शायद कोई पहचान ले

सुरेंद  सैनी बवानीवाल "उड़ता"

डरता रहा बेखबर शायद कोई पहचान ले

राहों पे चलूँ अगर शायद कोई पहचान ले

कहीं कोई अपना लगे शायद कोई जान ले

नज़र जाती निखर शायद कोई पहचान ले

वैसे शिकवा नहीं मगर क्यों कोई सम्मान ले

इज़्ज़त बाटूं हर घर शायद कोई पहचान ले

मुलाक़ाती सफ़र मुझे अपना कोई मान ले

"उड़ता"ना बेसबर शायद कोई पहचान ले

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