ख़ुशी के भावों को छुपाने का,

असफल प्रयास करते हुए बढ़कर उसे गले से लगा लेते हैं,

और उसे ढेरों आशीर्वाद देते हैं

और मैं दूर खड़ी सब देखती हूँ ,

और विवश हो जाती हूँ ये सोचने पर की क्यों ?

आखिर क्यों है इतनी ममता, इतना वात्सल्य, इतना प्रेम ?

उस बेटे के लिए जिसने बरसों पहले,

उन असहाये, निर्बल और लाचार वृद्धों को बाध्य कर दिया,

शरण लेने पर इस वृद्धआश्रम में

अंततः होता हैं मन में ये सत्य उजागर,

कि यही है एक माँ कि निस्वार्थ ममता,

एक पिता का निर्छल प्रेम, और एक विशुद्ध प्यार का सागर


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