आत्मा की आवाज ने बना दिया था मैरिज का ब्यूरो प्रमुख

किसी कन्या की शादी कराना, तीर्थ यात्रा करने जैसा है!


मनोज मौर्य


लखनऊ। अपने ही बलबूते नि:शुल्क हजारों विवाह कराने वाले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के स्व. लखपति प्रसाद कुशवाहा जी की इस उपलब्धि से अनेक प्रतिष्ठित मैरिज ब्यूरो भौचक्का होने लगे थे।



जिला लेखा परीक्षा अधिकारी के पद से वर्ष 2005 में सेवानिवृत्त हुए श्री कुशवाहा जी के घर के छोटे-से बरामदे में सुबह से शाम तक मेले जैसा दृश्य रहता था। उनके गले में लटका हुआ मोबाइल फोन लगातार बजता रहता था। विवाह योग्य लड़के-लड़कियां के अभिभावकों की शंकाओं का निवारण करते हुए उन्हें शीघ्र ही सफलता मिलने का भरोसा दिलाते रहते थे। इतना ही नहीं अनेकों निर्धन परिवारों की कन्याओं की शादी के लिए आर्थिक सहायता का भी बंदोबस्त किया। श्री कुशवाहा ने कहते थे कि किसी कन्या की शादी कराना, तीर्थ यात्रा करने जैसा है।


उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले के ग्राम-बरदहा, पोस्ट-करछना के मूल निवासी तथा वर्तमान में लखनऊ निवास कर रहे श्री कुशवाहा जी ने लगभग 45 वर्ष पहले इस काम को शुरू किया। श्री कुशवाहा ने कहा कि शुरुआत में उन्होंने सिर्फ मौर्य, कुशवाहा, शाक्य व सैनी परिवारों के लिए वर-वधू की तलाश का काम शुरू किया लेकिन कुछ समय बाद ही वह सभी धर्म और समुदायों के लिए यह कार्य नि:स्वार्थ भाव से करने लगे थे। श्री कुशवाहा जी का यह दावा था कि उनसे जुड़े लोगों के अब तक हजारों परिवारों के वर-वधु का विवाह सफलतापूर्वक संपन्न करा चुके थे तथा निरंतर तत्पर रहते थे। शुरुआत के कुछ कड़वे अनुभव भी हुए जब विवाह के बाद वर-वधू पक्ष की तरफ से उन्हें कई शिकायतें सुननी पड़ती थी।


मै यह कार्य ईश्वर की प्रार्थना मानकर समर्पण भाव से करता हूँ..


ऐसे ही एक प्रसंग ने तो उन्हें इतना दुखी कर दिया कि उन्होंने इस काम को छोड़ने का मन बना लिया लेकिन अंतरात्मा की आवाज ने छोड़ने नहीं दिया। यह प्रश्न पूछने पर कि "कभी यह विचार मन में नहीं आया इस काम को अगर व्यावसायिक शक्ल दी जाए तो धन अर्जित किया जा सकता है" तो श्री कुशवाहा जी ने बताया कि "मै यह कार्य ईश्वर की प्रार्थना मानकर समर्पण भाव से करता हूँ"।


उनके पास सुविधाओं मे एक छोटे से उनके मकान में जीवन यापन हेतु मात्र साधारण-सी वस्तुएं व एक साइकिल थी। ना खाने की सुध, ना सोने की। सुबह नाश्ता मिला तो ठीक नहीं मिला तो भी ठीक और देर रात तक घर वापसी। उनके पास करीब हजारों दस्तावेज, जिसमें विवाह योग्य लड़के-लड़कियों का विवरण व छायाचित्र किताबों की शक्ल में दर्ज थे।


श्री कुशवाहा जी बताते थे कि शहर क्षेत्र में पढ़े-लिखे अभिभावकों के सोच में अब काफी परिवर्तन हो चुका है, इन दिनों बड़े बुजुर्गों की मर्जी से शादी तय होने के बाद भी लड़के-लड़कियों की मुलाकात और उनकी रजामंदी को खासी अहमियत दी जाने लगी है। उनके इस सराहनीय कार्य को अनेकों संगठनों ने सम्मानित करने के साथ ही निरंतर करते रहने का निवेदन भी करते थे।


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