दरिंदों के 'अत्याचार' और सिस्टम के 'मनमानी' की भेंट चढी बेटी...

अंकित पांडे 


भले सरकार 'बेटी बचाओ बेटी पढाओ' का नारा दे रही है। लेकिन आज भी बहुत ऐसे मामले देखने को मिल रहे है जो केवल इस नारा का केवल मजाक मात्र है। सरकार के इतनी सख्ती के बावजूद भी 'बेटियों' के साथ 'अत्याचार' के मामले देखे जा रहे है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में कई घटनाएं हुई जो सच में प्रशासन और सिस्टम पर सवाल उठाती है। बीते 14 सितम्बर को हाथरस जिले के भूलगढी गांव में एक लड़की के साथ हुई हैवानियत 'सिस्टम' को फिर सवाल के घेरे में ला रही है। यूपी की योगी सरकार भले ही पुलिस को 'सही' काम करने के लिए आदेश दिया है। लेकिन भूलगढी गांव की 18 वर्षीय लडकी के साथ हुई घटना के बाद स्थानीय थाना के पुलिस की भी एक लापरवाही से भरा चेहरा सामने आया। जब लडकी का भाई अपने बेहोश बहन को थाना में लेकर पहुंचा तो पुलिस के लोग ईलाज के लिए भेजने के पहले अपनी कागजी कोरम पूरा करते और मोबाइल से वीडियो व फोटो बनाते दिखे।


और कुछ देर बाद पीडिता का भाई टेम्पो से लेकर हास्पिटल पहुंचा। आखिर स्थानीय पुलिस की इस असंवेदनशीलता का क्या कारण है? पहले जिन्दगी जरूरी है या कागजी खानापूर्ति? वैसे प्रशासन को ही लिखना है जब चाहते कागजी खानापूर्ति कर लेते लेकिन जिन्दगी और मौत से जूझ रही बेटी के लिए तनिक भी तरस न खाई और अपने खानापूर्ति के खेल को प्राथमिकता दी। और करीब एक हफ्ते तक उस लड़की का ईलाज हुआ लेकिन उस लडकी को बचाया न जा सका। करीब एक हफ्ता बाद जब पीडिता की हालत गंभीर होने पर प्रशासन हरकत में आया। हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रेप की पुष्टि नही हुई है जबकि पीडिता ने इस बात को खुद स्वीकार किया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दुपट्टा से खीचने पर गले में चोट,रीढ की हड्डी का टूटना, लकवा मारने तथा जीभ में चोट की बात आई है। पुलिस आरोपियों पर सख्त कार्रवाई पर भी जुटी है। राजनीति करने वाले अपनी घडियाली आंसू बहाकर अपनी रोटी सेकने पहुंच गये। सरकार भी पीडित परिवार को 'मुआवजा' की बात कर रही है। मीडिया भी अपने 'टीआरपी' के चक्कर में लाइव कवरेज की होड में पुलिस प्रशासन से धक्का मुक्की करते दिख रही है। और इस 'बेटी' की 'मौत' को लोग 'मौका' समझ कर भुनाने में लगे है। हाथरस की बेटी के साथ दरिंदों ने तो जीते जी 'अत्याचार' करके 'मौत' के करीब पहुंचा दिया। वही सरकार का 'सिस्टम' भी बेटी के मौत के बाद 'अन्याय' करने से पीछे नही रहा। आखिर इसकी वजह क्या रही? वैसे सरकार ने इस मामले की जांच एसआईटी को देकर अपने लिए 'राहत' कर ली। और स्थानीय पुलिस अधिकारी पर भी सख्ती दिखाई। लेकिन सब चीजे तो बाद की है। कुछ भी हो लेकिन पीडित बेटी और उसके परिजन का 'दर्द' कौन समझ पायेगा। जब बेटी की मौत हो गई तो आनन फानन स्थानीय पुलिस प्रशासन ने उस पीडिता के शव को क्यों जला दिया? क्या सब कुछ होने के बाद परिजश अपने बेटी का अंतिम संस्कार भी न कर सके? आखिर क्या रही वजह जिसे स्थानीय प्रशासन लोगो से और मीडिया से छुपाना चाहती है? उस मौके पर हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार का बयान बडा ही चौकाने वाला था जो रात में ही शव को जलाने के लिए तर्क दे रहे थे। हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार ने कहा कि 'यदि शव को जल्दी न जलाया गया तो आत्मा भटकती रहती है।' प्रशासन अपने वैधानिक कार्यवाही के बाद शव को परिजनों को दे देता और परिजन अपने रीति रिवाज से अपने बेटी का अंतिम दर्शन और अंतिम संस्कार करते लेकिन पता नही क्यों प्रशासन ने अपनी मनमानी की। प्रशासन की यह मनमानी लोगो के जहन में कई सवाल कर रही है कि आखिर क्या वजह रही कि प्रशासन ने यह सब किया? हालांकि जो भी हो सरकार और प्रशासन जब तक अत्याचार करने वालो पर सख्त नही होगी तब तक ऐसी घटनाएं होती ही रहेंगी और नेताओं को राजनीति करने का नया मौका मिलता रहेगा।


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