अनहोनी की आशंका पर किसी को नही परवाह..

प्रकाश शुक्ला 


उन्नाव 


अखिलेश अवस्थी(दादा) की कलम से


रात के ढाई बजे जिला अस्पताल गेट पर चल रहे फिल्मी ड्रामे को देख कर किसी का भी धैर्य जवाब दे सकता था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नशे में धुत एक हट्टा कट्टा जवान विक्षिप्त महिला को सड़क पर दौड़ा दौड़ा कर पीट रहा था। महिला बचने के लिए जितना भाग रही थी वो उतना ही बाहुबली बन रहा था। नहीं बर्दश्त हुआ और अंदर से उस बाहुबली के लिए निकली ललकार के साथ दौड़ पड़ा। युवक डॉक्टर्स कालोनी के अंदर घुस कर लापता हो गया। तिराहे पर ड्यूटी करने वाले होमगार्ड के दो जवान चाय की चुस्कियों के साथ घटना की निंदा कर रहे थे। रिक्शे वाले चाय बिस्कुट खरीद रहे थे और चाय वाला चाय पान मसाला बेच रहा था। बात इतनी ही नहीं है। ये महिला यौन विकृति की शिकार लगती है। दिन रात अस्पताल गेट से लेकर तिराहे तक टहलती दिख जाएगी। ठेलिया,रिक्शा वालों की काम पिपासा शांति का ये यहां माध्यम बन चुकी है। एक पैकेट बिस्कुट,दस बीस रुपये या खाने के बदले इसका रोज कितनी बार दैहिक शोषण होता होगा अंदाजा लगाना कठिन है। मार खाते हुए बचा कर लाने के बाद पीने के लिए दी गई चाय हाथ मे पकड़े ये युवती उसी तरह उल्टियां सी करने लगी जैसे गर्भवती महिलाएं करती हैं। शक सच भी हो सकता है। लेकिन ये जांच का विषय है। विक्षिप्त के दैहिक शोषण की दास्तान समझने वाली मीडिया से उम्मीद करना तो व्यर्थ है लेकिन पुलिस और प्रशासन से आशा की जा सकती है कि वो इस अबला के बारे में गंभीरता से पहल करे अन्यथा यहां किसी दिन हो कुछ भी सकता है। सड़क पर हुए ड्रामे के पीछे युवक की बात न बनने की चर्चाएं भी थीं। हालांकि ये विक्षिप्त ऐसी ही परिस्थितियों में किसी दिन मर जाए तो भी कोई बड़ी बात नही होगी। पोस्टमार्टम के बाद लाश फेंक दी जाएगी या परिजन आ गए तो उन्हें सौंप दी जाएगी। मानवता मुंह छिपा कर रोयेगी और आंसू पोछने वाला कोई नहीं होगा।


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