इंतजार करती है निगाहें

चौथ का चांद 


स्वाती शुक्ला


मन फिर ख्वाहिशों से भर उठता है,


जब-जब चौथ का चांद निकलता है


यू तो प्यार का प्रतीक है यह चंद्रमा


हर दिल के करीब है यह चंद्रमा


पर ना जाने क्यों " चौथ का चांद "


मन-भावन सा अलग ही चमकता है।।



इंतजार करती है निगाहें इसकी


हर सुहागन का मन मचलता है


नखरे हैं हजार इस चांद के फिर भी


इसे देखकर रोम रोम खिल उठता है।।



फिर वही शरारत फिर वही कशिश


फिर वही प्यार आंखों से बरसता है


चूड़ियों की खनक से होते हैं गुलाबी गाल


जब प्रियतम की चाहत का


"चौथ का चांद " निकलता है।।



फिर वही सजना सवरना


फिर वही मेहंदी वाले हाथ


फिर वही नया एहसास


फिर वही पिया का साथ


वही मनभावन सा चंद्रमा


कुछ अलग ही लगता है


जब हर साल "चौथ का चांद" निकलता है।


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