जगत गुरु गुरु नानक देव۔۔
सरदार अजीत सिंह
सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी का आगमन 15 अप्रैल 1469 को अविभाजित हिंदुस्तान के रायभय की तलवंडी वर्तमान मैं श्री ननकाना साहिब पाकिस्तान में हुआ! आपके पिता कल्याण दास जी गांव के पटवारी थे! सिख धर्म दो शब्दों से सिख और धर्म के सुमेल से बना है "सिख" मतलब शिष्य जो सीखने की जिज्ञासा रखें! गुरु नानक साहब धर्म को परिभाषित करते हैं
*"सर्व धर्म में श्रेष्ठ धर्म, हर को नाम जप निर्मल कर्म"*
15वीं शताब्दी गुरु नानक जी के आगमन के समय हिंदुस्तान पर मुगलों का राज था, हुकूमत अपनी कट्टरपंथी नीति के कारण देशवासियों को मुस्लिम बनाना चाहती थी ! हिंदुस्तान के मूल निवासी मनु वर्ण व्यवस्था के कारण क्षत्रिय, ब्राह्मण, शुद्र, वैश्य चार वर्णों के साथ-साथ गरीब, अमीर, पिछड़े, दलित, ऊंच-नीच के कारण भिन्न-भिन्न वर्गों मैं बैठे हुए थे जिसका लाभ उठाकर हुकूमत उनका धर्म परिवर्तन कर रही थी!
गुरु नानक देव जी
ने समाज की स्थिति का भलीभांति सर्वेक्षण कर जायजा लिया और सब को समझाया
*"अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बंदे, एक नूर ते सब जग उपजा कौन भले को मंदे"*
अर्थात वह परमपिता परमात्मा सब में विराजमान है हम सब उसकी संतान हैं फिर कोई अच्छा, बुरा, ऊंचा, नीचा कैसे हो सकता है? गुरु नानक देव जी ने समाज के हित के लिए और वहम भ्रमों को मिटाने के लिए विश्व भ्रमण किया जिसको उदासियों या धर्म प्रचार फेरियो के रूप में जाना जाता है! इन धर्म प्रचार फेरों में आप हिंदुस्तान की चारों दिशाओं में हिंदू तीर्थों, मुस्लिम इबादतगाहो पर गए! अपनी प्रचार फेरियों में गुरु जी हरिद्वार, बनारस के साथ-साथ मक्का, मदीना, रोम, श्रीलंका, काबुल, कंधार, बगदाद, सहित अनेक स्थानों पर गए और उस एक परमात्मा के संदेशों से सबको अवगत कराया! आपका उद्देश्य था
*"सबको मीत हम आपन कीना, हम सबना के साजन"*
गुरुजी के बाद उनकी पांचवी जोत श्री गुरु अर्जन देव जी ने गुरु जी के साथ साथ और गुरुओं की बाणी को एकत्रित करके एक ग्रंथ तैयार किया जिसको *श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी* के नाम से जाना जाता है जिसके अंदर 36 महापुरुषों की बाणी दर्ज है जिसमें 15 भक्तों, 11 बट साहिबान, चार गुरसिख, और 6 गुरु साहिबान की बाणी दर्ज है! विश्व इतिहास में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी एकमात्र ऐसे इकलौते ग्रंथ है जिसको उच्चतम न्यायालय द्वारा जीवंत गुरु
का दर्जा प्राप्त है! गुरु नानक देव जी अपनी प्रचार फेरियों में लगभग 40000 किलोमीटर की यात्रा समाज के हित के लिए की और उस परमपिता परमात्मा की शक्ति से सबको अवगत कराया! आप के प्रचार का ढंग ही कुछ ऐसा था कि सभी आपके विचारों से सहमत होकर आपके भक्त हो जाते! आपका कथन है,
*"कोई बोले राम राम, कोई खुदाए, कोई सेवे गुसाईंया, कोई अल्लाह"*
गुरु जी के दो बेटे श्री चंद जी और लक्ष्मी दास जी थे आपने करतारपुर बसाया और धर्म प्रचार फेरियों के पश्चात सन 1521 से 1539 तक करतारपुर में ही रहकर एक कृषक के रूप में खुद खेती की और अपने अंतिम समय में यही उन्होंने जीवन व्यतीत किया! अपने बाद योग्य समझते हुए अपने सेवक भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी बनाते हुए उनको अंगद देव का नाम दिया जो बाद में गुरु अंगद देव जी के नाम से सिखों के दूसरे गुरु कहलाए! सन 1539 को आपने शरीर का त्याग किया!
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