कलम का सिपाही हूँ!

सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

हर दिन लिखता हूँ कलम का सिपाही हूँ

कुछ कदम नापता हूँ बढ़ता हुआ राही हूँ

मैं शब्दों  को  जोड़कर कविता बनाता हूँ

सोच मेरी दवात है मैं ही अपनी स्याही हूँ

देखता हूँ देश के  बदलते हुए हालात को

देख मूक हूँ परेशान हूँ सीने में समाही हूँ

चंद लोग वतन-रूह को नोंचने में लगे हैं

दिख रही बर्बादियाँ आती हुई  तबाही हूँ

गलत लोग तो सदा गलत ही रहेंगे "उड़ता"

मैं सब समझता हूँ पर ऐसा-वैसा नाही हूँ


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