काव्य मंचों का उभरता हुआ सिताराकिसान पुत्र पीरूलाल कुंभकार

पढ़ाई के साथ कवि सम्मेलनों के मंचों पर कमाया नाम

मनोज मौर्य 

इंदौर। राजगढ़ जिले के छोटे से गांव भगोरा में किसान परिवार में जन्मे पीरूलाल कुम्भकार, आज इंदौर, भोपाल, प्रयागराज, दिल्ली, जैसे बड़े महानगरों में अपनी कविताओं के माध्यम से ख्याति प्राप्त कर चूके है। आप कहते है कि - 'मैंने सर्वप्रथम कवि सम्मेलन जैसा शब्द बचपन के मित्र रामेश्वर टेलर के मुख से कक्षा 6 टीं में सुना। कवि सम्मेलन सुनने का शौक जागा और फिर वही से कविताओं का सफर शुरू हुआ।'

हाथीपाला के हाॅस्टल में रहकर शासकीय अटल बिहारी वाजपेयी काॅलेज में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे पीरूलाल लगातार कवि सम्मेलन के विषय में कवि हेमन्त हर्षिला जी से जानकारी प्राप्त करते रहें, तथा उन्हें ही अपना प्रारम्भिक गुरु माना। इसके बाद इंदौर आना हुआ। यहां विभिन्न साहित्यकारों के संपर्क में आने से कविता में निखार आता गया।

घनाक्षरी छन्दों में ही अधिकतर कविताएं लिखने वाले बाइस वर्षीय पीरूलाल कुम्भकार बताते है कि इन्हें छन्दों की जानकारी ओज के बड़े कवि देवेंद्र प्रताप सिंह आग से प्राप्त हुईं और हमेशा ही आग जी का सहयोग मिलता रहा। प्रसिद्ध समाचार पत्रों में कविताओं का प्रकाशन होकर प्रयागराज, भोपाल, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में काव्य पाठ करने का गौरव प्राप्त किया।

स्टीरिर्स ओपन स्टेज के माध्यम से पूरे इंदौर शहर में कविताओं का पाठ कर नाम कमाया। श्री काव्य सागर साहित्यिक संस्था के बैनर तले पहले कवि सम्मेलन में काव्य पाठ किया और अब लगातार मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहें है। महेश्वर साहित्यिक कला मंच द्वारा आप सम्मानित भी हो चुके है। राष्ट्रीय कवि श्री सत्यनारायण सत्तन जी का विशेष स्नेह एवं उनके सानिध्य में तीन बार काव्य पाठ करने का सौभाग्य आपको मिल चूका है।इंदौर की लगभग सभी साहित्यिक संस्थाओं जैसे नई कलम, काव्य सागर, अखण्ड सन्डे, आदि की काव्यगोष्ठीयों में सम्मिलित होकर कविता के गुर सीखते है।

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