विरासत हमें अपनी जड़ों से जुड़ना सिखाती है!
विश्व श्रव्य दृश्य विरासत दिवस पर विशेष
हमारी विरासत हमें अपनी जड़ों से जुड़ना सिखाती है..
.. जो संस्कारों और संस्कृति से परिचय कराती है..
शिखर
आज विश्व श्रव्य और दृश्य विरासत दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की धरोहर को जीवंत बनाये रखने के लिये उसका संरक्षण नितांत आवश्यक है। भारत के पास अपनी गौरवशाली विरासत है, जिसे हमारे पूर्वजों ने हमारे साथ साझा किया और अब हमें अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के लिये उसे संभाल कर रखना होगा। भारत के पास दुनिया को देने के लिये एक श्रेष्ठ संस्कृति, सदियों पुरानी सभ्यता, योग, अध्यात्म, सांस्कृतिक धरोहर, पुरातात्विक विरासत आदि अन्य विरासतें हैं, जिन्हें सहेज कर रखना जरूरी है।
हमारी विरासत हमें अपनी जड़ों से जुड़ना सिखाती है, हमारे संस्कारों और संस्कृति से परिचय कराती है। समाज के लोग अपनी धरोहर को आगे आने वाली पीढ़ियों के लिये संग्रहीत करते हैं और सुरक्षित रखते हैं, उसी प्रकार राष्ट्र की भी अपनी धरोहर होती है और उसे सहेजना, सुरक्षित रखना और संवर्द्धित करना सभी नागरिकों का परम कर्तव्य है। आज का दिन यही याद दिलाता है। उन्होेंने कहा कि नागरिकों का अपनी राष्ट्रीय धरोहर के साथ सम्बंध वैसा ही होना चाहिये जैसा कि एक बच्चे का अपनी माँ के साथ संबंध होता है, क्योंकि हमारी धरोहर हमारा गौरवशाली इतिहास बयां करती हैं।
भारत की कला और संस्कृति की आधारशिला दृश्य रूप में हमारे विरासत स्थल हैं और श्रव्य रूप में हमारे वेद मंत्रों का उच्चारण, गायन और वाद्ययंत्रों की मनमोहक ध्वनि है, जिन्हें भावी पीढ़ियों के लिये सुरक्षित रखना नितांत आवश्यक है। साथ ही किसी भी राष्ट्र की अमूर्त विरासत अंतर्राष्ट्रीय सम्बंध, आपसी विश्वास, अंतर-सांस्कृतिक वार्ता एवं शांति की स्थापना का श्रेष्ठ माध्यम भी होते हैं।
भारत का दर्शन केवल साहित्य नहीं बल्कि जीवन पद्धति है, जो आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। आईये आज श्रव्य दृश्य दिवस के अवसर पर संकल्प लें कि अपनी राष्ट्रीय विरासत को सम्भालनेे में योगदान प्रदान करेंगे। वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र शौक्षिक, वैज्ञानिक और संस्कृतिक संगठन, जनरल काॅन्फ्रेंस ने 27 अक्टूबर को विश्व श्रव्य-दृश्य विरासत दिवस घोषित किया गया था।
भारतीय योग, ध्यान और वैदिक मंत्रजाप ऐसी पद्धति है जो आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता को एक करते हुये जनमानस को आत्मिक शान्ति प्रदान करते हैं। भारत की सभ्यता, संस्कृति और संस्कार एक ऐसी निधि है जिसने हमारे राष्ट्र और समुदाय को समृद्ध बनाया है। किसी भी राष्ट्र की संस्कृति वहां के समाज की मानसिक चेतना का प्रतिबिंब है, जो पर्व, त्योहार, कला, संगीत या किसी अन्य रूप में अभिव्यक्त होती है। भारत के पास ऐसी अनेक अभिव्यक्तियाँ हैं।
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