साहित्य नगरी उन्नाव के कोहिनूर है निराला

प्रकाश शुक्ला

साहित्य नगरी उन्नाव के कोहिनूर है निराला। बसंत आया तो साहित्य के महाप्राण निराला याद आ ही जाते है। 21 फरवरी 1896 को बंगाल के माहिसादल जनपद के मेदनीपुर गाँव में पैदा हुए निराला इकलौते है जो ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की गोद में स्वयं जा बैठे। 

बसंत के दिन अपना जन्मदिन स्वयं घोषित करने वाले महाप्राण ने विद्रोही स्वर सिर्फ लेखन में नही उकेरे बल्कि स्वयं जिया भी है। उनके जन्मदिन पर इस किस्से को सुनकर आप गर्व किये बिना नही रह सकते।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी साहित्य पर चोट करते हुए लिखा कि हिंदी साहित्य में कोई ठाकुर रविन्द्र नाथ टैगोर के बराबर नही है। निराला टैगोर जी को अपना गुरु मानते थे बावजूद इसके उन्हें गांधी जी की बात इतनी अखरी की वह उन्हें ढूंढते हुए इलाहाबाद जा पहुंचे। 

महादेवी वर्मा से उनके भाई बहन के प्रगाढ़ रिश्ते थे। पता चला कि गांधी जी स्वराज भवन में ठहरे है तो दोनों लोग वहीं के लिये चल पड़े। रास्ते में ताँगे पर एक बकरी को जाते निराला ने महादेवी से कहा हिंदी कवि पैदल और बकरी तांगे पर जरूर यह बापू की बकरी होगी। 

बात सही थी बकरी का दूध पीने वाले गाँधी जी के लिए ही यह बकरी स्वराज भवन जा रही थी । स्वराज भवन में निराला और गांधी के बीच जो संवाद हुआ वह सिर्फ निराला ही कर सकते थे। गांधी जी ने निराला से पूछा किस प्रान्त से हो। निराला ने गांधी जी के हर प्रश्न के उत्तर में एक प्रश्न खड़ा किया। निराला ने कहा आप तो सारे राष्ट्र के है प्रान्त से आपका क्‍या अभिप्राय। झेंपते हुए गांधी जी ने कहा आपको वेशभूषा देख कर जिजाषा हुई थी। इसके बाद निराला अपने प्रश्न पर आ गए। गांधी जी आपने लिखा है कि हिंदी साहित्य में कोई टैगौर नही है। क्या आपने निराला को कभी पढ़ा है? 

गांधी जी ने कहा नहीं अपनी किताबे महादेव के भाई को दे देना इसके बाद निराला ने जो कहानी महात्मगाँधी को सुनाई उसे जानकर आपके हाथ निराला के पांव की माटी को उठाकर माथे पर लगाने को व्याकुल हो उठेंगे। निराला ने कहा एक कथा सुन लीजिए एक आदमी घोड़े वाले के पास उसका घोड़ा मांगने गया। 

घोड़े वाले ने कहा घोड़ा नही है इसी बीच घोड़ा हिनहिना उठा मांगने आया व्यक्ति बोला आपतो कह रहे है कि घोड़ा है नही तो घोड़े वाले ने कहा जनाब आपने घोड़े की आवाज सुनी है लेकिन मेरी नहीं दरअसल मै घोड़ा देना नही चाहता हूं। किस्सा सुनाकर निराला लौट गए।हमेशा से विसंगतियों इसी तरह लङे निराला।न गलत करते थे ना उन्हे गलत पसन्द था।

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